Tuesday, July 27, 2010

महिला खेत पाठशाला का सातवां सत्र।

लपरोः कोक्सिनैला सेप्टमपंकटाटा
इंडिया न्यूज, हरियाणा के सुनील मोंगा।
डायन मक्खीः टिड्डे का शिकार करते।


हाफ्लोः लेडि बीटल
आज भी सुबह से ही निडाना के आसमान में चारों ओर बादलों का डेरा है तथा इसी आसमान में लोपा मक्खियाँ (ड्रैगन फलाईज्) भी जमीन के साथ-साथ मंडरा रही हैं। इसका सीधा सा मतलब हैं कि आज भी भारी बरसात होने वाली है। इस गाँव में पिछले पाँच सप्ताह से हर मंगलवार को होने वाली बुंदा-बांदी या बरसात को लेकर दो तरह की चर्चा है। कुछ लोग तो कहते हैं कि इस पाठशाला वाले बड़े भाग्यवान हैं कि हर मंगल को गाम में बरसात करवा देते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि ये कृषि विभाग वाले लोग कुछ नही जानते अर जिस खेत में बड़ जा, उड़ै दाना नही जामां करै। इन चर्चाओं के मध्य ही आज निडाना की महिला खेत पाठशाला का सातवाँ सत्र शुरु होने जा रहा है। इस महिला खेत पाठशाला के मैदानी सच को जानने, इसकी बारिकियों को समझने व इसकी व कवरिंग के लिये, इंडिया न्यूज, हरियाणा चैनल के रिपोर्टर, श्री सुनील मोंगा भी अपने कैमरामैन रोहतास भोला के साथ खेत में मौके पर पँहुचे। सत्र की शुरुवात में डा. कमल सैनी की देखरेख में, महिलाओं द्वारा पिछले काम की समीक्षा की गई। इसके बाद महिलाओं ने पाँच-पाँच के समूह में दस-दस पौधों पर कीट अवलोकन, निरिक्षण व गणना का कार्य किया। बूंदा-बांदी के चलते सुअर फार्म पर ही आज कपास की फसल में कीटों की स्थिति का आकलन व विशलेषण किया। इसके आधार पर ही महिलाओं ने घोषणा की कि आज के दिन इस फसल में कोई भी कीट हानि पँहूचाने की स्थिति में नही हैं। कराईसोपा, दिखोड़ी, लोपा मक्खी, डायन मक्खी, लेडि बीटल्ज, व विभिन्न बुगड़े आदि लाभदायक कीटों की उपस्थिति की भी रिपोर्ट महिलाओं ने की। आज महिलाओं ने इस खेत में चितकबरी सूंडी का प्रौढ़ पतंगा भी देखा व मांसाहारी कीट हथजोड़ा का शिशु भी देखा। डा. दलाल ने इस हथजोड़े की खाती के सरोत जैसी अगली टांगें भी महिलाओं को दिखाई। आज तो डायन मक्खी को एक पतंगे का शिकार करते हुए भी मौके पर सभी ने देखा. यह सारी कार्यवाही रणबीर मलिक व मनबीर रेढ़ू की अगुवाई में हुई। 
