Sunday, March 4, 2012

अंतर्राज्य अनावरण यात्रा-II

इस सदी के साल बारह की चौबीस फरवरी को कलेवार सी निडाना गावं से महिलाओं का एक जत्था पांच दिन की  अंतर्राज्य अनावरण यात्रा पर निकला। कृषि विभाग द्वारा आत्मा स्कीम के अंतर्गत प्रायोजित इस जत्थे में निडाना, निडानी व् ललित खेड़ा से वो महिलाएं थी जिन्होंने कीट साक्षरता अभियान में किसी न किसी रूप में भागेदारी की थी। कृषि विभाग की तरफ से इस यात्रा के लिए कृषि अधिकारियों डा.सुरेन्द्र दलाल व् डा.कमल सैनी को जिम्मेवारी सौंपी गयी तथा महिला किसानों व् उनके परिवार वालों की ओर से उनके कीट प्रशिक्षकों श्री रणबीर मलिक व् मनबीर रेड्हू को इस अनावरण यात्रा की कमान के लिए जत्थे के साथ भेजा गया। सुगम एवं सुविधाजनक यात्रा के लिए ह्मेटी जींद की मिनी बस किराये पर ली गई जिसका किराया मैदानी भागों में यात्रा के लिए महज 16  रुपये प्रति किलोमीटर तथा पहाड़ी क्षेत्रों में 20  रुपये प्रति किलोमीटर ही था।
     गावं से रवानगी के साथ ही महिलाओं ने अपने निजी अनुभवों व् कीटों से सम्बंधित गीत गाने शरू किये। गीत गाते व् सुनते हुए कब पिलुखेड़ा पहुँच गये, किसी को मालूम ही नही पड़ा। जमनी अड्डे पर पहुचने से पहले ही अनारों ने सभी को अपने पीहर जामनी में चाय के लिए हाथ जोड़कर निमन्त्रण देना शुरू किया। वक़्त के तकाजे को मध्य नजर रखते हुए जत्था इस निमन्त्रण को स्वीकार नही कर सका। पानीपत की तरफ बस का मुहं होते ही नारों ने गाना शुरू किया, " निडाना-खेड़ा में कोए छोरी ना ब्याहियों, लम्बी सीम बताई..."  फिर यात्रा पर निकलते समय घर के सदस्यों द्वारा उपहारों की अपील व् स्वयं की असमर्थता पर मार्मिक गीत गाया। पानीपत में सनौली रोड पर पहुँचने पर मनबीर व् रणबीर ने महिलाओं के लिए चल-अल्पाहार का प्रबंध किया। पानीपत से निकलते ही यह जत्था पानीपत की तीन महशूर लड़ाईयों की याद में बने युद्ध स्मारक स्थल को देखने काला अम्ब पहुंचा। पानीपत की इन तीनों लड़ाईयों में दोनों तरफ की फौजों के लाव-लश्कर व् तामझाम की जानकारी हासिल कर महिलाएं आश्चर्यचकित रह गई व् राज की हवस में हुए बेमतलब कत्लोगारत को लेकर इनका मन भारी हो गया। इस भारी मन के साथ ही दिन के 12 :00  बजे  सनौली गावं पार करके बस में बैठे-बैठे ही जमुना के दर्शन किये और इसको पार करके उत्तर प्रदेश में प्रवेश किया। सड़क के दोनों ओर लहलाती गन्ने और गेहूं की फसलों को निहारते यह जत्था कैराना बाईपास होते हुए झोटा-बुग्गियों के लिए जाने जानेवाले कस्बे शामली में पहुंचा। जगह-जगह पर जाम। कस्बे को पार करने में ही दो घंटे लग गये।  पग-पग पर यातायात बाधाओं को पार करने में मिनीबस में बैठे-बिठाये अनावरण यात्री तो बोर हुए ही हुए, बूढी बस स्वयम भी थक गयी। पग-पग पर आगे सरकने के लिए धक्के मांगने लगी। ख़ैर कैसे भी शामली से मुज्ज़फरनगर को जाने वाली सड़क पकड़ी। ओर इसी मार्ग पर बघरा में सड़क किनारे शिव शक्ति ढाबे पर दोपहर का भोजन करने के लिए बस रोकी। दिन के ढाई बज चुके थे। सभी ने इत्मिनान से भोजन किया। भोजन साफ सुथरा व् स्वादिष्ट था। होटल का भोजन पचाने के लिए ट्रक ड्राईवरों की तर्ज़ पर चाय की चुस्कियां ली। ओर बस में बैठ लिए। बस ने स्टार्ट होने में आनाकानी की। शायद शामली वाली थकान अभी उतरी नही थी। धक्का लगाते ही वो भी चल पड़ी। बघरा में बस को मिस्त्री से चेक करवाया गया। बघरा से निकलते ही नारों ने फिर तान छेड़ी, "शीशम का मेरा कुर्ता.. कीकर का मेरा घाघरा...।"  