Friday, October 26, 2012

महिलाओं ने कीटों की तरफ बढ़ाया दोस्ती का हाथ


पोधों पर कीटों की पहचान करती महिलाएं
पौधों कीटों की संख्या दर्ज करती महिलाएं।

 प्रजनन क्रिया करते हुए हफलो नामक लेड़ी बिटल
फसल में जिन कीटों को देखकर किसान अकसर डर जाते हैं और उन्हें अपना दुश्मन समझकर उनके खात्मे के लिए स्प्रे टंकियां उठा लेते हैं, उन्हीं कीटों को ललीतखेड़ा व निडाना गांव की महिलाएं किसान का सबसे बड़ा दोस्त बताती हैं। इसलिए इन महिलाओं ने कीटों की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया है। कीटों ने भी इनकी भावनाओं को समझते हुए इनके साथ पहचान बना ली है। इसलिए तो महिलाओं  के खेत में पहुंचते ही कीट इनके पास आकर बैठ जाते हैं। ललीतखेड़ा गांव में लगने वाली महिला किसान पाठशाला में अकसर इस तरह के नजारे देखने को मिल जाते हैं। बुधवार को आयोजित महिला किसान पाठशाला में भी इसी तरह का वाक्या सामने आया, जब एक मासाहारी दीदड़ बुगड़ा शांति नामक एक महिला के चेहरे पर आकर बैठ गया। शांति शांत ढंग से बैठी रही और पाठशाला में मौजूद अन्य सभी महिलाएं लैंस की सहायता से उसे देखने में मशगुल हो गई। अंग्रेजो ने महिलाओं को दीदड़ बुगड़ा दिखाते हुए बताया कि यह व इसके बच्चे खून चूसक होते है। इस दौरान पिंकी ने सवाल उठाया कि यह किस का खून चूसता है। मनीषा ने जवाब देते हुए कहा कि आज के दिन कपास की फसल में सफेद मक्खी, हरा तेला व चूराड़े ही मौजूद हैं। इसलिए दीदड़ बुगड़ा इन्ही कीटों का खून चूसता है। शीला ने महिलाओं को सलेटी भूंड दिखाते हुए बताया कि आज के दिन कपास में सलेटी भूंड  की तादात प्रति पौधा एक की है और यह शाकाहारी है तथा पत्तों को खाकर अपना गुजारा करता है। इसी दौरान शीला ने महिलाओं को प्रजनन क्रियाएं करते हुए हफलो नामक लेड़ी बिटल दिखाते हुए कहा कि इसके बच्चे व इसका प्रौढ़ दोनों मासाहारी होते हैं जो शाकाहारी कीटों को खा कर अपना वंश चलाते हैं। सविता ने सर्वेक्षण के दौरान महिलाओं को हरिया बुगड़े को पत्तों से रस चूसते हुए दिखाया। रणबीर मलिक ने बताया कि कपास की फसल में 2 से 28 प्रतिशत तक पर परागन होता है और यह केवल कीटों से ही संभव है। अगर किसान फसल में मौजूद कीटों के साथ छेड़खानी न करें तो पर पररागन के कारण 2 से 28 प्रतिशत तक फूल से टिंडे ज्यादा बनने की संभावाना होती है। मनबीर रेढू ने महिलाओं द्वारा खेत का सर्वेक्षण कर प्रस्तुत की गई रिपोर्ट से तैयार किए गए बही-खाते से हिसाब लगाकर बताया कि फिलहाल कपास की फसल में कोई भी शाकाहारी कीट हानि पहुचाने की स्थिति में नहीं है। मनबीर रेढू की इस बात पर पाठशाला में मौजूद कृषि अधिकारियों, खाप पंचायत के संचालक कुलदीप ढांडा व सभी महिलाओं ने सहमती जताई। विषय विशेषज्ञ डा. राजपाल सूरा ने महिलाओं को राजपुरा-माडा तथा पाली गांव का उदहारण देते हुए बताया कि राजपुरा-माडा गांव में किसानों द्वारा पाली गांव से ज्यादा कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए पाली के मुकाबले राजपुरा-माडा गांव में कैंसर के मरीजों की संख्या भी बहुत ज्यादा है। उपमंडल कृषि अधिकारी सुरेंद्र मलिक ने महिलाओं को गोबर का ढेर लगाने की बजाए कुरड़ी में गोबर डालने की सलाह दी। खाप पंचायत के संचालक कुलदीप ढांडा ने किसान व कीटों की इस लड़ाई की तुलना महाभारत की लड़ाई से करते हुए कहा कि कीटों की तीन जोड़ी टांग व दो जोड़ी पंख होते हैं तथा कीटों में प्रजनन की क्षमता भी ज्यादा होती है। इसलिए इस जंग में किसानों की अपेक्षा कीटों का पलड़ा भारी है। ढांडा ने कहा कि किसान के पास कीटों को मारने के लिए कीटनाशक शस्त्र के अलावा कुछ नहीं है जबकि कीटों के पास अपने बचाव के लिए अस्त्र व शास्त्र दोनों हैं। इस अवसर पर उनके साथ सहायक पौध संरक्षण अधिकारी अनिल नरवाल व खंड कृषि अधिकारी जेपी कौशिक भी मौजूद थे। 