सुनील मोंगा ने आज पाठशाला के इस सत्र की कार्यवाही की कवरेज की तथा उन्होंने मुक्त-कँठ से महिलाओं की इस पाठशाला की भुरी-भुरी प्रशंसा की, खासकर उनकी लगन, निष्ठा व चाव की। उन्होने महिलाओं को बताया कि उनकी यह कीटों के विरुद्ध जंग अकेले कीटों के खिलाफ ही नही है बल्कि यह जंग तो बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कीटनाशक कम्पनियों के खिलाफ भी है। इसलिये इस जंग की तैयारियों के लिये उन्हे बहुत ज्यादा मेहनत व लगन से काम करना होगा। आपकी यह जंग हिंदुस्तान की जनता के स्वस्थ के लिए बहुतलाभदायक होगी.
लोपाः ड्रैगन फलाई।
गोभ वाली सूंडी का प्रौढ़ पतंगा।
सुदेश का ग्रुप
हथजोड़ाः प्रेईंग मैन्टिस का शिशु
 महिला खेत पाठशाला के इस सातवें सत्र के अन्त में कृषि विकास अधिकारी डा. सुरेन्द्र दलाल ने उपस्थित महिला किसानों को बताया कि कपास की भरपूर फसल लेने के लिए किसान का जागरूक होना अति आवश्यक है। उन्हें एक तरफ तो अपनी फसल को खरपतवारों से मुक्त रखना चाहिए व दूसरी तरफ हानिकारक कीटों व लाभदायक कीटों की पहचान कर कीटनाशक के स्प्रे करने का सही समय पर सही फैसला लेना चाहिए। किसानों को जानकारी होनी चाहिए कि बहुत सारे खरपतवार हानिकारक कीटों के लिये वैकल्पिक आश्रयदाता का काम करते हैं और इन खरपतवारों पर पल रहे शाकाहारी कीटों की आबादी पर मांसाहारी कीटों का फलना-फुलना निर्भऱ करता है। अगर फसल में दोनों तरह के कीट साथ-साथ आते हैं तो हमारी फसल में कीटों का नुक्शान नही होगा। अतः सड़कों, कच्चे रास्तों, नालों, खालों, मेंढों आदि पर उग रहे कांग्रेस घास, आवारा सूरजमुखी, उल्ट कांड, धतूरा, कचरी, भम्भोले आदि खरपतवारों को आँख मिच कर नष्ट नही करना चाहिए। बल्कि इन पौधों पर दोनों तरह के कीटों की वास्तविक स्थिति का जायजा लेकर ही इस बारे में कोई ठोस फैसला लेना चाहिये। डा. सुरेन्द्र दलाल ने महिलाओं को बताया कि कपास की फसल सम्मेत तमाम खरपतवारों पर इस समय मिलीबग के साथ-साथ इसको खत्म करने वाले अंगीरा(ANGIRA), फंगीरा(FANGIRA) व जंगीरा(JANGIRA) नामक परजीवी भी बहुतायत में मौजूद हैं। इनमें से अंगीरा नामक परजीवी तो अकेले ही 80-90 प्रतिशत तक मिलीबग को  नष्ट कर देता है। आज महिलाओं ने ललित खेड़ा में किसानों की सहायता से तैयार इस अंगीरा की एक वीडियों भी श्री सुनील मोंगा को दिखाई.
डा. सुरेन्द्र दलाल ने महिलाओं को याद दिलाया कि फसल में मित्र कीट भी दुश्मन कीटों को अपना भोजन बनाकर कीटनाशकों वाला ही काम करते हैं। इस लिए फसल पर कीटनाशक का छिड़काव करने का फैसला लेने से पहले फसल का निरीक्षण करना, हानिकारक कीटों व मित्र कीटों की संख्या नोट करना व सही विशलेषण करना अति जरूरी है।
 







