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Friday, October 26, 2012

महिलाओं ने कीटों की तरफ बढ़ाया दोस्ती का हाथ


पोधों पर कीटों की पहचान करती महिलाएं
पौधों कीटों की संख्या दर्ज करती महिलाएं।

 प्रजनन क्रिया करते हुए हफलो नामक लेड़ी बिटल
फसल में जिन कीटों को देखकर किसान अकसर डर जाते हैं और उन्हें अपना दुश्मन समझकर उनके खात्मे के लिए स्प्रे टंकियां उठा लेते हैं, उन्हीं कीटों को ललीतखेड़ा व निडाना गांव की महिलाएं किसान का सबसे बड़ा दोस्त बताती हैं। इसलिए इन महिलाओं ने कीटों की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया है। कीटों ने भी इनकी भावनाओं को समझते हुए इनके साथ पहचान बना ली है। इसलिए तो महिलाओं  के खेत में पहुंचते ही कीट इनके पास आकर बैठ जाते हैं। ललीतखेड़ा गांव में लगने वाली महिला किसान पाठशाला में अकसर इस तरह के नजारे देखने को मिल जाते हैं। बुधवार को आयोजित महिला किसान पाठशाला में भी इसी तरह का वाक्या सामने आया, जब एक मासाहारी दीदड़ बुगड़ा शांति नामक एक महिला के चेहरे पर आकर बैठ गया। शांति शांत ढंग से बैठी रही और पाठशाला में मौजूद अन्य सभी महिलाएं लैंस की सहायता से उसे देखने में मशगुल हो गई। अंग्रेजो ने महिलाओं को दीदड़ बुगड़ा दिखाते हुए बताया कि यह व इसके बच्चे खून चूसक होते है। इस दौरान पिंकी ने सवाल उठाया कि यह किस का खून चूसता है। मनीषा ने जवाब देते हुए कहा कि आज के दिन कपास की फसल में सफेद मक्खी, हरा तेला व चूराड़े ही मौजूद हैं। इसलिए दीदड़ बुगड़ा इन्ही कीटों का खून चूसता है। शीला ने महिलाओं को सलेटी भूंड दिखाते हुए बताया कि आज के दिन कपास में सलेटी भूंड  की तादात प्रति पौधा एक की है और यह शाकाहारी है तथा पत्तों को खाकर अपना गुजारा करता है। इसी दौरान शीला ने महिलाओं को प्रजनन क्रियाएं करते हुए हफलो नामक लेड़ी बिटल दिखाते हुए कहा कि इसके बच्चे व इसका प्रौढ़ दोनों मासाहारी होते हैं जो शाकाहारी कीटों को खा कर अपना वंश चलाते हैं। सविता ने सर्वेक्षण के दौरान महिलाओं को हरिया बुगड़े को पत्तों से रस चूसते हुए दिखाया। रणबीर मलिक ने बताया कि कपास की फसल में 2 से 28 प्रतिशत तक पर परागन होता है और यह केवल कीटों से ही संभव है। अगर किसान फसल में मौजूद कीटों के साथ छेड़खानी न करें तो पर पररागन के कारण 2 से 28 प्रतिशत तक फूल से टिंडे ज्यादा बनने की संभावाना होती है। मनबीर रेढू ने महिलाओं द्वारा खेत का सर्वेक्षण कर प्रस्तुत की गई रिपोर्ट से तैयार किए गए बही-खाते से हिसाब लगाकर बताया कि फिलहाल कपास की फसल में कोई भी शाकाहारी कीट हानि पहुचाने की स्थिति में नहीं है। मनबीर रेढू की इस बात पर पाठशाला में मौजूद कृषि अधिकारियों, खाप पंचायत के संचालक कुलदीप ढांडा व सभी महिलाओं ने सहमती जताई। विषय विशेषज्ञ डा. राजपाल सूरा ने महिलाओं को राजपुरा-माडा तथा पाली गांव का उदहारण देते हुए बताया कि राजपुरा-माडा गांव में किसानों द्वारा पाली गांव से ज्यादा कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए पाली के मुकाबले राजपुरा-माडा गांव में कैंसर के मरीजों की संख्या भी बहुत ज्यादा है। उपमंडल कृषि अधिकारी सुरेंद्र मलिक ने महिलाओं को गोबर का ढेर लगाने की बजाए कुरड़ी में गोबर डालने की सलाह दी। खाप पंचायत के संचालक कुलदीप ढांडा ने किसान व कीटों की इस लड़ाई की तुलना महाभारत की लड़ाई से करते हुए कहा कि कीटों की तीन जोड़ी टांग व दो जोड़ी पंख होते हैं तथा कीटों में प्रजनन की क्षमता भी ज्यादा होती है। इसलिए इस जंग में किसानों की अपेक्षा कीटों का पलड़ा भारी है। ढांडा ने कहा कि किसान के पास कीटों को मारने के लिए कीटनाशक शस्त्र के अलावा कुछ नहीं है जबकि कीटों के पास अपने बचाव के लिए अस्त्र व शास्त्र दोनों हैं। इस अवसर पर उनके साथ सहायक पौध संरक्षण अधिकारी अनिल नरवाल व खंड कृषि अधिकारी जेपी कौशिक भी मौजूद थे। 


अपने चेहरे पर बैठे कीट को दिखाती महिला।

Wednesday, October 10, 2012

कृषि के क्षेत्र में भी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलें महिलाएं

   ललीतखेड़ा गांव में बुधवार को महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया गया। पाठशाला में ललीतखेड़ा, निडाना व निडानी की महिलाओं ने भाग लिया। महिलाओं ने कीट निरीक्षण, अवलोकन के बाद कीट बही खाता तैयार किया। इस बार कीट अवलोकन के दौरान महिलाओं ने कपास की फसल में मौजूद लाल बाणिये का भक्षण करते हुए एक नए मासाहारी कीट को पकड़ा।
 फसल में कीटों का निरीक्षण करती महिलाएं। 

