Saturday, July 23, 2011

छात्र कीट पाठशाला का पहला सत्र !

जुलाई महीने की तेईस तारीख सुबह के आठ ही बजे हैं कि महिला खेत पाठशाला की मीना मलिक, बिमला, गीता, सरोज, राजवंती, कमलेश व् अंग्रेजों रणबीर मालिक के साथ मास्टर ट्रेनर की अपनी ऐतिहासिक  जिम्मेवारी निभाने कपास के खेत में पहुँच चुक्की हैं. अन्य महिलाओं की तरह इन्हें भी सुबह चार बजे उठकर न्यार-फूस, धार-डौकी, दूध बिलौना, गोबर-पानी व् बच्चों के लिए भोजन पकाने आदि अनेक कार्य करने होते हैं. इतने सारे काम निपटा कर इस जहर मुक्ति के काम को आगे बढ़ाने के लिए स्कूली बच्चों को कीट ज्ञान प्रदान करने लिए यहाँ पहुंचना ऐतिहासिक  नही तो और क्या है?
ठीक साढ़े आठ बजे डेफोडिल पब्लिक स्कूल, निडाना के 35 छात्र एवं छात्रा भी अपनी अध्यापिकाओं श्रीमती कांता व् सीमा मलिक के नेतृत्व में कपास के इस खेत में पीपल के नीचे पहुँच जाते हैं. ठीक इनके पीछे-पीछे इसी स्कूल के सह-संचालक श्री विजेंद्र मलिक व् प्राचार्य श्री ज्ञानी राम भी यहाँ पहुँच जाते हैं.
श्री रणबीर सिंह मलिक ने इस कीट पाठशाला के आयोजन व् उद्देश्यों के बारे में बच्चों को विस्तार से बताया. मीणा मलिक ने पाठशाला के लिए बच्चों का पंजीकरण किया. पांच-पांच बच्चों के सात समूह बनाये गये जो निम्नांकित थे.

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बच्चों के सात ग्रुप और इतने ही मास्टर ट्रेनर व् तीन स्कुल के अध्यापक. सभी ने कपास के खेत में ग्रुपों में जाकर ध्यानपूर्वक पौधों एवं कीटों का अवलोकन व् निरिक्षण किया. सभी सात के सात ग्रुपों ने दस-दस पौधों के तीन-तीन पत्तों पर क्रमवार सफ़ेद-मक्खी, तेला व् चुरड़े के केवल निम्फों की गिनती की व् अपनी-अपनी कापी में नोट किया. इसके साथ-साथ प्रत्येक पौधे पर दुसरे सभी कीटों की गिनती की व् इसे भी कापी में नोट किया. "ये क्या? देखो मैम", रेनू अचानक चिल्लाई.
'कुछ नही, ग्रास होपर है." विज्ञानं अध्यापिका विवेक ने तपाक से जबाब दिया.
इतना सुनते ही बिमला मुस्करा कर बोली, "ना मैडम ना, यू तो हथजोड़ा सै- गीदड़ की सुंडी आला. हमने तो इस पर एक गीत घड़ राख्या सै. मांसाहारी कीड़ा सै. अपनी कपास की फसल में बहुत सारे कीड़ों को खा-पीकर ख़त्म करेगा. अंग्रेजी में इस नै के कहा करै- वो डाक्टर जी तै पूछ लो. मनै तो स्कूल की पछीत भी नही देख राखी."
       राहुल वाले ग्रुप के उत्प्रेरक रनबीर मलिक के काना में जब ये बात पड़ी तो कहन लगा कि अंग्रेजी में तो इसनै प्रेयिंग मेंटिस कहा करै. मेरी दादी इस कीड़े की अंडेदानी को चीथड़े में बाँध कर ताक में रखती थी. वो इस अंडेदानी का के करा करै थी- इसका मनै भी नही बेरया. किसानों द्वारा धीरे से कीड़ों के ज्ञान को बच्चों की तरफ सरकाने के इस लाजवाब तरीके पर डॉ.दलाल भी हैरान था.
इसके बाद सभी ग्रुपों ने खेत के एक कोने में खड़े पीपल की छाँव में बैठकर अपनी इस कारवाई को चार्टों पर उतारा व् बारी-बारी से ग्रुप लीडरों ने चार्टों की मदद से सबके सामने पेश किया. 
                       सात के सात ग्रुपों द्वारा रिपोर्ट किये गये कीड़ो की संख्या को जोड़ा गया व् प्रति पत्ता औसत निकाली गयी. हरे तेले की 1.3, सफ़ेद माखी की 1.9 व् चुरड़े की 2.7 पाई गयी. यह औसत सत्तर पौधों के तीन-तीन पत्तों पर आधारित थी. सैम्पल साईज के कारण इस पर भरोसा ना करने का भी कोंई कारण नही था. कीड़ों की यह औसत संख्या उनके हानि पहूचाने के स्तर से काफी नीचे थी.
आज बच्चों ने इस खेत में भान्त-भान्त की वो मकड़ियाँ भी देखी जो घरों में दिखाई नही देती. एक छोटी सी मकड़ी को तेले का चूरमा बनाते हुए भी बच्चों ने देखा. भावना ने चुटकी ली," सर, मकड़ी के शारीर के तो दो ही भाग है. फिर इसे कीड़ों की श्रेणी में कैसे रखेंगे?"
   इतनी सुनकर कमलेश ने आगे बात बढ़ाई अक इसकी चार जोड़ी टांग से जबकि कीड़ों की तीन जोड़ी. इन मकड़ियां नै आपां जनौर कह कर गुज़ारा कर लेवां, इसमें ही सब कुछ आ जा सै. हाँ, इतना जरुर याद रख ले अक ये सारी मकड़ी अपने खेतों में कीटों को खा-पीकर जिन्दा रहती है. दस तरह की तो मैने ही अपने खेत में देख ली. अचूक किस्म की पेस्टीसाईड(कीड़ेमार) सै - ये मकड़ियां.
" दो ही घंटे के लिए हैं, हमारे छात्र आपके पास", ज्ञानी राम ने वायदा याद दिलाया. बस सब कुछ बीच में छोड़कर, फटाफट बिमला द्वारा लाया गया बाकुलियों के रूप में कीट-प्रसादा सभी को बांटा गया. बिमला द्वारा तैयार इस कीट-प्रसादे में कंडेसर का नमक अर तीखी मिर्च भुलाये नही भूलेंगी, हम्में.