Tuesday, July 20, 2010

महिला खेत पाठशाला का छट्टा सत्र।

समीक्षा सुनते हुए- निशा अवतार
कीट निरिक्षण
चर्वक कीट - तेलन
घुमन्तु बीटल - दिखोड़ी
कराईसोपा का गर्ब
आज 20 जुलाई 10 को निडाना गांव में चल रही महिला खेत पाठशाला का  छट्टा सत्र है। गुजरी रात निडाना में भारी बरसात हुई। परिणाम स्वरुप अब भी खेतों में खुड्डों में पानी भरा है। आज सुबह से ही निडाना के   आसमान पर बादलों की फुल चौधर है। इन चौधरियों के मिजाज को भापकर ही शायद लोपा मक्खियाँ (ड्रैगन फलाईज्) ऊंचाई की बजाय काफी निचाई पर उड़ान भर रही हैं।  निडाना के बुजर्गों की माने तो भारी बरसात आने की संभावना है। मौसम की  इस अनिश्चितता व अपने टखने में फ्रैक्चर की परवाह किये बगैर इस पाठशाला में आज आ पँहुची- अंग्रेजी अखबार हिन्दुस्तान की संवाददाता सुश्री निशा अवतार। निशा महिलाओं की इस नई पहल को मौके पर ही अपनी आँखों से देखना चाह रही थी। कीटों एवं कीटनाशकों के विरुद्ध जंग में महिलाओं द्वारा की जा रही इन तैयारियों को नजदीक से समझने के लिये निशा ने खेतों में धक्के खाने का कार्यक्रम बनाया। इतनी उत्साहित पत्रकार को अपने मध्य पाकर किसान महिलाएँ खुशी के मारे झुम उठी। निशा व डा. कमल की उपस्थिति में ही महिलाओं ने अपने पिछले कार्य की समीक्षा की। उन्होने बताया कि अब तक उनमें से किसी भी महिला को अपनी कपास की फसल में कीटनाशकों के स्प्रे की आवश्यकता नही पड़ी। कारण एक तो उनके खेतों में भी अभी तक कोई भी हानिकारक कीट हानि पहुँचाने की हद तक नही पहुँचा। दुसरे उनके खेतों में भी लपरो, चपरो व हाफ्लो आदि लेडि बीटल मौजूद हैं जो सफेद मक्खी, तेले, चुरड़े व मिलीबग का सफाया कर रही हैं। कराईसोपामकड़िया भी कीट खात्में के काम में जुटे हुए हैं। बरसात के बाद तो दिखोड़ियाँ भी दिन में ही नजर आ रही हैं। अंगिरा व जंगिरा भी मिलीबग को नष्ट करते नजर आ रहे हैं।
चितकबरी सूंडी का अंडा।
स्लेटी-भूंड का शिकार करती मकड़ी।
टिड्डा और इसका नुक्शान।
लेडि बीटल।
लेडि बीटलः चुघड़ो।
इसके बाद मिनी, सरोज, राजवंति, गीता व सुदेश के नेतृत्व में महिलाओं के पाँच ग्रुप बने। हर ग्रुप में में 5 या 6 महिला व एक उत्प्रेरक। इगराह गांव का किसान मनबीर तो इस पाठशाला का मार्गदर्शन करने के लिये 28 कि.मी. की दूरी तय करके आता है। आज डिम्पल के खेत में पानी जमा होने के कारण पड़ौसियों के खेत में हर ग्रुप द्वारा 10-10 पौधों का अवलोकन, निरिक्षण व सर्वेक्षण किया गया तथा प्रत्येक पौधे के 3-3 पत्तों पर क्रमवार सफेद-मक्खी, हरा-तेला व चुरड़े की गिनती की गई। इसके साथ-साथ प्रत्येक पौधे पर अन्य हानिकारक व लाभदायक कीटों की भी गिनती की गई। अनिता द्वारा पकड़ी गई रंग-बिरंगी राम की गाय (घास का टिड्डा) ने सुश्री निशा को इतना आकर्षित किया कि वे इसका फोटो उतारने का लोभ संवर ना कर पाई। नन्ही ने कपास के पत्ते को खुरच कर खाते हुए अक टिड्डे को मौके पर पकड़ लिया। मनबीर ने पत्ते की निचली सतह पर चितकबरी सूंडी का अंडा ढुंढ कर महिलाओं को दिखाया। बुंदा-बांदी के चलते पिग्गरी फार्म पर शरण ली गई व वही ग्रुपवाइज बैठकर महिलाओं ने चार्टों पर अपने-अपने ग्रुप की रिपोर्ट तैयार की व सबके सामने ग्रुप लिडरों की मा्रफत पेश की। इस खेत में प्रति पत्ता सफेद-मक्खी  0.9, हरा-तेला 1.8 व चुरड़ा 2.3 पाया गया। इन कीटों में से केवल हरा-तेला ही आर्थिक कगार के नजदीक है। मकड़ियों, कराईसोपा के अंडे व गर्ब, दिखोड़ी, लेडि बीटल आदि की इस खेत में संख्या को देखते हुए सामुहिक समझ बनी कि अभी भी इस खेत में कीटनाशकों के इस्तेमाल की जरुरत नही। डा. कमल सैनी ने महिलाओं को सफेद-मक्खी के जीवन चक्र के बारे में विस्तार से जानकारी दी। इस बीच बेदो ने पूछा कि इन किसान मित्र बीटलों के नाम के आगे लेडि क्यों लगाया जाता है। डा. दलाल ने इन लेडि-बीटलों के नामकरण का संक्षिप्त इतिहास महिलाओं को बताया।
     सत्र के अंत में सुश्री निशा अवतार ने महिलाओं के इस कार्य की दिल खोल कर प्रशंसा की। घर से बाहर कार्य करने में महिलाओं को आने वाली कठिनाईयों पर अपने अनुभव साझे किये। निशा ने उम्मीद जताई कि एक दिन निडाना की महिलाएँ जरुर जहर मुक्त खेती करने में सक्षम होंगी।