महिलाओं को कीटों के बारे में जानकारी देते पाठशाला के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल। 
पाठशाला की मास्टर ट्रेनर अंग्रेजो ने महिलाओं को बताया कि अब तक उन्होंने कपास की फसल में सिर्फ लाल बाणिये का खून पीते हुए मटकू बुगड़े को ही देखा था। मटकू बुगड़ा अपने डंके की सहायता से लाल बाणिये का खून पीकर इसके कंट्रोल करता था लेकिन इस बार महिलाओं ने लाल बाणिये का खात्मा करने वाले एक नए मासाहारी कीट की खोज की है। यह कीट इसका खून पीने की बजाए इसको खा कर कंट्रोल कर अपनी वंशवृद्धि करता है। अंग्रेजो ने कहा कि इससे यह बात आइने की तरह साफ है कि कीटों को कंट्रोल करने की जरुरत नहीं है। अगर जरुरत है तो सिर्फ कीटों की पहचान व इनके क्रियाकलापों के बारे में जानकारी जुटाने की। अगर किसानों को अपनी फसल में समय-समय पर आने वाले मासाहारी व शाकाहारी कीटों की पहचान व उनके क्रियाकलापों का ज्ञान हो जाए तो किसानों का जहर से पीछा छूट जाएगा। बिना ज्ञान के कीटनाशक से छुटकारा संभव नहीं है। मास्टर ट्रेनर मीना मलिक ने बताया कि जिस तरह अन्य क्षेत्रों में महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं, वैसे ही कृषि के क्षेत्र में भी महिलाओं को पुरुषों के साथ आगे आना होगा। मलिक ने कहा कि विवाह, शादी जैसे खुशी के मौकों पर महिलाओं को अन्य गीतों की बजाए कीटों के  गीत गाने चाहिएं, ताकि अधिक से अधिक लोगों तक यह मुहिम फैल सके। उन्होंने कहा कि जहर से मुक्ति मिलने में केवल किसानों की ही जीत नहीं है, बल्कि इससे हर वर्ग के लोगों को लाभ होगा। क्योंकि हमारे शास्त्रों में भी पहला सुख निरोगी काया का बताया गया है। जब तक इंसान स्वास्थ नहीं होगा तब तक वह किसी भी कार्य को अच्छे ढंग से नहीं कर पाएगा। उन्होंने कहा कि किसानों में जो भय व भ्रम की स्थित पैदा हो चुकी है हमें उस स्थिति को स्पष्ट करना होगा। किसानों को फसल में आने वाली बीमारी व कीटों के बीच के अंतर के बारे में जानकारी होनी जरुरी है। जब तक यह स्थित स्पष्ट नहीं होगी तब तक किसानों के अंदर से भ्रम को बाहर नहीं निकाला जा सकता है। सविता ने बताया कि इस समय उनकी फसल की दूसरी चुगवाई चल रही है लेकिन पाठशाला में आने वाली एक भी महिला को अब तक फसल में एक बूंद कीटनाशक की जरुरत नहीं पड़ी है। इस अवसर पर उनके साथ पाठशाला के संचालक सुरेंद्र दलाल, मास्टर ट्रेनर रणबीर मलिक व मनबीर रेढ़ू भी मौजूद थे। बराह कलां बारहा खाप के प्रधान भी मौजूद थे।

Wednesday, August 29, 2012

दूरदर्शन की टीम ने शूटिंग को दिया अंतिम रूप


   बेजुबान कीटों को बचाने के लिए जिले के निडाना गांव की धरती से उठी आवाज अब विदेशों में भी गुंजेगी। किसानों की आवाज को दूसरे देशों तक पहुंचाने में दिल्ली दूरदर्शन की टीम इनका माध्यम बनी है। दिल्ली दूरदर्शन की टीम अपने कृषि दर्शन कार्यक्रम की रिकार्डिंग के लिए मंगलवार को निडाना गांव के किसानों के बीच पहुंची थी। टीम ने मंगलवार को निडाना गांव में किसान खेत पाठशाला तथा बुधवार को ललीतखेड़ा की महिला किसान खेत पाठशाला की गतिविधियों को कैमरे में शूट किया। बुधवार को हुई बूंदाबांदी के बीच भी कार्यक्रम की शूटिंग चली और ललीतखेड़ा की महिला किसान खेत पाठशाला में शूटिंग को अंतिम रुप देकर टीम अपने गंतव्य की तरफ रवाना हो गई। दिल्ली दूरदर्शन द्वारा 4 सितंबर को सुबह 6.30 बजे कार्यक्रम का प्रसारण किया जाएगा और यह कार्यक्रम 165 देशों में प्रसारित होगा।
निडाना गांव के किसानों द्वारा जलाई गई कीट ज्ञान की मशाल अब देश ही नहीं बल्कि विदेश के किसानों की राह का अंधेरा दूर कर उन्हें एक नया रास्ता दिखाएगी। इस रोशनी को विदेशों तक पहुंचाने के लिए दिल्ली दूरदर्शन की टीम पिछले दो दिनों से अपने पूरे तामझाम के साथ निडाना में डेरा डाले हुए थी। दूरदर्शन की इस टीम में रिपोर्टर विकास डबास, कैमरामैन सर्वेश व राकेश के अलावा 84 वर्षीय वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डा. आरएस सांगवान भी मौजूद थे। कृषि वैज्ञानिक डा. आरएस सांगवान ने मंगलवार को निडाना गांव में चल रही किसान खेत पाठशाला में पहुंचकर कीट कमांडो किसानों के साथ सीधे सवाल-जवाब किए और दूरदर्शन की टीम ने उनके अनुभव को अपने कैमरे में कैद किया। अलेवा से आए किसान जोगेंद्र ने कृषि वैज्ञानिक को अपने अनुभव के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि वह 1988 से खेतीबाड़ी के कार्य से जुड़ा हुआ है। खेतीबाड़ी के कार्य से जुड़ने के साथ ही उसने अपने खेतीबाड़ी के सारे खर्च का रिकार्ड भी रखना शुरू किया हुआ है। 1988 से लेकर 2011 तक वह अपने खेतों में 70 लाख के पेस्टीसाइड डाल चुका है। लेकिन इस बार उसने निडाना के किसानों के साथ जुड़ने के बाद अपने खेत में एक छंटाक भी कीटनाशक नहीं डाला है और अब वह खुद भी कीटों की पहचान करना सीख रहा है। निडानी के किसान जयभगवान ने बताया कि वह 14 वर्ष की उम्र से ही खेती के कार्य में लगा हुआ है। जयभगवान ने बताया कि उनके एक रिश्तेदार की पेस्टीसाइड की दुकान है और वह हर वर्ष उससे कंट्रोल रेट पर दवाइयां खरीदता था। कंट्रोल रेट पर दवाइयां मिलने के बाद भी उसका हर वर्ष दवाइयों पर 80 हजार रुपए खर्च हो जाता था। लेकिन पिछले दो वर्षों से उसने इस मुहिम से जुड़ने के बाद कीटनाशकों का प्रयोग बिल्कुल बंद कर दिया है। खरकरामजी के किसान रोशन ने बताया कि वह 10-12 एकड़ में खेती करता है, लेकिन वह अपने खेत में सुबह पांच बजे से आठ बजे तक सिर्फ तीन घंटे ही काम करता है। इसके बाद अपनी ड्यूटी पर चला जाता है। रोशन ने बताया कि अधिक पेस्टीसाइड के प्रयोग से पैदावार में बढ़ोतरी नहीं होती। पैदावार बढ़ाने में दो चीजें सबसे जरुरी हैं। पहला तो सिंचाई के लिए अच्छा पानी और दूसरा खेत में पौधों की पर्याप्त संख्या। अगर खेत में पौधों की पर्याप्त संख्या होगी तो अच्छी पैदावार निश्चित है। सिवाहा से आए किसान अजीत ने बताया कि वह अपनी जमीन ठेके पर देता था। जिस किसान को वह ठेके पर जमीन देता था, वह फसल में अंधाधूंध कीटनाशकों का प्रयोग करता था। जहरयुक्त भेजन के कारण कैंसर की बीमारी ने उसे अपने पंजों में जकड़ लिया और पिछले वर्ष उसकी मौत हो गई। इसलिए इस वर्ष उसने अपने खेत ठेके पर नहीं देकर स्वयं खेती शुरू की है और उसने भी कीट ज्ञान अर्जित कर अपने खेत में एक बूंद भी कीटनाशक नहीं डाला है। उसके खेत में इस वर्ष शाकाहारी व मासाहारी कीट भरपूर संख्या में मौजूद हैं। लेकिन इन कीटों से उसकी फसल को रत्ती भर भी नुकसान नहीं हुआ है। इसके बाद बुधवार को टीम ललीतखेड़ा गांव में महिला किसान पाठशाला में पहुंची और यहां महिलाओं से भी उनके अनुभव के बारे में जानकारी जुटाई। महिलाओं ने कीटों पर लिखे गीत सुनाकर टीम का स्वागत किया। टीम ने महिलाओं द्वारा लिखे गए तीन गीतों की भी रिकार्डिंग की। इस दौरान टीम ने निडाना के किसान रणबीर द्वारा चार एकड़ में बोई गई देसी कपास के शॉट भी लिए।
किसानों से सवाल करते कृषि वैज्ञानिक डा. आरएस सांगवान।

