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Saturday, July 23, 2011

छात्र कीट पाठशाला का पहला सत्र !

जुलाई महीने की तेईस तारीख सुबह के आठ ही बजे हैं कि महिला खेत पाठशाला की मीना मलिक, बिमला, गीता, सरोज, राजवंती, कमलेश व् अंग्रेजों रणबीर मालिक के साथ मास्टर ट्रेनर की अपनी ऐतिहासिक  जिम्मेवारी निभाने कपास के खेत में पहुँच चुक्की हैं. अन्य महिलाओं की तरह इन्हें भी सुबह चार बजे उठकर न्यार-फूस, धार-डौकी, दूध बिलौना, गोबर-पानी व् बच्चों के लिए भोजन पकाने आदि अनेक कार्य करने होते हैं. इतने सारे काम निपटा कर इस जहर मुक्ति के काम को आगे बढ़ाने के लिए स्कूली बच्चों को कीट ज्ञान प्रदान करने लिए यहाँ पहुंचना ऐतिहासिक  नही तो और क्या है?
ठीक साढ़े आठ बजे डेफोडिल पब्लिक स्कूल, निडाना के 35 छात्र एवं छात्रा भी अपनी अध्यापिकाओं श्रीमती कांता व् सीमा मलिक के नेतृत्व में कपास के इस खेत में पीपल के नीचे पहुँच जाते हैं. ठीक इनके पीछे-पीछे इसी स्कूल के सह-संचालक श्री विजेंद्र मलिक व् प्राचार्य श्री ज्ञानी राम भी यहाँ पहुँच जाते हैं.
श्री रणबीर सिंह मलिक ने इस कीट पाठशाला के आयोजन व् उद्देश्यों के बारे में बच्चों को विस्तार से बताया. मीणा मलिक ने पाठशाला के लिए बच्चों का पंजीकरण किया. पांच-पांच बच्चों के सात समूह बनाये गये जो निम्नांकित थे.

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बच्चों के सात ग्रुप और इतने ही मास्टर ट्रेनर व् तीन स्कुल के अध्यापक. सभी ने कपास के खेत में ग्रुपों में जाकर ध्यानपूर्वक पौधों एवं कीटों का अवलोकन व् निरिक्षण किया. सभी सात के सात ग्रुपों ने दस-दस पौधों के तीन-तीन पत्तों पर क्रमवार सफ़ेद-मक्खी, तेला व् चुरड़े के केवल निम्फों की गिनती की व् अपनी-अपनी कापी में नोट किया. इसके साथ-साथ प्रत्येक पौधे पर दुसरे सभी कीटों की गिनती की व् इसे भी कापी में नोट किया. "ये क्या? देखो मैम", रेनू अचानक चिल्लाई.
'कुछ नही, ग्रास होपर है." विज्ञानं अध्यापिका विवेक ने तपाक से जबाब दिया.
इतना सुनते ही बिमला मुस्करा कर बोली, "ना मैडम ना, यू तो हथजोड़ा सै- गीदड़ की सुंडी आला. हमने तो इस पर एक गीत घड़ राख्या सै. मांसाहारी कीड़ा सै. अपनी कपास की फसल में बहुत सारे कीड़ों को खा-पीकर ख़त्म करेगा. अंग्रेजी में इस नै के कहा करै- वो डाक्टर जी तै पूछ लो. मनै तो स्कूल की पछीत भी नही देख राखी."
       राहुल वाले ग्रुप के उत्प्रेरक रनबीर मलिक के काना में जब ये बात पड़ी तो कहन लगा कि अंग्रेजी में तो इसनै प्रेयिंग मेंटिस कहा करै. मेरी दादी इस कीड़े की अंडेदानी को चीथड़े में बाँध कर ताक में रखती थी. वो इस अंडेदानी का के करा करै थी- इसका मनै भी नही बेरया. किसानों द्वारा धीरे से कीड़ों के ज्ञान को बच्चों की तरफ सरकाने के इस लाजवाब तरीके पर डॉ.दलाल भी हैरान था.
इसके बाद सभी ग्रुपों ने खेत के एक कोने में खड़े पीपल की छाँव में बैठकर अपनी इस कारवाई को चार्टों पर उतारा व् बारी-बारी से ग्रुप लीडरों ने चार्टों की मदद से सबके सामने पेश किया. 
                       सात के सात ग्रुपों द्वारा रिपोर्ट किये गये कीड़ो की संख्या को जोड़ा गया व् प्रति पत्ता औसत निकाली गयी. हरे तेले की 1.3, सफ़ेद माखी की 1.9 व् चुरड़े की 2.7 पाई गयी. यह औसत सत्तर पौधों के तीन-तीन पत्तों पर आधारित थी. सैम्पल साईज के कारण इस पर भरोसा ना करने का भी कोंई कारण नही था. कीड़ों की यह औसत संख्या उनके हानि पहूचाने के स्तर से काफी नीचे थी.