अपने चेहरे पर बैठे कीट को दिखाती महिला।

Wednesday, October 10, 2012

कृषि के क्षेत्र में भी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलें महिलाएं

   ललीतखेड़ा गांव में बुधवार को महिला किसान खेत पाठशाला का आयोजन किया गया। पाठशाला में ललीतखेड़ा, निडाना व निडानी की महिलाओं ने भाग लिया। महिलाओं ने कीट निरीक्षण, अवलोकन के बाद कीट बही खाता तैयार किया। इस बार कीट अवलोकन के दौरान महिलाओं ने कपास की फसल में मौजूद लाल बाणिये का भक्षण करते हुए एक नए मासाहारी कीट को पकड़ा।
 फसल में कीटों का निरीक्षण करती महिलाएं। 

महिलाओं को कीटों के बारे में जानकारी देते पाठशाला के संचालक डा. सुरेंद्र दलाल। 
पाठशाला की मास्टर ट्रेनर अंग्रेजो ने महिलाओं को बताया कि अब तक उन्होंने कपास की फसल में सिर्फ लाल बाणिये का खून पीते हुए मटकू बुगड़े को ही देखा था। मटकू बुगड़ा अपने डंके की सहायता से लाल बाणिये का खून पीकर इसके कंट्रोल करता था लेकिन इस बार महिलाओं ने लाल बाणिये का खात्मा करने वाले एक नए मासाहारी कीट की खोज की है। यह कीट इसका खून पीने की बजाए इसको खा कर कंट्रोल कर अपनी वंशवृद्धि करता है। अंग्रेजो ने कहा कि इससे यह बात आइने की तरह साफ है कि कीटों को कंट्रोल करने की जरुरत नहीं है। अगर जरुरत है तो सिर्फ कीटों की पहचान व इनके क्रियाकलापों के बारे में जानकारी जुटाने की। अगर किसानों को अपनी फसल में समय-समय पर आने वाले मासाहारी व शाकाहारी कीटों की पहचान व उनके क्रियाकलापों का ज्ञान हो जाए तो किसानों का जहर से पीछा छूट जाएगा। बिना ज्ञान के कीटनाशक से छुटकारा संभव नहीं है। मास्टर ट्रेनर मीना मलिक ने बताया कि जिस तरह अन्य क्षेत्रों में महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं, वैसे ही कृषि के क्षेत्र में भी महिलाओं को पुरुषों के साथ आगे आना होगा। मलिक ने कहा कि विवाह, शादी जैसे खुशी के मौकों पर महिलाओं को अन्य गीतों की बजाए कीटों के  गीत गाने चाहिएं, ताकि अधिक से अधिक लोगों तक यह मुहिम फैल सके। उन्होंने कहा कि जहर से मुक्ति मिलने में केवल किसानों की ही जीत नहीं है, बल्कि इससे हर वर्ग के लोगों को लाभ होगा। क्योंकि हमारे शास्त्रों में भी पहला सुख निरोगी काया का बताया गया है। जब तक इंसान स्वास्थ नहीं होगा तब तक वह किसी भी कार्य को अच्छे ढंग से नहीं कर पाएगा। उन्होंने कहा कि किसानों में जो भय व भ्रम की स्थित पैदा हो चुकी है हमें उस स्थिति को स्पष्ट करना होगा। किसानों को फसल में आने वाली बीमारी व कीटों के बीच के अंतर के बारे में जानकारी होनी जरुरी है। जब तक यह स्थित स्पष्ट नहीं होगी तब तक किसानों के अंदर से भ्रम को बाहर नहीं निकाला जा सकता है। सविता ने बताया कि इस समय उनकी फसल की दूसरी चुगवाई चल रही है लेकिन पाठशाला में आने वाली एक भी महिला को अब तक फसल में एक बूंद कीटनाशक की जरुरत नहीं पड़ी है। इस अवसर पर उनके साथ पाठशाला के संचालक सुरेंद्र दलाल, मास्टर ट्रेनर रणबीर मलिक व मनबीर रेढ़ू भी मौजूद थे। बराह कलां बारहा खाप के प्रधान भी मौजूद थे।