किसानो से बातचीत करते कृषि 

कृषि दर्शन कार्यक्रम के लिए किसानों के अनुभव को शूट करते टीम के सदस्य।
कृषि वैज्ञानिक को उपहार भेंट करती महिला 

कृषि वैज्ञानिक ने थपथपाई किसानों की पीठ

टीम के साथ आए कृषि वैज्ञानिक डा. आरएस सांगवान ने किसानों द्वारा शुरू किए गए इस कार्य की खूब सराहना की। किसानों की पीठ थपथपाते हुए सांगवान ने कहा कि उनकी यह मुहिम एक दिन जरुर शिखर पर पहुंचेगी और दूसरे किसानों को राह दिखाएगी। उन्होंने कहा कि इंसान को प्रकृति के साथ छेडछाड़ नहीं करनी चाहिए। आज मौसम में जो परिवर्तन आ रहे हैं, वह सब प्रकृति के साथ हो रही छेड़छाड़ का ही नतीजा है।

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Wednesday, August 22, 2012

कीटनाशकों से लड़ने के लिए कीटों को बनाया अचूक हथियार

                  लोगों की थाली से जहर कम करने के लिए चलाए गए कीटनाशक रहित खेती के इस अभियान को शिखर पर पहुंचाने के लिए निडाना व ललीतखेड़ा की महिलाएं जी-जान से जुटी हुई हैं। इस अभियान की जड़ें गहरी करने तथा अधिक से अधिक गांवों तक इस मुहिम को पहुंचाने के लिए इन महिला किसानों द्वारा अन्य महिलाओं को भी मास्टर ट्रेनर ते तौर पर ट्रेंड किया जा रहा है। इन महिलाओं द्वारा ललीतखेड़ा गांव के खेतों में चल रही महिला किसान पाठशाला में आने वाली अन्य महिलाओं को कीटों की पहचान करवाकर इनके क्रियाकलापों की भी जानकारी दी जाती है। बुधवार को भारी बारिश के दौरान भी ये महिलाएं खेत पाठशाला में पहुंची और हाथों में छाता लेकर खेत में कीट सर्वेक्षण भी किया। महिलाओं ने पांच-पांच के 6 ग्रुप बनाए और प्रत्येक ग्रुप ने पांच-पांच पौधों से 9-9 पत्तों पर मौजूद कीटों की गिनती की। कीट सर्वेक्षण के बाद महिलाओं ने चार्ट पर अपनी सर्वेक्षण रिपोर्ट पेश की। महिलाओं द्वारा पेश की गई रिपोर्ट के अनुसार पूनम मलिक के कपास के इस खेत में प्रत्येक पत्ते पर सफेद मक्खी की संख्या 0.4 प्रतिशत, तेले के शिशुओं की संख्या 0.6 प्रतिशत तथा चूरड़े की संख्या 1.3 प्रतिशत थी। वैज्ञानिक मापदंड के अनुसार खेत में मौजूद इन कीटों की संख्या आर्थिक हानि पहुंचाने से काफी नीचे थी। इसलिए महिलाओं को इस खेत में कीटनाशक के प्रयोग की कोई गुंजाइश नजर नहीं आई। पाठशाला के दौरान महिलाओं ने दो नई किस्म के हथजोड़े देखे। महिलाओं ने बताया कि अब तक वे 9 किस्म के हथजोड़े देख चुकी हैं। कीट सर्वेक्षण के दौरान शीला मलिक ने सभी महिलाओं का ध्यान अपने ऊपर मंडरा रही लोपा मक्खियों के झुंड की तरफ खींचा। लोपा मक्खियों के झुंड को देखकर अंग्रेजो ने कहा कि जब ये मक्खी काफी नीचे को उड़ती हैं तो भारी बारिश आने की संभावना रहती है। इसी दौरान राजवंती ने बताया कि हरियाणा के लोग इसे हैलीकॉप्टर (जहाज) के नाम से जानते हैं। लेकिन अंग्रेज इसे ड्रेगनफ्लाई कहते हैं। राजवंती की बात को बीच में काटते हुए संतोष ने कहा कि यह मक्खी पीछवाड़े से सांस लेती है। सरिता ने महिलाओं को चुप करते हुए कहा कि इसकी पहचान के साथ-साथ इसके काम पर ध्यान देने की जरुरत है। सरिता ने महिलाओं को समझाते हुए कहा कि यह मक्खी हमारे सिर पर इसलिए उड़ रही है कि जब हम खेत में से चलते हैं तो पौधों पर बैठे कीट व पतंगे उड़ते हैं और यह उड़ते हुए कीटों का शिकार कर अपना पेट भरती है। सरिता ने कहा कि यह मक्खी धान के खेत में खड़े पानी में अपने अंडे देती है। अगर किसान धान में कीटनाशक का प्रयोग न करें तो धान में आने वाली तन्ना छेदक व पत्ता लपेट को यह बड़ी आसानी से कंट्रोल कर लेती है। सरिता ने बताया कि हरियाणा का कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है, जिसने इसे देखा न हो, लेकिन उन्हें इसकी पहचान नहीं है। सरिता ने कहा कि उसने स्वयं लोपा मक्खी की चार प्रजातियों को देख चुकी है। इसी दौरान कपास के फूल पर पुष्पाहारी कीट तेलन को देखकर प्रेम ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की। प्रेम ने कहा कि निडाना व ललीतखेड़ा में इस मक्खी का प्रकोप ज्यादा है, क्योंकि यहां के किसान कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करते हैं। रणबीर मलिक ने प्रेम के सवाल का जवाब देते हुए कहा कि तेलन तो उनकी फसल की हीरोइन है, क्योंकि यह कपास में परपरागन में अहम भूमिका निभाती है। मलिक ने बताया कि निडाना के किसानों ने अब तक तेलन द्वारा प्रकोपित 508 फूलों की फूलों की पहचान की है। इनमें से सिर्फ तीन फूल ही ऐसे थे, जिनके मादा भाग खाए गए थे। बाकि 505 फूलों के सिर्फ नर पुंकेशर व पंखुड़ियां खाई हुई थी तथा मादा भाग सुरक्षित था। मलिक ने बताया कि यह अपने अंडे जमीन में देती है और इसके बच्चे मासाहारी होते हैं, जो टिड्डो व अंडों को अपना शिकार बनाते हैं। रमेश मलिक ने महिलाओं को मटकू बुगड़े व लाल बणिये के अंडे दिखाए।
बारिश के दौरान छाता लेकर कीटों का निरीक्षण करती महिलाएं।