Tuesday, July 13, 2010

महिला खेत पाठशाला का पाँचवां सत्र।

गीता, अनिता, बिमला, बीरमति व केला
सरकारी स्कूलों का ग्रीष्मकालिन अवकाश खत्म हो चुका है। 1 जुलाई से बच्चों ने स्कूल जाना शुरु कर दिया है। महिलाओं को सुबह-सुबह अपने इन बच्चों को तैयार करने व खाना पकाने के अलावा गोबर-पानी का काम भी करना होता है। कई महिलाओं को तो खेत पाठशाला में आने से पहले अपने पशुओं के लिये खेत से चारा भी लाना होता है। फिर आप बताईये- महिलाएँ ठीक आठ बजे कैसे इस खेत पाठशाला में पहुँच जायें। इस मैदानी सच से रुबरु होते ही पाठशाला के आयोजकों ने महिलाओं की सलाह से इस खेत पाठशाला का समय आगे से प्रातः साढे आठ बजे का कर दिया।
चितकबरी सूंडी का प्रौढ़
सफेद मक्खी का शिशु
बिमला और अनिता ही अब तक इस पाठशाला में पीने के पानी का जुगाड़ करती आई हैं। आज भी वे दोनों ही सिर पर पानी के मटके उठाये इस पाठशाला में पहुँची हैं। सत्र की शुरुवात डा. कमल के नेतृत्व में पिछले कार्य की समीक्षा से हुई। सुन्दर, नन्ही, बीरमति, कमलेशरानी  ने बताया कि उन्हें हरा-तेला, सफेद-मक्खी, चुरड़ा मिलीबग जैसे रस चूसक हानिकारक कीटों की पहचान अच्छी तरह से हो गई है। इन्होने आगे बताया कि  हमारी कपास की फसल में इन कीटों में से कोई भी हानि पहुँचाने की स्तिथि में नही है। इसीलिये हमें अपनी फसल में कीटनाशकों का छिड़काव करने की जरुरत नही पड़ी। राजवंति, मीनी, गीता, सरोज कमलेश के नेतृत्व में पाँच टिम्में बनी। हर ग्रुप में पाँच या छः महिलाएँ थी। औजारों के नाम पर हर ग्रुप के पास देखने के लिये मैगनीफाईंग ग्लास व लिखने के लिये कापी-पैन थे। इन औजारों व अपने उत्प्रेरकों सर्वश्री मनबीर रेढू, रनबीर मलिक, डा. कमल सैनी व डा. सुरेन्द्र दलाल के साथ महिलाओं ने  कपास के खेत में अवलोकन, सर्वेक्षण व निरिक्षण किया। महिलाओं के प्रत्येक समूह द्वारा आज  दस-दस पौधों पर  कीटों की गिनती की गई।  दस पौधों के तीन-तीन पत्तों पर पाये गए कीटों का जोड़-घटा, गुणा-भाग करके औसत निकाली गई जिसके आधार पर महिलाओं के इन ग्रुपों ने चार्टों पर अपनी-अपनी रिपोर्ट तैयार की। रिपोर्ट प्रस्तुतिकरण में पाया गया  कि कपास के इस खेत में सभी रस चूसक हानिकारक कीट आर्थिक स्तर से काफी निचे हैं अतः कीट नियन्त्रण के लिये डिम्पल की सास को फिक्र करने की कोई जरुरत नही।
दस्यु बुगड़ा का निम्फ