आज बच्चों ने इस खेत में भान्त-भान्त की वो मकड़ियाँ भी देखी जो घरों में दिखाई नही देती. एक छोटी सी मकड़ी को तेले का चूरमा बनाते हुए भी बच्चों ने देखा. भावना ने चुटकी ली," सर, मकड़ी के शारीर के तो दो ही भाग है. फिर इसे कीड़ों की श्रेणी में कैसे रखेंगे?"
   इतनी सुनकर कमलेश ने आगे बात बढ़ाई अक इसकी चार जोड़ी टांग से जबकि कीड़ों की तीन जोड़ी. इन मकड़ियां नै आपां जनौर कह कर गुज़ारा कर लेवां, इसमें ही सब कुछ आ जा सै. हाँ, इतना जरुर याद रख ले अक ये सारी मकड़ी अपने खेतों में कीटों को खा-पीकर जिन्दा रहती है. दस तरह की तो मैने ही अपने खेत में देख ली. अचूक किस्म की पेस्टीसाईड(कीड़ेमार) सै - ये मकड़ियां.
" दो ही घंटे के लिए हैं, हमारे छात्र आपके पास", ज्ञानी राम ने वायदा याद दिलाया. बस सब कुछ बीच में छोड़कर, फटाफट बिमला द्वारा लाया गया बाकुलियों के रूप में कीट-प्रसादा सभी को बांटा गया. बिमला द्वारा तैयार इस कीट-प्रसादे में कंडेसर का नमक अर तीखी मिर्च भुलाये नही भूलेंगी, हम्में.

Saturday, July 16, 2011

महिला खेत पाठशाला की दुसरे साल में नई शुरुवात !

  आज 16 जुलाई,2011 को  निडाना गाम की महिला खेत पाठशाला की दुसरे साल में एक नई शुरुवात के बीज बोए गये. रा.व्.मा. विद्यालय, डिफेंस कालोनी, जींद की विज्ञानं अध्यापिका श्रीमती सुशीला अपनी छात्राओं ममता, पिंकी व् प्रियंका के साथ कृषि विकास अधिकारी, निडाना के कार्यालय पहुंची. इन्होने कृषि विकास अधिकारी को बताया कि वे अपने भोजन में लगातार बढती जहर की मात्रा को लेकर बहुत चिंतित हैं तथा साथ में ही भुगतभोगी भी. वे समझती हैं कि मानव के लिए यह आत्मघाती परिस्थिति फसलों में कीट नियंत्रण के लिए कीटनाशकों के अनावश्यक एवं अंधाधुंध प्रयोग के कारण ही पैदा हुई हैं. कीटनाशकों के अनावश्यक एवं अंधाधुंध प्रयोग की बात छोड़िये अब तो सुना है कि कपास की फसल के लिए ऐसे बीजों का प्रचलन भी हमारे यहाँ आम हो चला है जिनके जरे-जरे में जहर होता है. आप इन्हें बी.टी.काटन कहते हैं. इसी लिए अपने पर्यावरण व् भोजन सुरक्षा के वास्ते हमने एक लघु परियोजना के तहत बी.टी.काटन के खेत में कीड़ों की वस्तुस्तिथि जानने के लिए अध्यन की ठानी है जबकि दूसरी परियोजना
कांग्रेस घास पर कीड़ों की जानकारी लेने के बारे में है.