कपास के पत्ते पर मौजूद लोपा मक्खी (ड्रेगनफ्लाइ)।

तेलन कीट द्वारा कपास के फूल के नर पुंकेशर खाने के बाद सुरक्षित मादा पुंकेशर।

Wednesday, August 15, 2012

स्वतंत्रता दिवस पर महिलाओं ने लिया देश को जहर से आजाद करवाने का संकल्प

कपास के पौधे पर कीटों की गिनती करती महिलाएं।

 कपास के फूल को खाती तेलन
        एक तरफ 15 अगस्त को जहां सारे देश में 66 वें स्वतंत्रता दिवस की खुशियां मनाई जा रही थी। जगह-जगह कार्यक्रमों का आयोजन कर देशभक्ति से ओत-प्रोत भाषणों से युवा पीढ़ी में देशभक्ति का बीज बो कर उन्हें देश सेवा की शपथ दिलवाई जा रही थी, वहीं दूसरी तरफ जिले के ललीतखेड़ा गांव के खेतों में महिला किसान पाठशाला की महिलाएं देश को जहर से मुक्त करवाने का संकल्प ले रही थी। अपने इस संकल्प को पूरा करने के लिए महिलाएं हाथ में कागज-पैन उठाकर भादो की इस गर्मी में कीट सर्वेक्षण के लिए कपास के पौधों से लटापीन होती नजर आई। इस दौरान महिलाओं को प्रेरित करते हुए सर्व खाप पंचायत के संयोजक कुलदीप ढांडा ने कहा कि 15 अगस्त 1947 को हमें राजनीतिक आजादी तो मिली और इससे हमें विकास के लाभ भी हासिल हुए, लेकिन कीटनाशकों से मुक्ति की लड़ाई अभी जारी है। निडाना व ललीतखेड़ा की महिलाओं ने हिंदूस्तान की जनता को जो रास्ता दिखाया है, इससे एक दिन यह लड़ाई जरुर सफल होगी और जनता को विषमुक्त भेजन भी मिलेगा। जिससे हमारा पर्यावरण भी सुरक्षित बनेगा। इस अवसर पर महिलाओं ने 6 समूह बनाकर कपास के खेत का सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षेण के दौरान महिलाओं ने पांच-पांच पौधों के पत्तों पर कीटों की गिनती की। महिलाओं ने पौधे के ऊपरी, बीच व निचले हिस्से से तीन-तीन पत्तों का सर्वेक्षण कर फसल में मौजूद सफेद मक्खी, चूरड़ा व तेले की तादात अपने रिकार्ड में दर्ज की। इसके बाद महिलाओं ने फसल में मौजूद कीटों का बही-खाता तैयार किया। बही-खाते में महिलाओं ने अपने-अपने खेत से लाए गए आंकड़े भी दर्ज करवाए। महिलाओं ने अपने खेत से दस-दस पौधों से आंकड़ा तैयार किया था, लेकिन सुषमा पूरे 28 पौधों से आंकड़ा तैयार कर लाई थी। खुशी की बात यह थी कि इन महिलाओं ने अभी तक अपने खेत में एक छटाक भी  कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया है। पाठशाला के दौरान महिलाओं ने कपास के फूलों पर तेलन का हमला देखा। महिलाओं ने पाया कि तेलन द्वारा सिर्फ फूल की पुंखडि़यां व नर पुंकेशर खाए हुए थे, जबकि स्त्री पुंकेशर सुरक्षित था। तेलन द्वारा खाए गए फूलों से फसल के उत्पादन पर कोई प्रभाव पड़ता है या नहीं इसे परखने के लिए महिलाओं ने इन फूलों को धागे बांधकर इनकी पहचान की। ताकि इससे यह पता चल सके की इन फूलों से फल बनता है या नहीं। ललीतखेड़ा में चल रही इस महिला पाठशाला में ललीतखेड़ा गांव से नरेश, शीला, संतोष, कविता, राजबाला, निडानी से संतोष व कृष्णा पूनिया, निडाना से कृष्णा, बीरमती, सुमित्रा, कमलेश, केलो तथा निडाना की मास्टर ट्रेनर मीनी, अंग्रेजो, बिमला, कमलेश व राजवंती मौजूद थी।

Saturday, August 4, 2012

सत्यमेव जयते के पर्दे पर दिखेंगी कीटों की मास्टरनी

  निडाना व ललीतखेड़ा की महिलाएं अब सत्यमेव जयते के पर्दे पर नजर आएंगी। कीटों की इन मास्टरिनयों से रू-ब-रू होने के लिए शनिवार को दिल्ली से सत्यमेव जयते की टीम ललीतखेड़ा गांव के खेतों में चल रही महिला किसान पाठशाला पहुंची। इस दौरान टीम ने लगभग आधे घंटे तक ललीतखेड़ा व निडानी की महिलाओं से कीटनाशक रहित खेती पर सवाल-जवाब किए व उनके अनुभव को अपने कैमरे में कैद किया। दरअसल सत्यमेव जयते की ये टीम अपने 'असर' कार्यक्रम की शूटिंग के लिए यहाँ आई थी और इसी  कार्यक्रम के लिए महिलाओं के शाट लिए।
निडाना व ललीतखेड़ा की महिलाएं अब सत्यमेव जयते के पर्दे से दुनिया के सामने खेतों से पैदा किए गए अपने कीट ज्ञान को बांटेगी। इसकी कवरेज के लिए सत्यमेव जयते की एक टीम शनिवार को ललीतखेड़ा गांव में चल रही महिला किसान पाठशाला में पहुंची। टीम की रिपोर्टर रितू भारद्वाज ने लगातार आधे घंटे तक इन महिलाओं के बीच बैठकर कीटनाशक रहित खेती के इनके ज्ञान को परखा तथा कैमरामैन कपील सिंह ने इनके अनुभव को अपने कैमरे में कैद किया। टीम ने महिलाओं से बिना कीटनाशक के फसल से अधिक पैदावार लेने का फार्मूले पर काफी देर तक चर्चा की। महिलाओं ने भी बिना किसी झिझक के खुलकर टीम के सामने अपने विचार रखे। कीटों की मास्टर ट्रेनर सविता, मनीषा, मीना मलिक ने बताया कि उन्होंने 142 प्रकार के कीटों की पहचान कर ली है। जिसमें 43 किस्म के कीट शाकाहारी व 99 किस्म के कीट मासाहारी होते हैं। शाकाहारी कीट फसल में रस चूसकर व पत्ते खाकर अपनी वंशवृद्धि करते हैं, लेकिन मासाहारी कीट शाकाहारी कीटों को खाकर अपना गुजारा करते हैं। इस प्रकार मासहारी कीट शाकाहारी कीटों को चट कर देते हैं। कीटों के जीवनचक्र के दौरान किसान को कीटनाशक का प्रयोग करने की जरुरत नहीं पड़ती। आज किसान को अगर जरुरत है तो वह है कीटों का ज्ञान अर्जित करने की। कीट मित्र किसान रणबीर मलिक ने टीम द्वारा पुछे गए बिना कीटनाशक का प्रयोग किए अच्छी पैदावार लेने के सवाल का जवाब देते हुए मलिक ने बताया कि अच्छी पैदावार के लिए दो चीजों की जरुरत होती है। पहली तो सिंचाई के लिए अच्छे पानी व दूसरी खेत में पौधों की पर्याप्त संख्या। खेत में अगर पौधों की पर्याप्त संख्या होगी तो अधिक पैदावार अपने आप ही मिल जाएगी। किसान रामदेवा ने टीम के सामने कीटनाशक का प्रयोग न करने वाले एक किसान का ताजा उदहाराण रखते हुए बताया कि उनके पड़ोसी किसान कृष्ण की गन्ने की फसल में काली कीड़ी का काफी ज्यादा प्रकोप हो गया था, लेकिन कृष्ण ने एक बार भी अपनी फसल में कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया। कुछ दिन बाद काली कीड़ी को मासाहारी कीटों ने चट कर उसका खात्मा कर दिया और आज कृष्ण की गन्ने की फसल सुरक्षित है। इस प्रकार किसान का कीटनाशक पर खर्च होने वाला पैसा भी बच गया और उसकी फसल जहर से भी बच गई। इस दौरान टीम ने महिलाओं द्वारा कीटों पर लिखे गए गीतों की रिकार्डिंग भी की। बाद में महिलाओं ने टीम को हथजोड़ा कीट का चित्र स्मृति चिह्न के रूप में भेंट किया।
महिलाओं की कायल हो गई टीम की रिपोर्टर: टीम की रिपोर्टर रितू भारद्वाज कार्यक्रम की रिकार्रिंड़ग के दौरान महिलाओं से सवाल-जवाब करते समय उनके अनुभव को देखकर उनकी कायल हो गई। रितू ने इन महिलाओं से प्रेरणा लेकर इस अभियान की जमीनी हकीकत से रू-ब-रू होने के लिए महिलाओं से दौबारा अपने पिता के साथ उनकी पाठशाला में आने का वायदा किया।