Saturday, July 16, 2011

महिला खेत पाठशाला की दुसरे साल में नई शुरुवात !

  आज 16 जुलाई,2011 को  निडाना गाम की महिला खेत पाठशाला की दुसरे साल में एक नई शुरुवात के बीज बोए गये. रा.व्.मा. विद्यालय, डिफेंस कालोनी, जींद की विज्ञानं अध्यापिका श्रीमती सुशीला अपनी छात्राओं ममता, पिंकी व् प्रियंका के साथ कृषि विकास अधिकारी, निडाना के कार्यालय पहुंची. इन्होने कृषि विकास अधिकारी को बताया कि वे अपने भोजन में लगातार बढती जहर की मात्रा को लेकर बहुत चिंतित हैं तथा साथ में ही भुगतभोगी भी. वे समझती हैं कि मानव के लिए यह आत्मघाती परिस्थिति फसलों में कीट नियंत्रण के लिए कीटनाशकों के अनावश्यक एवं अंधाधुंध प्रयोग के कारण ही पैदा हुई हैं. कीटनाशकों के अनावश्यक एवं अंधाधुंध प्रयोग की बात छोड़िये अब तो सुना है कि कपास की फसल के लिए ऐसे बीजों का प्रचलन भी हमारे यहाँ आम हो चला है जिनके जरे-जरे में जहर होता है. आप इन्हें बी.टी.काटन कहते हैं. इसी लिए अपने पर्यावरण व् भोजन सुरक्षा के वास्ते हमने एक लघु परियोजना के तहत बी.टी.काटन के खेत में कीड़ों की वस्तुस्तिथि जानने के लिए अध्यन की ठानी है जबकि दूसरी परियोजना
कांग्रेस घास पर कीड़ों की जानकारी लेने के बारे में है.
  निडाना के कृषि विकास अधिकारी डा.सुरेन्द्र दलाल ने तुरंत इस टीम की मुलाक़ात महिला खेत पाठशाला की एक होनहार सदस्य श्रीमती अनीता मलिक से करवाई. अनीता ने अपने इन मेहमानों के लिए फ़टाफ़ट जलपान का जुगाड़ किया व् इसी दौरान अपने  पति श्री रणबीर सिंह तथा   अपनी जेठानी श्रीमती बिमला मलिक से बातचीत की. इस टीम के आने का प्रयोजन बताया. आगुन्तक टीम अनीता, बिमला व् रणबीर सिंह के साथ गोहाना रोड पर इनके कपास के खेत में पहुंचे और कीड़ों का अवलोकन व् निरिक्षण शुरू किया. अपने पड़ौस में
अन्य स्कूल के छात्रों की इस अप्रत्यासित कारवाई को देख कर डेफोडिल पब्लिक स्कूल, निडाना के सहसंचालक श्री विजेंद्र मलिक व् प्राचार्य श्री ज्ञानी राम शर्मा भी खेत में आ पहुंचे. इस कार्यवाही की पूरी जानकारी जुटाई. इन्होने इस टीम को काम निपटाने के बाद स्कूल में जलपान का निमंत्रण दिया. साढ़े तीन घंटे बी.टी.काटन के खेत में कीड़ों का अध्यन कर यह छात्रों एवं किसानों की टीम डेफोडिल पब्लिक स्कूल के कार्यालय में जलपान के लिए पहुंची. जलपान के दौरान ही स्कूल के सहसंचालक श्री विजेंद्र मलिक ने टीम के सामने उनके छात्रों के लिए भी प्रत्येक शनिवार को सुबह आठ से दस बजे तक इस कीट पाठशाला के आयोजन का प्रस्ताव पेश किया. निडाना गावं के इन तीन किसानों ने प्रस्ताव के माध्यम से
आई इस रोमांचकारी चुनौती को सह हर्ष स्वीकार किया. गावं में पहुँचते ही इन्होने अंग्रेजो की मदद से चार बजे महिला खेत पाठशाला की सभी सदस्यों की मीटिंग बुलाई. इस बैठक में डेफोडिल पब्लिक स्कूल, निडाना के छात्रों के लिए कीट पाठशाला के संचालन की बातचीत रखी और इसके लिए मास्टर ट्रेनरों के रूप में काम करने के लिए महिला किसानों से नाम मांगे गए. मीना मलिक, सरोज, कमलेश, बिमला, गीता, अंग्रेजो व् राजवंती ने इस काम के लिए अपने नाम लिखवाए और अगले शनिवार को 23 जुलाई की सुबह साढ़े आठ बजे प्रयोगाधीन खेत में पहुँचने का वायदा किया.