  निडाना के कृषि विकास अधिकारी डा.सुरेन्द्र दलाल ने तुरंत इस टीम की मुलाक़ात महिला खेत पाठशाला की एक होनहार सदस्य श्रीमती अनीता मलिक से करवाई. अनीता ने अपने इन मेहमानों के लिए फ़टाफ़ट जलपान का जुगाड़ किया व् इसी दौरान अपने  पति श्री रणबीर सिंह तथा   अपनी जेठानी श्रीमती बिमला मलिक से बातचीत की. इस टीम के आने का प्रयोजन बताया. आगुन्तक टीम अनीता, बिमला व् रणबीर सिंह के साथ गोहाना रोड पर इनके कपास के खेत में पहुंचे और कीड़ों का अवलोकन व् निरिक्षण शुरू किया. अपने पड़ौस में
अन्य स्कूल के छात्रों की इस अप्रत्यासित कारवाई को देख कर डेफोडिल पब्लिक स्कूल, निडाना के सहसंचालक श्री विजेंद्र मलिक व् प्राचार्य श्री ज्ञानी राम शर्मा भी खेत में आ पहुंचे. इस कार्यवाही की पूरी जानकारी जुटाई. इन्होने इस टीम को काम निपटाने के बाद स्कूल में जलपान का निमंत्रण दिया. साढ़े तीन घंटे बी.टी.काटन के खेत में कीड़ों का अध्यन कर यह छात्रों एवं किसानों की टीम डेफोडिल पब्लिक स्कूल के कार्यालय में जलपान के लिए पहुंची. जलपान के दौरान ही स्कूल के सहसंचालक श्री विजेंद्र मलिक ने टीम के सामने उनके छात्रों के लिए भी प्रत्येक शनिवार को सुबह आठ से दस बजे तक इस कीट पाठशाला के आयोजन का प्रस्ताव पेश किया. निडाना गावं के इन तीन किसानों ने प्रस्ताव के माध्यम से
आई इस रोमांचकारी चुनौती को सह हर्ष स्वीकार किया. गावं में पहुँचते ही इन्होने अंग्रेजो की मदद से चार बजे महिला खेत पाठशाला की सभी सदस्यों की मीटिंग बुलाई. इस बैठक में डेफोडिल पब्लिक स्कूल, निडाना के छात्रों के लिए कीट पाठशाला के संचालन की बातचीत रखी और इसके लिए मास्टर ट्रेनरों के रूप में काम करने के लिए महिला किसानों से नाम मांगे गए. मीना मलिक, सरोज, कमलेश, बिमला, गीता, अंग्रेजो व् राजवंती ने इस काम के लिए अपने नाम लिखवाए और अगले शनिवार को 23 जुलाई की सुबह साढ़े आठ बजे प्रयोगाधीन खेत में पहुँचने का वायदा किया.


Friday, December 24, 2010

किसान खेत दिवस

24 दिसम्बर 10 को निडाना में कृषि विभाग के सौजन्य से किसान खेत दिवस का आयोजन किया गया. यह आयोजन निडाना गावँ में लगाई गयी महिला खेत पाठशाला के परिणाम किसानो को बताने के लिए किया गया. इस प्रोग्राम के मुख्य अतिथि कृषि विभाग के सयुंक्त निदेशक व हमेटी, जींद के प्राचार्य कम निदेशक डा.भूल सिंह नैन थे. जबकि इसकी अध्यक्षता जिला जींद के कृषि उपनिदेशक डा. आत्मा राम गोदारा ने की. इस कार्यक्रम में जिला जींद के दो दर्जन गावों से 1700 के लगभग किसानों ने भाग लिया. इनमे से 250 के आसपास महिला किसान थी. कृषि विभाग की विभिन्न शाखाओं द्वारा प्रदर्शनी लगाई गयी.किसान खेत दिवस के इस अवसर पर  गावँ के वर्तमान सरपंच श्री सुरेश मलिक के साथ-साथ पांच भूत पूर्व सरपंच सर्वश्री दलीप सिंह, रत्तन सिंह, बसाऊ राम, रणबीर सिंह व रामभगत सेठ भी इस मौके पर उपस्थित थे. इन्होने कार्यक्रम की औपचारिक शुरुवात होने से पहले ही  जिला जींद के जमीनी हकीकत से जुड़े मिडियाकर्मियों को निडाना के किसानों की तरफ से शाल उढ़ाकर सम्मानित किया व समृति चिन्ह भेंट किये. ये सम्मानित पत्रकार दैनिक भास्कर से श्री सुशिल भार्गव, हरी भूमि से श्री विजेंद्र कादयान, अमर उजाला से श्री सतेन्द्र पंडित, आज आवाज से श्री धर्मबीर निडाना, थे.  इण्डिया न्यूज़, हरियाणा से श्री सुनील मोंगा व उनके कैमरामैन रोहताश भोला तीन दिन पहले एक दुर्घटना में सुनील मोंगा के घायल होने के कारण इस अवसर पर पहुँच नही पाए. उनकी जगह जे.सी.एन.(शहरनामा) के श्री ऋषि ने ये स्मृति चिन्ह ग्रहण किये. हिंदुस्तान टाईम्स से सुश्री निशा अवतार व दी ट्रिब्यून से बिजेंद्र अहलावत किन्ही कारणों से इस प्रोग्राम में पहुँच नही सके. 