पाठशाला में महिलाओं को कैमरे में शूट करते टीम के सदस्य।
 टीम की रिपोर्टर को स्मृति चिह् भेंट करती महिलाएं।



Wednesday, August 1, 2012

कीटों की ‘कलाइयों’ पर भी सजा बहनों का प्यार

भाई व बहन के प्यार के प्रतीक रक्षाबंधन के त्योहार पर आप ने बहनों को भाइयों की कलाइओं पर राखी बांधते हुए तो खूब देखा होगा, लेकिन कभी देखा या सुना है कि किसी लड़की या किसी महिला ने कीट को राखी बांधकर अपना भाई माना हो और कीट ने उसे राखी के बदले कोई शुगुन दिया हो नहीं ना। लेकिन निडाना व ललीतखेड़ा गांव की महिलाओं ने रक्षाबंधन के अवसर पर कीटों की कलाइयों पर बहन का प्यार सजाकर यानि राखी बांधकर ऐसी ही एक नई रीति की शुरूआत की है। महिलाओं ने कीटों के चित्रों पर प्रतिकात्मक राखी बांध कर इन्हें अपने परिवार में शामिल कर इनको बचाने का संकल्प लिया है। कीट मित्र महिला किसानों ने बुधवार को ललीतखेड़ा गांव में पूनम मलिक के खेतों पर आयोजित महिला किसान पाठशाला में रक्षाबंधन के अवसर पर मासाहारी कीटों के चित्रों पर राखी बांध कर कीटों को भाई के रूप में अपना लिया। इसके साथ ही इन अनबोल मासाहारी कीटों ने भी इन महिला किसानों को शुगुन के रूप में उनकी थाली से जहर कम करने का आश्वासन दिया। रक्षाबंधन के आयोजन से पहले महिला किसान पाठशाला की रूटिन की कार्रवाई चली। महिला किसानों ने कपास की फसल का अवलोकन कर कीट बही-खाता तैयार किया।
निडाना व ललीतखेड़ा की महिला किसान पाठशाला की महिलाओं ने भाई-बहन के प्यार के प्रतिक रक्षाबंधन के पर्व पर कीटों को राखी बांधकर नई परंपरा की शुरूआत की है। इन महिला किसानों द्वारा शुरू की गई इस नई परंपरा से जहां कीटों को तो पहचान मिलेगी ही, साथ-साथ हमारे पर्यावरण पर भी इसके सकारात्मक प्रभाव पड़ेंगे। कीट मित्र महिला किसानों ने बुधवार को महिला किसान पाठशाला में मासहारी कीट हथजोड़े को राखी बांधकर सभी मासाहारी कीटों को अपना भाई स्वीकार कर उन्हें अपने परिवार का अंग बना लिया। महिलाओं ने राखी बांधकर यह संकल्प लिया कि वे फसल में मौजूद कीटों की सुरक्षा के लिए अपनी फसल में किसी भी प्रकार के कीटनाशक का प्रयोग नहीं करेंगी। इसके साथ-साथ महिलाओं ने ‘हो कीड़े भाई म्हारे राखी के बंधन को निभाना’ गीत गाकर कीटों से राखी के शुगुन के तौर पर उनकी फसल की सुरक्षा करने की विनित की। महिलाओं ने रक्षाबंधन की पूरी परंपरा निभाई तथा कीटों के चित्रों को राखी बांधने के बाद उनकी आरती भी उतारी। इसके अलावा महिलाओं ने ‘ऐ बिटल म्हारी मदद करो हामनै तेरा एक सहारा है, जमीदार का खेत खालिया तनै आकै बचाना है’, ‘निडाना-खेड़ा की लुगाइयां नै बढ़ीया स्कीम बनाई है, हमनै खेतां में लुगाइयां की क्लाश लगाई है’, ‘अपने वजन तै फालतु मास खावै वा लोपा माखी आई है’ आदि भावुक गीत गाकर किसानों को झकझोर कर रख दिया। अंग्रेजो, गीता मलिक, बिमला मलिक, कमलेश, राजवंती, मीना मलिक ने बताया कि किसान जानकारी के अभाव में अपनी फसल के रक्षकों के ही भक्षक बन जाते हैं। उन्होंने बताया कि फसल में दो प्रकार के कीट होते हैं एक शाकाहारी व दूसरे मासाहारी। मासाहारी मास खाकर अपनी वंशवृद्धि करते हैं। शाकाहारी फसल के फूल, पत्ते खाकर व इनका रस चूसकर अपना जीवनचक्र चलाते हैं। खान-पान के अधार पर शाकाहारी कीट भी दो प्रकार के होते हैं। एक डंक वाले व दूसरे चबाकर खाने वाले। पाठशाला की शुरूआत के साथ ही महिलाओं ने अपने रूटिन के कार्य पूरे किए। महिलाओं ने फसल का अवलोकन कर कीट बही-खाता तैयार किया। बही-खाते में दर्ज रिपोर्ट के आधार पर फसल में अभी तक किसी भी प्रकार के कीटनाशक की जरुरत नहीं थी। इस अवसर पर पाठशाला के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल के साथ खाप पंचायतों के संयोजक कुलदीप ढांडा, कीट कमांडो किसान रणबीर मलिक, मनबीर रेढू, रमेश सहित अन्य किसान भी मौजूद थे।  