कराईसोपा का अंडा
कराईसोपा का गर्ब
महिलाओं ने आज कीट अवलोकन व निरिक्षण के दौरान चितकबरी सूंडी का प्रौढ तथा सफेद-मक्खी के निम्फ (शिशु) भी देखे।     

छैल बुगड़ा
मकड़ी
सत्र के अन्त में डा. सुरेन्द्र दलाल ने बताया कि एक तरफ तो कपास के इस खेत में हानिकारक कीटों की संख्या कम है तथा दुसरी तरफ इन नुक्शान पहुँचाने वाले कीटों को खा कर खत्म करने वाले कीटनाशी कीट भी इस खेत में नजर आने लगे हैं। भावी कीटनाशियों के रुप में आज मकड़ीकराईसोपा के अंडे तकरीबन पर पौधे पर दिखाई दिये हैं। कराईसोपा के गर्ब (शिशु) भी तीसरे-चौथे पौधे पर नजर आये हैं। इनके अलावा लेडि बीटल, घुमन्तु-बीटल (दिखोड़ी), लोपा-मक्खी (ड्रैगन फ्लाई), डाकू-बुगड़ा व छैल-बुगड़ा आदि मांसाहारी कीट भी डिम्पल के इस खेत में आप सभी ने देखे हैं। आज के दिन तो इस खेत में हानिकारक कीटों व लाभदायक कीटों के रुप में गजब का प्राकृतिक संतुलन है। डा. दलाल ने महिलाओं को फिर से याद दिलाया कि फसल में मित्र कीट भी दुश्मन कीटों को अपना भोजन बनाकर कीटनाशकों वाला ही काम करते हैं। इस लिए फसल पर कीटनाशक का छिड़काव करने का फैसला लेने से पहले आपनी फसल का निरीक्षण करना, हानिकारक कीटों व मित्र कीटों की संख्या नोट करना व सही विशलेषण करना अति जरूरी है।
 

Tuesday, July 6, 2010

महिला खेत पाठशाला का चौथा सत्र।



अवलोकन एवं निरिक्षण।
बरसात भी नही रोक पाई।
कराईसोपा का प्रौढ़।
जंगिरा द्वारा परजीव्याभित मिलीबग।
एनासियस द्वारा परजीव्याभित मिलीबग।
आज दिनांक 6 जुलाई, 2010 बार मंगलवार को निडाना में महिला खेत पाठशाला का चौथा सत्र है। रात से ही वर्षा जारी है। इस भारी बरसात की भाँतियां बरगी बाट देखै थे निडाना के लोग। क्योंकि पिछले सितम्बर के बाद बस यही अच्छी-खासी  बरसात हुई है। जब सुबह 8-00 बजे डा. सुरेन्द्र दलाल व डा. कमल सैनी, राजबाला के खेत में पहुँचे तो वहाँ खेत की मालिक राजबाला के पुत्र विनोद के अलावा कोई नही था। वह भी हाय-हैलो के बाद रफ्फुचकर हो गया। अब रह गये दोनों डाक्टर। डा. कमल सैनी  कहने लगे कि शायद इतने खराब मौसम में आज की पाठशाला में कोए महिला नही आवै। डा. दलाल के कुछ कहने से पहले ही पता नही कहाँ से गांव का भूतपुर्व सरपंच बसाऊ राम आ पहुँचा और कहने लगा कि डा. साहबो आज इस झड़ में आपका कोए कीट कमांडो इस पाठशाला में आण तै रहा। म्हारै  घरआली तो नयूँ कह थी अक् इब बरसते में  कौण पाठशाला लावै था?  