ठीक साढ़े ग्यारह बजे  हमेटी के निदेशक डा.भूल सिंह नैन ने रीबन काट कर कृषि विभाग द्वारा आयोजित इस प्रोग्राम की विधिवत शुरुवात की.  इसके बाद डा. नैन ने कृषि विभाग के प्रदर्शनी स्थलों का जायजा लिया. इसके बाद उन्होंने निडाना के किसानों द्वारा लगाये गई कीट प्रदर्शनी का बारीकी से अवलोकन किया व निडाना के खेतों में कपास की फसल में पाए गये कीटों के बारे में विस्तार से जानकारी ली व कीट-प्रासादा चखा. याद रहे निडाना के किसानों ने सभीं आगुन्तकों के लिए प्रसादे के रूप में चालीस किलो देसी घी से तैयार हलवे व बाकुली का प्रबंध कर रखा था. कीट प्रसाद घर में कीट-प्रासादा ग्रहण करने वालों को एक-एक कैलेंडर भी भेंट किया जा रहा था.  कीटों की पहचान  के महत्व पर तैयार यह कैलेंडर गावँ के नम्बरदार श्री राममेहर मलिक ने अपने खर्चे से छपवाया व इसकी 1700 प्रतियाँ यहाँ बांटी गयी. इस खेत दिवस में आने वाला हर किसान जितनी बार कीट-प्रासादा चखना चाहे - पूरी छुट थी. पर एक शर्त थी कि उसकों हर बार यहाँ प्रदर्शित कीटों की जानकारी लेनी होगी.
स्टेज पर कार्यक्रम की शुरुवात में जिला जींद के कृषि उपनिदेशक डा.आत्मा राम गोदारा ने डा.भूल सिंह नैन को स्मृति चिन्ह भेंट किया. गावँ के भू.पु.सरपंच श्री दलीप सिंह ने आदरमान के लिए गावँ में सबसे बड़े सम्मान की प्रतिक पगड़ी ग्रामवासियों की तरफ से डा.भूल सिंह को तथा वर्तमान सरपंच श्री सुरेश मलिक ने डा. आत्मा राम गोदारा को पहनाई. इसी अवसर पर सर्व श्री सुरेन्द्र मलिक व् राजेन्द्र सिंह ने इन अधिकारीयों को खेत पाठशाला की तरफ से स्मृति चिन्ह भेंट किये. इसी समय गावं के प्रगतिशील किसान श्री रामेहर मलिक द्वारा छपवाए गये कीट कलेंडर का विमोचन किया गया|  सहायक गन्ना विकास अधिकारी डा.धर्मपाल कटारिया ने जिले में चल रही गतिविधियों के बारे में लोगों को जानकारी दी. इसके बाद  पाठशाला की महिलाओं ने दो गीतों(कीड़याँ का कट रह्या चाला हे... तथा  मै बीटल हूँ...  मै कीटल हूँ... समझो मेरी महता को) की प्रस्तुति दी. इन गीतों के लिए बैन्जू व ढोलक पर श्री कुलदीप सिंह, राजबीर व साथियों ने साथ दिया.इस मौके पर डा.नीना  सुहाग ने भू.संरक्षण से सम्बंधित तकनीकों एवं स्कीमों के जानकारी उपस्थित लोगों को दी. इसी समय डा.राजपाल सूरा ने गेहूं व् सरसों की फसलों की खेती बारे में आधुनिक तकनीकें किसानों को बताई. इसके बाद गावं के भू.पु.सरपंच रत्तन सिंह ने निडाना की धरती पर सभी मेहमानों का स्वागत करते हुए कृषि विभाग द्वारा चलाई जा रही खेत पाठशालाओं के महत्त्व को रेखांकित किया व् किसानों से कीट नियंत्रण के लिए कीटों की पहचान करने की अपील की.. डा.कमल सैनी ने महिला खेत पाठशाला की उपलब्धियों एवं कमजोरियों पर विस्तार से प्रकाश डाला. जिंदल ग्लोबल युनिवर्ष्टि में विधि स्नातक की शिक्षा ग्रहण कर रहे छात्र श्री अंकित ग्रेवाल ने खुश होकर अपने माँ-बाप की कमाई से 1100 रुपये की राशी महिला खेत पाठशाला की महिलाओं को इनाम स्वरुप भेंट की तथा इन महिलाओं के मुकदमें फ्री में लड़ने का वायदा किया. इसके बाद महिलाओं ने फिर दो गीतों की प्रस्तुति दी. एक गीत था अपने पति को पाठशाला में आकर भान्त-भान्त के कीड़े देखने का आमन्त्रण तथा दुसरे गीत में पाठशाला के विभिन्न सत्रों में पुरषों के उल्हानों का जवाब व् महिलाओं से पाठशाला में शामिल होने की अपील 
इस अवसर पर निडाना गावं के किसान रामेहर मलिक, नम्बरदार ने भी अपने विचार कृषि विभाग के अधिकारीयों व् किसानों से साझा किये| इन्होने उपस्थित किसानों को बताया कि प्रसिध्द कीट विज्ञानी डा.सरोज जयपाल भी इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए करनाल से चल चुकी है और उनके यहाँ तीन बजे तक पहुचने की उम्मीद है|