140 पर पहुंची कीटों की गिनती

 कीटों को राखी बांधने से पहले थाली सजाती महिलाएं।

 कीटों को राखी बांधने से पहले थाली सजाती महिलाएं।

हथजोड़ा नामक कीट के चित्र की आरती उतारती महिलाएं।

हथजोड़ा नामक कीट के चित्र पर तिलक करती महिलाएं

बहना की कलाई पर राखी बंधवाने पहुँचा - मटकू बुग्ड़ा

Wednesday, July 18, 2012

पाठशाला का पाँचवां सत्र

नजारा है ललीतखेड़ा गांव की महिला किसान पाठशाला का। पाठशाला की शुरूआत के साथ ही किसान कविता ने महिलाओं को एक नई किस्म का कीट दिखाया, जिसका पेट भिरड़ जैसा था व् पंख ड्रैगन फ़्लाई जैसे। इस कीट को निडाना व ललीतखेड़ा की महिलाओं ने खेतों में पहली बार देखा था। कीट को देखते ही नारो पूछ बैठती है आएं यू डांगरां की माच्छरदानी आला कीड़ा आड़ै खेतां में के कैरा सै। इसे-इसे कीड़े तो डांगरां की माच्छरदानी में घैने पाया करें सैं। कविता ने नारो की बात को बीच में ही काटते हुए महिलाओं को नए कीट के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि यह नए किस्म की लोपा मक्खी है जो खान-पान के आधार पर मासाहारी होती है। इस मक्खी की तीन जोड़ी पैर व दो जोड़ी पंख होते हैं। अकसर किसान इसे हैलीकॉपटर के नाम से पुकारते हैं। कविता ने बताया कि यह धान में लगने वाले तना छेदक, पत्ता लपेट के पतंगों का उडते हुए शिकार कर लेती है। कविता ने कहा कि जब पतंगे नहीं रहेंगे तो अंडे कहां से आएंगे और अंडे ही नहीं होंगे तो सुंडी नहीं आएंगी। सविता ने बताया कि लोपा मक्खी अपने अंडे धान के खेत में खड़े पानी में देती है। पानी में पैदा होने वाले इसके बच्चे भी मासाहारी होते हैं। शीला ने बताया कि इसे जिंदा रहने के लिए खाने में अपने वजन से ज्यादा मास चाहिए। शीला की बात सुनकर नारों की आंखें खुली की खुली रह गई। नारो ने पूछा आएं फेर यू खेतां का कीड़ा है तो माच्छरदानी में कै करया कैरै सै। कृष्णा ने नारो के सवाल का जवाब देते हुए बताया यू कीड़ा उड़ै माच्छरां नै खाया करै सै। इस बात पर बहस करने के बाद महिलाओं ने कीट बही खाता तैयार करने के लिए कपास के पौधों का सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण के दौरान महिलाओं ने पाया कि कपास की फसल में पाने वाले शाकाहारी कीट सफेद मक्खी, हरा तेला, चूरड़ा, मिलीबग कोई भी  फसल में हानि पहुंचाने की स्थिति में नहीं था। रही बात मासाहारी कीटों की, कपास की फसल में कोई भी पौधा ऐसा नहीं था, जिस पर फलेरी बुगड़े के बच्चे (निम्प) मौजूद न हों। शीला ने बताया कि फलेरी बुगड़े के बच्चे शाकाहारी कीटों का खून पीकर गुजारा करते हैं। कीट सर्वेक्षण के आधार पर तैयार किए गए बही खाते से महिलाओं को कपास की फसल में किसी भी प्रकार के कीटनाशक के प्रयोग की जरुरत महसूस नहीं हुई। खाप पंचायत के संयोजक कुलदीप ढांडा ने कहा कि पृथ्वी पर साढ़े तीन करोड़ साल पहले पौधे विकसित हुए थे और पौधों पर गुजारा करने के लिए कीट


फसल में पाए गए लालड़ी कीट का फोटो
आए थे। जबकि किसानों ने तो खेती की शुरूआत के साथ ही पौधों पर कब्जा करना शुरू किया है। कीटों व किसानों की इस अनावश्यक जंग में निश्चित तौर पर कीटों का पलड़ा भारी है। क्योंकि कीटों में इंसान की अपेक्षा प्रजजन करने की क्षमता अधिक व खुराक की जरुरत कम होती है। पंखों की वजह से कीटों के बच निकलने की संभावना भी ज्यादा रहती है।

किसान हरे नहीं पीले हाथ करने की चिंता करें

किसान पाठशाला की मास्टर ट्रेनर शीला ने कहा कि धान की फसल में लोपा मक्खी आने के बाद किसानों को धान में फूट के नाम पर डाली जाने वाली कीड़े मारने वाली हरी दवाई से हरे हाथ करने की जरुरत नहीं है। इसकी चिंता तो किसान लोपा मक्खी पर छोड़ अपने विवाह योग्य पुत्र-पुत्रियों के हाथ पीले करने की चिंता करें।
अन्य फसलों के कीटों ने भी महिलाओं से बनाई दोस्ती
 किसान पाठशाला में खाप प्रतिनिधि के साथ विचार-विमर्श करती महिलाएं।
कीटों के प्रति महिला किसानों के सकारात्मक रवैये को देखकर दूसरी फसलों के कीटों ने भी महिलाओं से दोस्ती बना ली है। बुधवार को ललीतखेड़ा में आयोजित महिला किसान पाठशाला में कीट सर्वेक्षण के दौरान लालड़ी व अखटिया बग भी महिलाओं के बीच आ गए। कविता ने बताया कि लालड़ी कीट अकसर घीया, तोरी, कचरी की बेलों पर पाया जाता है। यह कीट बेल के पत्ते खाकर अपना गुजारा करता है। अखटिया बग औषधीय आख के पौधे पर पाया जाता है। यह कीट भी रस चूसकर अपना जीवन चक्र चलाता है।



Tuesday, October 26, 2010

महिला खेत पाठशाला का बीसवां सत्र


आज इस महिला खेत पाठशाला का बीसवां स्तर है। महिलाएं पाठशाला में पहुँचते ही आमतौर पर कपास के खेत में कीट निहारने और पहचानने के काम में मशगुल हो जाती हैं। आज भी जब भास्कर की टीम श्री सुशील भार्गव के नेतृत्व में यहाँ खेतों में भास्कर खेत दिवस मनाने के लिए पहुंची तो यहाँ की महिलाएं एक दुसरे को कीटों की जानकारी दे रही थी।  अंग्रेजो किसी महिला को रेड काटन बग दिखा रही थी। उसने श्री सुशील भार्गव को भी यह बग दिखाया। देखते-देखते ही कपास के इस खेत में 75 से ज्यादा महिला एवं पुरुष किसान इक्कठे हो गये. निडाना के अलावा निडानी से, भैरों खेड़ा से, ललित खेड़ा से, चाबरी से, पढ़ाना से, शामलो कलां से, रुपगढ़ से व् राजपुरा से भी किसान इस खेत दिवस में भाग लेने पहुंचे। कृषि विभाग की तरफ से विषय विशेषग डा.राजपाल सूरा व् डा.रणधीर सांगवान भी इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने समय पर ही पधार गये। जिला जींद की प्रगतिशील किसान क्लब के प्रधान श्री कली राम भी प्रोग्राम शुरू होने से पहले ही आ पधारे। आज संयोगवस करवा चौथ का त्यौहार भी है। इस दिन महिला अपने पति  की लम्बी उम्र की कामना के लिए व्रत रखती हैं। पर आज महिलाओं ने जहर मुक्त खेती के लिए मांसाहारी कीड़ों की महती भूमिका को मध्य नजर रखते हुए कीट पूजन भी किया। इसके बाद आज के भास्कर खेत दिवस की विधिवत शुरुवात हुई। इसकी प्रधानता मीनी मालिक ने व् मंच संचालन डा.कमल सैनी ने किया।  डा.राजपाल सूरा ने विस्तार से  रबी सीजन में फसलों की खेती बारे प्रभावकारी बिन्दुवों/नुक्तों की जानकारी किसानों को दी। डा.कमल सैनी ने गेहूं में बीज उपचार की जानकारी देते हुए वास्तविक रूप में किसानों के सामने इसे करके भी दिखाया। इसी दौरान करनाल से कृषि विभाग की चलयान मिटटी जांच प्रयोगशाला भी यहाँ मौके पर मिटटी जांचने के लिए आ पहुंची। कार्यक्रम के बीच में ही डा.सुरेन्द्र दलाल ने उपस्तिथ किसानों से कार्यक्रम के बाद अपने-अपने खेतों से जांच के लिए मिटटी के नमूने लेन की अपील की तथा कप्तान ने मौके पर ही मिटटी के सही ढंग से नमूने लेने का प्रायोगिक प्रदर्शन किया। इसके बाद जिला जींद की प्रगतिशील किसान क्लब के प्रधान श्री कली राम ने भी किसानों को संबोधित किया व् बागवानी के बारे में अपने निजी अनुभव किसानों के साथ साझा किये। निडाना गावं की तरफ से महिला खेत पाठशाला की सदस्यों ने दैनिक भास्कर के पत्रकारों सर्वश्री सुशील भार्गव, जितेन्द्र बुरा व् विकास को स्मृति चिन्ह सप्रेम भेंट किये। इसी समय आज के कार्यक्रम में पधारे सभी मेहमानों को ललित खेड़ा के किसान रमेश मलिक द्वारा लाई गयी विषमुक्त कच्चरियाँ भी भेंट की गयी। अंत में मिनी मलिक ने महिला खेत पाठशाला की गतिविधियों व् उपलब्धियों पर पूरा प्रकाश डालते हुए इस प्रोग्राम में भाग लेने वालों का धन्यवाद करते हुए कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा की। इसी समय उपस्तिथ सभी लोगों को कीट प्रसादा भी खिलाया गया।