डाकू बुगड़ा का निम्फ
मकड़ीः तेले का शिका
पर सब अन्दाजों को झुठलाते हुए, राजवंति ने अचानक आ दी राम-राम। 
मकड़ी
तख्त पर बैठकर लगी बताने अपने खेत में कपास की फसल पर उस द्वारा इस सप्ताह देखे गये कीड़ों के बारे में। एक-एक करके कपास की फसल के सारे रस चूसक कीट गिना दिये। राजवंति को अपने खेत में कम पौधे होने का मलाल है। राजवंति आगे कुछ बोलती इससे पहले ही मीनी, अंग्रेजों, बिमला व संतरा आ पहुँची। देखते-देखते गीता, कमलेश, केलो, सरोज व अन्य सोलह महिलायें आज की पाठशाला में पहुँच गई। इनके पिछे-पिछे अनिता अपने सिर पर पानी का मटका उठाय़े खेत में आ पहुँची। "नन्ही-नन्ही बुंद पड़ै- गोडै चढगी गारा।। लक्ष्मी चन्द का सांग बिगड़ग्या सारा ।।" के विपरित इन महिलाओं ने तो आज की इस पाठशाला का कसुता सांग जमा दिया। गौर में गौडै गारा, खेत में खड़ा पानी व उपर से बुंदा-बांदी को मध्यनजर रखते, डा. कमल सैनी ने आज महिलाओं को पिग्गरी फार्म के कमरे में ही कीटों के बारे में पढाने का फैसला किया। डा. कमल ने सामान्य कीट का जीवन चक्र महिलाओं को विस्तार से महिलाओं को समझाया। रस चूसक व चर्वक किस्म के शाकाहारी कीटों बारे बताया। परभक्षी कीटों के बारे में जानकारी दी। पर महिलाएँ तो खेत में मौके पर ही कीटों का अवलोकन व निरिक्षण करने को उतावली थी। अतः कीचड़ के बावजूद खेत में घुसने का फैसला हुआ। राजवंति, मीनी, गीता, सरोज व कमलेश के नेतृत्व में पाँच टिम्में बनी और चल दी कपास के खेत में अवलोकन, सर्वेक्षण व निरिक्षण के लिये। महिलाओं के प्रत्येक समूह द्वारा आज  दस-दस पौधों की बजाय केवल दो-दो पौधों पर ही कीटों की गिनती की गई।  दस पौधों के तीन-तीन पत्तों पर पाये गए कीटों का जोड़-घटा, गुणा-भाग करके औसत निकाली गई जिसके आधार पर महिलाओं ने घोषणा की कि अभी सब रस चूसक हानिकारक कीट आर्थिक स्तर से काफी निचे हैं अतः कीटों के नियन्त्रण को लेकर चिन्ता करने की कोई जरुरत नही। मित्र कीटों के तौर पर आज महिलाओं ने कराईसोपा का प्रौढ़, कमसिन बग का प्रौढ़, दिदड़ बग, कातिल बग का अण्डा व दिखोड़ी आदि मांसाहारी कीट इस कपास की फसल में पकड़े व सभी महिलाओं को दिखाये। मकड़ी तो तकरीबन हर पौधे पर ही विराजमान थी।
कातिल बुगड़ा का अंडा।
कपास के भस्मासुर- मिलीबग को नष्ट करने वाली संभीरकाएँ भी आज इस खेत में सक्रिय देखी गई। अंगीरा व फंगीरा नामक ये संभीरकाएँ अपनी वंश वृद्धि के लिये ही मिलीबग की हत्या करती हैं। कयोंकि इनका एक-एक बच्चा मिलीबग के पेट में पलता है। बीराणे बालक पालने के चक्कर में मिलीबग को मिलती है- मौत।
 अंग्रेजो द्वारा सभी को घेवर बाँटे जाने के साथ ही पाठशाला के इस चौथे सत्र की समाप्ति की घोषणा हुई।