अब कार्यक्रम के मुख्यातिथि डा.भूल सिंह नैन ने उपस्थित किसानों व् निडाना गावं का विशेष धन्यवाद् करते हुए इस कीट साक्षरता के अभियान में किसानों से और जोर लगाने की अपील की| उन्होंने उम्मीद जताई कि निडाना में शुरू हुआ यह काम जल्दी ही पुरे जींद जिला में फैलेगा और फिर पुरे हरियाणा में अर वो दिन दूर नही जब हम हरियाणा को जहर मुक्त प्रदेश बनाने में कामयाब होंगे| उन्होंने कृषि अधिकारीयों एवं किसानों को कृषि विकास के लिए गाड़ी के दो पहियें बताते हुए इनके आपसी सामंजस्य पर जोर दिया|
अब आज के इस प्रोग्राम क़ी अध्यक्षता कर रहे डा.आत्मा राम गोदारा ने अपना अध्यक्षीय भाषण देते हुए इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, कृषि अधिकारीयों,  आयोजकों व्  विभिन्न गावों से आये हुए किसानों का इस प्रोग्राम के सफल आयोजन के लिए धन्वाद किया और निडाना की महिलाओं का विशेष रूप से| इस समय दिन के दो बजे थे और डा.सरोज जैपाल समय व् स्थान की बाधाओं के चलते तीन बजे से पहले यहाँ पहुच नही सकती|
कार्यक्रम की समाप्ति के बावजूद डा.सुरेन्द्र दलाल ने किसानों से डा. सरोज जयपाल के यहाँ पहुँचने तक यहीं जमे रहने की अपील क़ी| इन्होने किसानों को सुचना दी क़ि डा.साहिबा खांडा-अलेवा पहुच चुकी हैं और अब यहाँ आध-पौन घंटे में पहुच जाएगी. इसी समय डा.आत्मा राम ने कृषि अधिकारीयों को भी मैडम के आने तक यही रुक्कने को कहा|  इंतजार की घड़ियाँ लम्बी होती है और अब इस इंतजार को बौना करने के लिए मोर्चा संभाला मास्टर राजेश व् इसके साथियों ने भूरा और निंघाहिया के किस्से की रागनियाँ गा कर| इंतजार के लम्हे कैसे गुज़रे, किसी को पता ही नही चला|
ठीक तीन बजने में सात मिनट पर डा. सरोज जयपाल यहाँ पहुँचने पर कार्यक्रम में उपस्तिथ 250 से ज्यादा महिलाएं अपनी कुर्सियां छोडकर अपनी चहेती कीट विज्ञानी का स्वागत करने सडक पर आ पहुंची| सबके हाथों में फूल मालाएँ थी|  डा. सरोज जयपाल के गले में फूल माला डालकर महिलाओं द्वारा जाफी भरने में एक गजब का अपनापन था| इसके बाद महिलाओं द्वारा डा. जी को कीट-पंडाल में लेजाकर फलैक्स बोर्डों की मार्फत निडाना में देखे गये सभी मांसाहारी व् शाकाहारी कीट दिखाए गये| तीन कीट रोगाणु व् एनासिय्स, ट्राईकोग्रामा व् टेलेनोम्स जैसे छोटे-छोटे कीड़ों समेत सौ से भी ज्यादा कीड़ों के संजीदा फोटो देखकर डा.सरोज जयपाल हैरान रह गई| कीट-पंडाल के निकासी- द्वार पर महिलाओं द्वारा डा.सरोज व् इनके पति डा, जयपाल ढींढसा को कीट-प्रसादा व् कीट-कलेंडर सप्रेम भेंट किये गये| यहीं जा कर निडाना की इन महिलाओं को डा.सरोज द्वारा अपने नाम के पीछे जयपाल लगाने का भेद मालूम हुआ| इसके पश्चात् इस जोड़े को मंच पर ले जाया गया जहां गावं की महिला किसानों द्वारा डा.सरोज को पगड़ी पहनाई व् शाल भेंट किया गया| इसी समय डा,सरोज व् डा,जयपाल को स्मृति चिन्ह भेंट किया गया| इसके बाद डा,सरोज जयपाल ने समय की नजाकत को देखते हुए कीट प्रबंधन पर सारगर्भित सन्देश यहाँ उपस्तिथ किसानों को दिया| अब जा कर आज का यह खेत दिवस कार्यक्रम सही मायने में समाप्त हुआ| 
अब गावं के किसान डा,सरोज व् डा जयपाल को जलपान के लिए सुरेन्द्र सिंह के घर ले गये| इस अवसर पर सफीदों के उपमंडल कृषि अधिकारी डा.सत्यवान, जींद के उपमंडल कृषि अधिकारीडा.पवन धींगडा, सहायक पौधा संरक्षण अधिकारी डा.मान व् सहायक सांख्की अधिकारी डा.सर्वजीत सिंह भी डा.साहिबा के साथ थे| चाय की चुस्कियों के साथ शुरू हुआ यहाँ के किसानों के साथ अनौपचारिक संवाद का सिलसिला| 
निडाना ग्रामवासियों को सालों-साल यद् रहेगा यह किसान खेत दिवस का कार्यक्रम|



Monday, November 29, 2010

अनावरण-यात्रा

निडाना गावँ में चल रही महिला खेत पाठशाला की  किसानों ने 23 नवम्बर से 28 नवम्बर,2010 तक हरियाणा, पंजाब व हिमाचल प्रदेश का पाँच दिवसीय अनावरण-यात्रा की. इस अनावरण-यात्रा का वित्तपोषण आत्मा स्कीम के तहत कृषि विभाग, जींद ने किया. 