Wednesday, October 3, 2012

देश को जहर से मुक्ति दिलवाने के लिए लड़ाई लड़ रही हैं महिलाएं

 महात्मा गांधी ने सत्य,अंहिसा व चरखे को अपना हथियार बनाकर देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी थी। उसी प्रकार ललीतखेड़ा व निडाना की महिलाएं भी बापू के रास्ते पर चलकर देश को जहर से मुक्ति दिलवाने के लिए लड़ाई लड़ रही हैं। इस लड़ाई में विजयश्री के लिए इन महिलाओं ने कीट ज्ञान को अपना हथियार बनाया है। महिलाओं ने कीट विज्ञान के सहारे अपना स्थानीय कीट ज्ञान पैदाकर किसानों को एक नया रास्ता दिखाकर बापू के विचारों और औजारों की सार्थकता को सिद्ध किया है। यह बात बराह कलां बारहा खाप के प्रधान कुलदीप ढांडा ने कीट कमांडो महिलाओं के कीट ज्ञान की प्रशांसा करते हुए कही। ढांडा बुधवार को ललीतखेड़ा गांव में आयोजित महिला किसान पाठशाला में बोल रहे थे। 
ढांडा ने महिलाओं की कीट ढुंढऩे की दक्षता व कौशल की महता को स्वीकार करते हुए कहा कि कीटों से महिलाओं का पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा वास्ता रहा है। इसके अलावा महिलाएं बारीक काम भी करती रहती हैं। इसलिए भी छोटे-छोटे कीट इनकी पकड़ में जल्दी ही आ जाते हैं। पाठशाला में महिला किसानों ने कीटों की गिनती, अवलोकन, सर्वेक्षण व निरीक्षण के बाद कीट बही खाता तैयार किया। मास्टर ट्रेनर अंग्रेजो ने बताया कि कीट अवलोकन के दौरान उन्होंने कपास की फसल में काला बाणिया नजर आया है, जो कपास के फावे के बीच कच्चे बीज के पास अपने अंड़े देता है। इसके निम्प व प्रौढ़ कच्चे बीज का रस चूसकर अपना जीवनचक्र चलाते हैं। वैसे तो दुनिया में इन कीटों को खाने वाले कम ही कीट देखे गए हैं, लेकिन यहां की महिलाओं ने काले बाणिये के बच्चे व अंड़ों का भक्षण करते हुए लेड़ी बिटल का गर्भ ढूंढ़ लिया है। इसके अलावा महिलाओं ने सुंदरो, मुंदरो नामक जारजटिया समूह के मासाहारी कीटों को भी ढूंढ़ा है। महिलाओं ने कपास की फसल में चेपे के आक्रमण की शुरूआत के साथ ही चेपे का भक्षण करने वाले ङ्क्षसगड़ू नामक लेड़ी बिटल के बच्चे भी देखे। 
कीट ज्ञान में हासिल की माहरत
ललीतखेड़ा व निडाना गांव की महिलाओं ने अपने कीट ज्ञान में वृद्धि करने के लिए लैंस, कापी व पैन को अपना औजार बनाया है। फसल में कीट सर्वेक्षण के दौरान महिलाएं लैंस की मार्फत फसल में मौजूद छोटे-छोटे कीटों की पहचान कर उनके क्रियाकलापों को अपनी नोट बुक में दर्ज कर अपने कीट ज्ञान में वृद्धि करती हैं। अपनी सुझबुझ व पैनी नजर से इन महिलाओं ने कीट ज्ञान में माहरत हासिल की है। 
उर्वकों का कम प्रयोग कर लेती हैं अच्छा उत्पादन
 फसल में कीटों का निरीक्षण करती महिलाएं।
 लाल बाणिये का शिकार करते हुए मटकू बुगड़ा। 
इन मास्टर ट्रेनर महिलाओं ने कीट ज्ञान ही नहीं बल्कि कम उर्वरकों का प्रयोग कर अच्छा उत्पादन लेने के गुर भी सीखे हैं। महिला किसानों द्वारा फसल में उर्वक सीधे जमीन में डालने की बजाये उर्वरकों का घोल तैयार कर पत्तों पर उनका छिड़काव किया जाता है। इससे उर्वरकों की बचत भी होती है और उत्पादन में भी वृद्धि होती है। इसमें सबसे खास बात यह है कि इन महिलाओं ने पांच माह की फसल में अभी तक एक छटाक भी कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया है। 
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