 जब तक मेहमान चाय-पानी पीते,  किसानों द्वारा जांच के लिए मिटटी के ९८ नमूने जमाँ करवाए जा चुके थे।

Tuesday, October 19, 2010

महिला खेत पाठशाला का उन्नीसवां सत्र


अनीता राजबाला को कीट दिखाते हुए.
निडाना के पूर्वी आसमान में दिनकर की लेटलतीफी व किसानों के कन्धों पर काम की मारामारी को मध्यनज़र रखते हुए विद्यार्थियों ने इस खेत पाठशाला की पहली घंटी बजाने का समय अब प्रात: नौ बजे का कर रखा है. घर के काम-काज निपटा कर तकरीबन सभी महिलाएं नौ और साढ़े नौ के बीच  खेत पाठशाला में पहुच जाती हैं. आज भी यही हुआ. पाठशाला शुरू होते ही महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक में कार्यरत अर्थशास्त्र के प्रोफेसर डा.राजेन्द्र चौधरी के नेतृत्व में सोनीपत, झज्जर व रोहतक जिलों के पाँच गावँ से किसानों का एक जत्था भी इन महिलाओं से विचार साझा करने इस पाठशाला में पहुँचा.गौरतलब है कि इस जत्थे में डीघल गावं से  एक महिला किसान राजबाला भी शामिल थी.इस जत्थे में डीघल गावं से ही तेज़ प्रकाश, बहुज़मालपुर से नरेश बल्हारा, भूरैन से फौजी ओमप्रकाश, आहुलाना से रनबीर व लाखनमाज़रा से नारायण सम्मेत अनेक किसान थे.  मिनी मलिक, सुदेश, रणवीर मलिक व डा.कमल सैनी ने इस जत्थे का निडाना पहुँचने पर स्वागत किया. आपस में परिचय के बाद पाठशाला की महिलाओं ने इन मेहमानों को कपास के इस खेत में देखे गये कीटों के बारे में फ्लेक्स बोर्डों के माध्यम से जानकारी दी. इस काम में आज कमलेश, राजवंती, अंग्रेजों, गीता, सुदेश, मिनी अनीता ने महिलाओं की अगवाई की. इसके बाद महिलाएं अपने चिर-परिचित समूह बनाकर कीट अवलोकन व निरिक्षण के लिए कपास के खेत में उतरी. इन महिलाओं के हर ग्रुप के साथ दो-दो मेहमान किसान भी शामिल हो लिए. भिड़ते ही अनीता ने अपने मेहमानों को मिलीबग का आक्रमण व इसे नियंत्रण करने वाला अंगिरा दिखाया. बीरमतीप्रकासी के ग्रुप ने नगीना बग दिखाया और बताया कि यह बग कपास की फसल में रस चूस कर थोड़ी-बहुत हानि पहुँचाता है. इससे डरने की कोई बात नही. आध-पौन घंटे में ही निडाना की इन महिलाओं ने मेहमान किसानों को दर्जनों शाकाहारी एवं मांसाहारी कीट कपास की इस फसल में दिखाए. इन महिलाओं ने मेहमानों को बताया कि हर शाकाहारी कीट फसल के लिए हानिकारक नही होता. इसीलिए तो हर किसान को फसलों में पाए जाने वाले सभी कीटों कि पहचान एवं जानकारी होना लाजिमी है. इसीलिए तो हम हर हफ्ते मंगलवारके दिन हम राजबाला के इस खेत में कपास की फसल में पाए जाने वाले कीड़ों का हिसाब लगाती हैं.  हानिकारक कीटों का आर्थिक स्तर देखती हैं. मित्र कीटों की संख्या देखती हैं. इन सभी बिन्दुओं को ध्यान में रख कर कीटनाशकों के इस्तेमाल करने या ना करने का फैसला करती हैं. ख़ुशी की बात है कि मजबूत पारिस्थितिक-तंत्र के चलते हमे बुवाई से लेकर अभी चुगाई तक कपास की फसल में कीड़े काबू करने के लिए एक बार भी कीटनाशकों के प्रयोग की जरुरत नही पड़ी. हमने खेत के कच्चे रास्तों, खेत की बाड़ व डोले एवं नालियों के किनारे खड़े गैरफसली पौधों को ना तो उखाड़ा ही और ना ही इनसे कोई छेड़खानी की. इन गैरफसली पौधों ने ही यहाँ के स्थानीय पारिस्थितिक-तंत्र को हमारे हक में मोड़ने के लिए महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई.



अब महिलाओं के हर ग्रुप ने चार्टों क़ी सहायता से अपनी-अपनी रिपोर्ट सबके सामने प्रस्तुत की. सबकी रिपोर्ट सुनने पर मालूम हुआ कि इस सप्ताह भी राजबाला के इस खेत में कपास की फसल पर तमाम नुक्शानदायक कीट हानि पहुँचाने के आर्थिक स्तर से काफी नीचे हैं तथा हर पौधे पर मकड़ियों की तादाद भी अच्छी खासी है. इसके अलावा लेडी-बीटल, हथजोड़े, मैदानी-बीटल, दिखोड़ी, लोपा, छैल, व डायन मक्खियाँ, भीरड़, ततैये व अंजनहारी आदि मांसाहारी कीट भी इस खेत में नजर आये हैं. मिलीबग के नियंत्रण में खास योगसन देने वाला परजीव्याभ अंगिरा भी इस खेत में सक्रिय है.  सभी मेहमान एवं पाठशाला की महिलाएं इस बात पर सहमत हुई कि इस सप्ताह भी कपास के इस खेत में राजबाला को कीट नियंत्रण के लिए किसी कीटनाशक का छिड़काव करने की आवश्यकता नही है. यहाँ गौर करने लायक बात यह है कि रानी, बिमला, सुंदर, नन्ही, राजवंती, संतराबीरमती आदि को भी अपने खेत में कपास की बुवाई से लेकर अब चुगाई तक कीट नियंत्रण के लिए कीटनाशकों के इस्तेमाल की आवश्यकता नहीं पड़ी. इनके खेत में कीट नियंत्रण का यह काम तो किसान मित्र मांसाहारी कीटों, मकड़ियों, परजीवियों तथा रोगाणुओं ने ही कर दिखाया.
हालाँकि जत्थे में शामिल लाखनमाज़रा का प्रगतिशील किसान नारायण आज रह-रह कर इन महिलाओं को कीट नियंत्रण के लिए उसके द्वारा तैयार देशी कीटनाशक के बारे में बताने के लिए उतारू  था. पर अब वह आपने अमरुद के बाग़ में फलों में पाई जाने वाली सूंडी के नियंत्रण के लिए मित्र कीट व मित्र जीवाणुओं की जानकारी इन महिलाओं से जुटाना चा रहा था.महिलाओं ने भी इस किसान को बताया कि इसके लिए तो नारायण को आपने बाग़ में पारिस्थितिक-तंत्र का  विस्तार से अध्यन करना होगा. आज ही दोपहर को इण्डिया न्यूज, हरियाणा टेलीविजन चॅनल की टीम इस महिला खेत पाठशाला की कवरेज के लिए यहाँ पहुंची. अपने कैमरामैन श्री रोहताश भोला के साथ श्री सुनील मोंगा ने कड़ी मेहनत, पूरी लगन  व सच्ची आत्मतियता के साथ इस खेत पाठशाला की न्यूज तैयार की. उपरोक्त टी.वी.चॅनल ने 21 अक्तूबर, 10   को प्राईम समय पर शायं 8 :30 बजे प्रसारित किया. अगले दिन भी इस खबर को चार बार रिपीट किया गया.