                   अनावरण-यात्रा के लिए महिलाओं का यह जत्था  23 नवम्बर की सुबह सात बजे निडाना गावँ से करनाल के लिए रवाना हुआ. गाँव के सरपंच श्री सुरेश मलिक व् महाबीर मलिक ने इस जत्थे को हरी झंडी दिखाकर निडाना गावं से रवाना किया. इस दौरान बस में बैठे-बैठे ही डा सुरेन्द्र दलाल व् डा.कमल सैनी के मार्गदर्शन में इन महिलाओं ने हरियाणा की फसलों में पाए जाने वाले कीटों पर सामूहिक रूप से चार गीतों की रचना की व रास्ते में ही इनकी रिहर्सल की. हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के उचानी स्थित क्षेत्रीय अनुसन्धान केंद्र पहुचने पर कृषि विज्ञानं केंद्र के डा.दिलबाग अहलावत से इस जत्थे की अप्रत्याशित मुलाकात हुई. इस आकस्मिक मुलाकात से डा. साहिब के दिल में उपजी ख़ुशी खून की मार्फ़त उनके चेहरे पर छुपाये नही छुप रही थी. डा. साहिब ही इस जत्थे को डा.सरोज जयपाल की प्रयोगशाला तक लेकर गये. डा. सरोज जयपाल ने भी इस जत्थे को हाथो-हाथ लिया. उन्होंने इन महिलाओं के दो ग्रुप बनवाये.एक ग्रुप को अंदर बुलवाया. डा. साहिब ने इस ग्रुप को गन्ने की फसल में कीट प्रबंधन  बारे विस्तार से जानकारी देनी शुरू की. इस बीच डा. दलाल ने डा. सरोज को बताया की महिलाओं का यह ग्रुप आपके पास कीटों की समस्याओं के समाधान वास्ते नही आया है. बल्कि ये तो आपके पास गन्ने की फसल में हानि पहुचाने वाले कीटों की पहचान करने की गरज से आयी हैं. डा जी, सतयुग में ही एक किसान को समस्याग्रस्त देखकर जब पार्वती ने अपने पतिदेव से इस किसान के दुःख दूर करने की प्रार्थना की तो शिव जी ने पार्वती को ही धमका दिया था "किस किस के दुःख दूर करैगी. या दुनिया दुखी फिरै रानी."  हैसियती  अंहकार से  एकदम कोसों दूर डा. सरोज ने इस बात को बहुत ही सहज भाव से लिया और.कहने लगी आप तो दो कीटों की बात कहते हैं. मैं तुम्में कम से कम 6 कीटों की पहचान करवाउंगी. ठीक इसी समय महिलाओं ने भी लैपटाप पर कपास की फसल में निडाना गावँ में देखे गये सभी कीट डा. सरोज जयपाल को दिखाने शुरू किये तथा रास्ते में रचे गये गीतों में से एक "कीटों का कट रहया चाला हे, मनै तेरी सू" की पहली प्रस्तुति देनी शुरू की. स्लाईड देखते-देखते डा. सरोज ने भी इस गीत को गाने में महिलाओं का पूरा-पूरा साथ दिया. यह नज़ारा देख कर इस खेत पाठशाला के कीट प्रशिक्षक किसान रणबीर मलिक व मनबीर रेड्हू की टिप्पणी थी कि डा. साहब समय के साथ ये गीत हिट हो सकते हैं. इसके पश्चात डा. सरोज जयपाल इन महिलाओं को साथ वाली लैब में ले गयी. वहाँ पर रखे कीटों के संरक्षित सैम्पल एक-एक कर महिलाओं को दिखाने लगी. यह है चोटी-बेदक की सूंडी, यह जड़-बेदक की,.. यह तना-छेदक की,... सभी की विशेषताएं बताई,..  असली बात तो यह है की यहाँ वरिष्ठ कीट-वैज्ञानिक और यात्री किसानों के बीच रति भर भी फ़ासला नही था.  इन पंक्तियों का लिखने वाला तो  डा. सरोज को सुनना व सहेजना भूल मन्त्र-मुग्ध हो वीडियो बनानी व फोटो खीचने ही भूल गया. इसकी स्मृतियों में तो 1981 की साल कीटविज्ञान के प्रारम्भिक कोर्स के प्रैक्टिकल में डा सरोज की शिक्षण-पद्धति ही बार-बार ताज़ा हो आई. गज़ब की शख़्सियत है डा. सरोज जयपाल का. कहीं कोई औपचारिकता नही, कोई खाई नही. सब सहज भाव से. 