मुज़फ्फरनगर की बाईपास से दिल्ली-हरिद्वार राष्ट्रिय राजमार्ग पकड़ा। रूडकी पहुँचते-पहुँचते दिन छुप चूका था। रात के अँधेरे में रौशनियों से जगमगाते शहर रूडकी को बीचों -बीच पार करते हुए  दिल्ली-हरिद्वार राष्ट्रिय राजमार्ग पर ही यहाँ से कोई 10 -12  किलोमीटर दूर पतंजली योगपीठ फेज़-II के गेट पर रुके। डा.कमल सैनी व् मनबीर पूछताछ के लिए अंदर गये। बड़ा तामझाम समय तो लगना ही था।  इसी समय रात्रि के पश्चिमी आसमान में तीज के चंद्रमा को बृहस्पति व् शुक्र ग्रह घेरे हुए थे। गज़ब का नजारा था। डा.दलाल ने सभी का ध्यान इस और दिलाया। ऊपर नजर करते ही सुमित्रा बोली,"यु थोडा सा ऊपर देखों- हिरणी रही।" "हाँ, सुमित्रा सही पिछाणी। आपने बूढ़े न्यू कहा करते - हिरणी नै काढ़े कान- मूर्खा बोवै धान। मतलब यु की पहर के तड़के रात्रि के पूर्वी आसमान में हिरणी देखाई देनी शुरू होने पर धान की बीजाई का समय निकल चूका।"  रणबीर पुछन लगा अक डा.साहब वा भूरी तारी कौनसी सै? जिसने देख के मेरा बाबु कोल्हू में ज़ोट भरन जाया करदा। "तेरा बाबु के म्हारी माँ अर सासु तक न्यूँ कहा करती उठ लो ऐ, तारा लिकड़ आया।"- कई जनी एकदम चीलाई। "कोई बात नही। यु जो चाँद के निचे खूब चमकन लाग रहा सै-शुक्र ग्रह सै। इसी को भूरी तारी कहा करते। तारा डूब गया- इब रिश्ते कोन्या होवें वाला तारा भी यू शुक्र ग्रह ही होता है। साल में दो बार डूबा करै। गर्मियों में सूरज छिपने के बाद पश्चमी आसमान में तथा सर्दियों में सूरज निकलने से पहले पूर्वी आसमान में दिखाई देता है।" डा.दलाल नै बात आगे बढ़ाई। यु चाँद अर हिरणी के ठीक बीच में देखो- लाल सा तारा। इसने रोहिणी नक्षत्र कहा करै। यु वृष राशी का नक्षत्र सै। आच्छा, न्यूँ बताओ अक महीने में चाँद कितनी रातों को नजर आता है?
  "इसमें के मुश्किल सै। पंद्रह दिन दिखेगा अर पंद्रह दिन कोन्या दिखै।", मिनी के साथ-साथ कई आवाज़ आई।
"ना तो,   यु चाँद महीने में अठ्ठाइस रात दिखाई दिया करै। हर रात किसी न किसी चमकीले तारे के पास होता है। इन्हें ही नक्षत्र कहते हैं। पुरे 28 नक्षत्र। 12  नक्षत्रों के नाम तो महीनों के नाम पर ही हैं। पूर्णमासी के दिन इसी नक्षत्र के पास होता है चाँद। जैसे चैत्र माह की पूर्णमासी के दिन चाँद चित्रा नक्षत्र के पास होगा।", डा. अपनी बात आगे बढ़ा ही रहा था कि इतने में मनबीर व् डा कमल सैनी ने सुचना दी कि पतंजली योगपीठ फेज़-ई में ठहरने की व्यवस्था हो गयी है। रात्रि विश्राम के लिए इस योगपीठ के ब्लाक न.3 में कमरे बुक करवाए। बस पार्किंग में खड़ी की और ब्लाक न. III में अपने अपने कमरे संभाले। हाथ-मुहं धोये। और खाने के लिए इस कैम्पस में स्थापित प्रसादम नामक भोजनालय में पहुंचे। ज्यादातर यात्रियों ने खाना खाने की बजाय योगगुरु रामदेव के यहाँ जलेबी खाना व् दूध पीना ही पसंद किया। जलेबियों का स्वाद तो हरियाणा में घरवालों से छुपकर स्कूल या बनी में मलंगों द्वारा तैयार किये जाने वाले मालपुड़ों जैसा ही था। इसके बाद कैम्पस में चहल कदमी की व् ब्लाक न. 3 में पहुँच गये। सभी यात्री दो ग्रुपों में कम्प्यूटर पर कीट की जानकारी के लिए दो कमरों में इक्कठे हुए। रणबीर व् मनबीर ने इन महिलाओं के कीट ज्ञान में इजाफा करने की जिम्मेवारी संभाली। पुरे दो घंटे चला यह सैसन। इसके बाद सभी अपने-अपने कमरों में सोने चले गये।