लोगों की थाली से जहर कम करने के लिए चलाए
गए कीटनाशक रहित खेती के इस अभियान को शिखर पर पहुंचाने के लिए निडाना व
ललीतखेड़ा की महिलाएं जी-जान से जुटी हुई हैं। इस अभियान की जड़ें गहरी करने
तथा अधिक से अधिक गांवों तक इस मुहिम को पहुंचाने के लिए इन महिला किसानों
द्वारा अन्य महिलाओं को भी मास्टर ट्रेनर ते तौर पर ट्रेंड किया जा रहा है।
इन महिलाओं द्वारा ललीतखेड़ा गांव के खेतों में चल रही महिला किसान पाठशाला
में आने वाली अन्य महिलाओं को कीटों की पहचान करवाकर इनके क्रियाकलापों की
भी जानकारी दी जाती है। बुधवार को भारी बारिश के दौरान भी ये महिलाएं खेत
पाठशाला में पहुंची और हाथों में छाता लेकर खेत में कीट सर्वेक्षण भी किया।
महिलाओं ने पांच-पांच के 6 ग्रुप बनाए और प्रत्येक ग्रुप ने पांच-पांच
पौधों से 9-9 पत्तों पर मौजूद कीटों की गिनती की। कीट सर्वेक्षण के बाद
महिलाओं ने चार्ट पर अपनी सर्वेक्षण रिपोर्ट पेश की। महिलाओं द्वारा पेश की
गई रिपोर्ट के अनुसार पूनम मलिक के कपास के इस खेत में प्रत्येक पत्ते पर
सफेद मक्खी की संख्या 0.4 प्रतिशत, तेले के शिशुओं की संख्या 0.6 प्रतिशत
तथा चूरड़े की संख्या 1.3 प्रतिशत थी। वैज्ञानिक मापदंड के अनुसार खेत में
मौजूद इन कीटों की संख्या आर्थिक हानि पहुंचाने से काफी नीचे थी। इसलिए
महिलाओं को इस खेत में कीटनाशक के प्रयोग की कोई गुंजाइश नजर नहीं आई।
पाठशाला के दौरान महिलाओं ने दो नई किस्म के हथजोड़े देखे। महिलाओं ने बताया
कि अब तक वे 9 किस्म के हथजोड़े देख चुकी हैं। कीट सर्वेक्षण के दौरान शीला
मलिक ने सभी महिलाओं का ध्यान अपने ऊपर मंडरा रही लोपा मक्खियों के झुंड
की तरफ खींचा। लोपा मक्खियों के झुंड को देखकर अंग्रेजो ने कहा कि जब ये
मक्खी काफी नीचे को उड़ती हैं तो भारी बारिश आने की संभावना रहती है। इसी
दौरान राजवंती ने बताया कि हरियाणा के लोग इसे हैलीकॉप्टर (जहाज) के नाम से
जानते हैं। लेकिन अंग्रेज इसे ड्रेगनफ्लाई कहते हैं। राजवंती की बात को
बीच में काटते हुए संतोष ने कहा कि यह मक्खी पीछवाड़े से सांस लेती है।
सरिता ने महिलाओं को चुप करते हुए कहा कि इसकी पहचान के साथ-साथ इसके काम
पर ध्यान देने की जरुरत है। सरिता ने महिलाओं को समझाते हुए कहा कि यह
मक्खी हमारे सिर पर इसलिए उड़ रही है कि जब हम खेत में से चलते हैं तो पौधों
पर बैठे कीट व पतंगे उड़ते हैं और यह उड़ते हुए कीटों का शिकार कर अपना पेट
भरती है। सरिता ने कहा कि यह मक्खी धान के खेत में खड़े पानी में अपने अंडे
देती है। अगर किसान धान में कीटनाशक का प्रयोग न करें तो धान में आने वाली
तन्ना छेदक व पत्ता लपेट को यह बड़ी आसानी से कंट्रोल कर लेती है। सरिता ने
बताया कि हरियाणा का कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है, जिसने इसे देखा न हो,
लेकिन उन्हें इसकी पहचान नहीं है। सरिता ने कहा कि उसने स्वयं लोपा मक्खी
की चार प्रजातियों को देख चुकी है। इसी दौरान कपास के फूल पर पुष्पाहारी
कीट तेलन को देखकर प्रेम ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की। प्रेम ने कहा कि
निडाना व ललीतखेड़ा में इस मक्खी का प्रकोप ज्यादा है, क्योंकि यहां के
किसान कीटनाशकों का प्रयोग नहीं करते हैं। रणबीर मलिक ने प्रेम के सवाल का
जवाब देते हुए कहा कि तेलन तो उनकी फसल की हीरोइन है, क्योंकि यह कपास में
परपरागन में अहम भूमिका निभाती है। मलिक ने बताया कि निडाना के किसानों ने
अब तक तेलन द्वारा प्रकोपित 508 फूलों की फूलों की पहचान की है। इनमें से
सिर्फ तीन फूल ही ऐसे थे, जिनके मादा भाग खाए गए थे। बाकि 505 फूलों के
सिर्फ नर पुंकेशर व पंखुड़ियां खाई हुई थी तथा मादा भाग सुरक्षित था। मलिक
ने बताया कि यह अपने अंडे जमीन में देती है और इसके बच्चे मासाहारी होते
हैं, जो टिड्डो व अंडों को अपना शिकार बनाते हैं। रमेश मलिक ने महिलाओं को
मटकू बुगड़े व लाल बणिये के अंडे दिखाए।
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बारिश के दौरान छाता लेकर कीटों का निरीक्षण करती महिलाएं।
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कपास के पत्ते पर मौजूद लोपा मक्खी (ड्रेगनफ्लाइ)। |
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तेलन कीट द्वारा कपास के फूल के नर पुंकेशर खाने के बाद सुरक्षित मादा पुंकेशर।
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