               इसके बाद डा. जी ने इन महिलाओं को कीटनाशकों वाला काम करने वाले छोटे से कीट - ट्राईकोग्रामा व फफुन्दीय रोगाणु- बेवरिया बेसयाना को घर पर ही कम खर्च में पैदा करने की तकनीक विस्तार से समझाई. बेवरिया बेसयाना को लेकर एक नई बहस शुरू हो गयी क़ि कीट प्रबंधन में इस रोगाणु का इस्तेमाल क्या स्तनपाईयों के लिए सुरक्षित है? इस पर डा. सरोज जी बोली क़ि इसका इस्तेमाल बिलकुल सुरक्षित है. पर मनबीर ने सवाल उठाया क़ि अटवाल व धालीवाल की किताब "AGRICULTURAL PESTS OF SOUTH ASIA"  के 99वें पेज पर 21वीं लाइन में लिखा है क़ि यह जहरीली फफूंद स्तनधारियों के लिए भी उतनी ही खतरनाक है जितनी कीटों के लिए.  डा. सरोज ने इस बहस को यूँ समेटा कि यह रोगाणु है तो सुरक्षित पर पत्ता नही किन सन्दर्भों में उन्होंने ये बात लिखी है. कभी पढ़ कर ही आपको बत्ताऊँगी!
               यह मालूम होने के बावजूद कि कैंटीन में असल में तो कर्मचारी मिलने ही नही, अगर मिल भी गये तो कहेंगे कि मैडम- दूध नही है,.. आपने पहले क्यों नही बोला?....,  डा.सरोज जयपाल सभी को चाय पिलाने के लिए जबरदस्ती कैंटीन में लेकर गयी. इत्मीनान से कर्मचारी ढूंढे. दूध मंगवाया. चाय का इंतज़ार होने लगा. इन इंतजारी लम्हों का भरपूर फायदा उठाने के लिए महिलाओं ने आपने दुसरे गीत "मै बीटल हूँ.., मैं कीटल हूँ,.... तुम समझो मेरी महता को". को गाना धुरु किया. सभी ने मिलकर इस गाने का लुफ्त उठाया. फिर गरमा-गर्म चाय क़ी चुसकिया ली. अब डा.सरोज जयपाल इस जत्थे को आगे रवाना करने के लिए बस तक छोड़ने आई. इन्हें भावविनी बिदाई देते हुए वायदा किया कि निडाना क़ी महिलाएं अगर उन्हें रात को भी याद करेंगी तो वे रात के बारह बजे भी हाज़िर होंगी.
                                 इसके पश्चात् महिलाओं के इस जत्थे ने पिंजौर का रुख किया. रास्ते में जी.टी.रोड पर एक भोजनालय पर खाना खाया . शाहाबाद से कोई लिंक रोड पकडकर पिंजोर पहुंचे. पिंजौर गार्डन देखकर चंडीगढ़ के लिए रवाना हुए. रात के साढ़े आठ बजे सेक्टर 28 स्थित हरियाणा के पंचायत भवन पहुंचे. पंचायत भवन में इस जत्थे के लिए ठहराने की व्यवस्था करवाने वाले पंजाब सरकार के उपमहाअधिवक्ता  डॉ रणवीर सिंह चौहान मौके पर उपस्थित थे. यहीं कैंटीन में रात्रि का भोजन किया व इसी भवन में रात्रि विश्राम किया. सोने से पहले इन यात्री महिलाओं ने लैप-टाप पर कपास की फसल में इस साल पाए गये मांसाहारी कीटों की स्लाईड देखी.