Tuesday, September 7, 2010

महिला खेत पाठशाला का तेरहवां सत्र


डा.कमल लैपटाप पर 

अवलोकन एवं निरिक्षण 
एकाग्रता 
चुघड़ो बीटल

हथजोड़े की अंडेदानी 
हथजोड़ा 
सैनिक बीटल 
मैदानी बीटल 
नेफड़ो का प्रौढ़
सिम्मड़ो का गर्ब
लपरो बीटल 
डा. सूरा सेब भेंट करते हुए
हथजोड़े की अंडेदानी 


हालाँकि आज के दिन एक तरफ तो राष्ट्रिय हड़ताल का आह्वान था तथा दूसरी तरफ सुबह सात बजे से ही तेज़ बारिस को रही थी. फिर भी आज दिनांक 7 /9 /10 को निडाना गावँ में चल रही महिला खेत पाठशाला के तेरहवें सत्र का आयोजन किया गया. सत्र का आरंभ रनबीर मलिक, मनबीर रेड्हू व डा.कमल सैनी के नेतृत्व में महिलाओं द्वारा अपने पिछले काम की विस्तार से समीक्षा तथा दोहराई से हुआ. डा.कमल सैनी ने लैपटाप के जरिये महिलाओं को उन तमाम मांसाहारी कीटों के चमचमाते फोटो दिखाए जो अब तक निडाना के खेतों में पकड़े जा चुके हैं. इनमे लोपा, छैल, डायन, सिर्फड़ो व टिकड़ो आदि छ किस्म की तो मक्खियाँ ही थी. इनके अलावा एक दर्जन से अधिक किस्म की लेडी-बीटल, पांच किस्म के बुगड़े, दस प्रकार की मकड़ी, सात प्रजाति के हथजोड़े व अनेकों प्रकार के भीरड़-ततैये-अंजनहारी आदि परभक्षियों के फोटो भी महिलाओं को दिखाए गये. गिनती करने पर मालुम हुआ कि अभी तक कुल मिलाकर सैंतीस किस्म के मित्र कीटों की पहचान कर चुके हैं जिनमें से छ किस्म के खून चुसक कीड़े व इक्कतीस तरह के चर्वक किस्म के परभक्षी हैं. स्लाइड शौ के अंत में महिलाओं को मिलीबग को कारगर तरीके से ख़त्म करने वाली अंगीरा, फंगिरा व जंगिरा नामक सम्भीरकाओं के फोटो दिखाए गये. इस मैराथन समीक्षा के बाद महिलाएं कपास की फसल का साप्ताहिक हाल जानने के लिए पिग्गरी फार्म कार्यालय से निकल कर राजबाला के खेत में पहुंची. याद रहे डिम्पल की सास का ही नाम है-राजबाला. आज निडाना में क्यारीभर बरसात होने के कारण राजबाला के इस खेत में भी गोडै-गोडै पानी खड़ा है. इस हालत में जुते व कपड़े तो कीचड़ में अटने ही है. इनकी चिंता किये बगैर महिलाएं अपनी ग्रुप लीडरों सरोज, मिनी, गीता व अंग्रेजो के नेतृत्व में कीट अवलोकन, सर्वेक्षण, निरिक्षण व गिनती के लिए कपास के इस खेत में घुसी. महिलाओं के प्रत्येक समूह ने दस-दस पौधों के तीन-तीन पत्तों पर कीटों की गिनती की. इस गिनती के साथ अंकगणितीय खिलवाड़ कर प्रति पत्ता कीटों की औसत निकाली गई. महिलाओं के हर ग्रुप ने चार्टों क़ी सहायता से अपनी-अपनी रिपोर्ट सबके सामने प्रस्तुत की. सबकी रिपोर्ट सुनने पर मालूम हुआ कि इस सप्ताह भी राजबाला के इस खेत में कपास की फसल पर तमाम नुक्शानदायक कीट हानि पहुँचाने के आर्थिक स्तर से काफी निचे हैं तथा हर पौधे पर मकड़ियों की तादाद भी अच्छी खासी है. इसके अलावा लेडी-बीटल, हथजोड़े, मैदानी-बीटल, दिखोड़ी, लोपा, छैल, व डायन मक्खियाँ, भीरड़, ततैये व अंजनहारी आदि मांसाहारी कीट भी इस खेत में नजर आये हैं.  थोड़ी-बहुत नानुकर के बाद सभी महिलाएं इस बात पर सहमत थी कि इस सप्ताह भी कपास के इस खेत में राजबाला को कीट नियंत्रण के लिए किसी कीटनाशक का छिड़काव करने की आवश्यकता नही है. यहाँ गौर करने लायक बात यह है कि रानी, बिमला, सुंदर, नन्ही, राजवंती, संतरा व बीरमती आदि को अपने खेत में कपास की बुवाई से लेकर अब तक कीट नियंत्रण के लिए कीटनाशकों के इस्तेमाल की आवश्यकता नहीं पड़ी. इनके खेत में कीट नियंत्रण का यह काम तो किसान मित्र मांसाहारी कीटों, मकड़ियों, परजीवियों तथा रोगाणुओं ने ही कर दिखाया. ठीक इसी समय कृषि विभाग के विषय विशेषग डा.राजपाल सूरा भी महिला खेत पाठशाला में आ पहुंचे. रनबीर मलिक ने खेत पाठशाला में पधारने पर डा.राजपाल सूरा का स्वागत किया. परिचय उपरांत, डा.सूरा ने इन महिलाओं से कीट प्रबंधन पर विस्तार से बातचीत की. उन्होंने बिना जहर की कामयाब खेती करने के इन प्रयासों की भूरी-भूरी प्रशंसा करते हुए, महिलाओं से इस काम को अन्य गावों में भी फैलाने की अपील की. इसके बाद अंग्रेजो ने महिलाओं को सेब वितरित किये. ये सेब डा.सूरा स्वयं के खर्चे से जींद से ही खरीद कर लाये थे. जिस समय महिलाएं सेब खा रही थी ठीक उसी समय मनबीर व रनबीर कहीं से गीदड़ की सूंडी समेत कांग्रेस घास की एक ठनी उठा लाये. इसे महिलाओं को दिखाते हुए, उन्होंने महिलाओं को बताया कि यह गीदड़ की सूंडी वास्तव में तो मांसाहारी कीट हथजोड़े की अंडेदानी है. इसमें अपने मित्र कीट हथजोड़े के 400 -500 अंडे पैक हैं. सत्र के अंत में डा.सुरेन्द्र दलाल ने मौसम के मिजाज को मध्यनज़र रखते हुए इस समय कपास की फसल को विभिन्न बिमारियों से बचाने के लिए किसानों को 600 ग्राम कापर-आक्सी-क्लोराइड व 6 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन का 150-200 लिटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करने की सलाह दी.