                                                        24 नवम्बर,10  की प्रात:  पंचायत भवन की कैंटीन में ही नाश्ता कर यह जत्था नंगल डैम व् भाखड़ा डैम देखने के लिए रवाना हुआ. नंगल डैम देखते हुए यह जत्था दिन के एक बजे भाखड़ा बाँध पर पंहुचा. बांध की ऊँचाई व् जल भण्डारण क्षेत्र का विस्तार देख सभी आश्चर्यचकित रह गये. यहीं चाय पार्टी के दौरान सामूहिक निर्णय हुआ कि अब सुंदर नगर वाया नैना देवी चला जाये. नैना देवी यहाँ से 18 किलोमीटर ही है. एक तो यह मिनी बस बूढी अर उपर से इसमें बैठे यात्री पहाड़ी रास्तों के अभ्यस्त नही थे.   नैना देवी पहुँचते-पहुँचते सभी बुरी तरह से थक चुके थे. लेकिन नैना-दर्शन  के लोभ ने इस थकावट को दरकिनार कर दिया. सभी बस से उतरते ही नैना-दर्शनों के लिए सीढियों के रास्ते पहाड़ी की चोटी पर चढने के लिए चल दिए. चढ़ाई तो थोड़ी ही थी पर कसूती खड़ी थी. नीचे आये तो शाम के सवा चार बज चुके थे. पहाड़ो के रास्तों से अंजान ड्राईवर एवं यात्रियों के लिए अब सुंदरनगर के लिए प्रस्थान करना समझदारी नही थी. अत:  यही नैना देवी ट्रस्ट की एक धर्मशाला में रात्रि विश्राम के लिए कमरे बुक करवाए. सामान रखने के बाद इसी धर्मशाला की कैंटीन से चाय का जुगाड़ किया. चाय पीते-पीते अँधेरा हो चूका था. इस धर्मशाला की बाउंड्री से ही अँधेरे में पहाड़ो की रौशनी का नज़ारा लिया. कैंटीन में रात्रि भोजन करने के बाद महिलाओं ने कीट साक्षरता के विभिन्न आयामों पर चर्चा की व् लैप-टाप पर "महिला खेत पाठशाला" के ब्लॉग पढ़े. मिनी ने "कृषि चौपाल' ब्लॉग पर से एक कहानी "बस यूँ ऐ" सभी को पढ़ कर सुनाई. राजबाला तो ये कहानी सुनते-सुनते कहीं खो गयी. रात को ही जब नेट पर सर्फिंग करते हुए शहीद भगत सिंह, बंगा और खटकड़ कलां की बात चली तो इन महिलाओं ने सुंदरनगर जाने की बजाय अगले दिन खटकड़ कलां विज़िट करने की ठानी.
                                                             परिणाम स्वरुप  25 नवम्बर,10 को प्रात: जल्दी उठकर सभी फटाफट तैयार हुए. इस धर्मशाला में नहाने के लिए गर्म पानी की व्यवस्था थी. चाय के साथ स्नैक्स लेकर यह जत्था आनंदपुर साहिब, गढ़शंकर व बंगा के रास्ते शहीदे-आज़म भगत सिंह के गावँ खटकड़ कलां के लिए रवाना हुआ.  अमृतसर-चंडीगढ़ हाईवे पर बंगा से दो किलोमीटर चंडीगढ़ की तरफ  हाईवे पर ही स्तिथ है यादगार संग्राहलय.  यहीं से खटकड़ कलां को पहुँच मार्ग जाता है. इस यादगार संग्राहलय के  प्रांगण में ही शहीद भगत सिंह की  विशाल प्रतिमा लगी हुए है जो दूर से नजर आती है.   यादगार संग्राहलय के हाल में किसानों के इस जत्थे ने दो घंटे लगाये. संग्राहलय के हॉल में मुक्ति-कामि आन्दोलन में अंग्रेजी हकुमत के विरुद्ध झंडा बुलंद करने वाले शहीदों, क्रांतिकारियों व स्वाधीनता सेनानियों के दुर्लभ फोटों हैं, शहीद भगत सिंह के बचपन व परिवार के सदस्यों के फोटों हैं.  इस संग्रालय में शहीद भगत सिंह के बचपन से जुड़ी चीजें, उसके खून से सन्नी मिटटी व एक अंग्रेजी का अख़बार भी संरक्षित हैं. इसमें भगत सिंह के दस्तावेज़ व उनके दस्तक वाली गीता की कापी भी संरक्षित है. 
शहीद भगत सिंह के बचपन व परिवार के सदस्यों के फोटों देखकर ये महिलाएं द्रवित हो उठी और कुछ महिलाओं क़ी आँखों में तो वास्तव में आँसू भी छलक आये. क्रांतिकारियों व स्वाधीनता सेनानियों में सुशीला व दुर्गा भाभी सम्मेत अनेक वीरांगनाओं के फोटो देखकर इन महिला किसानों की प्रतिक्रया थी क़ि हमने तो स्वाधीनता संग्राम में रानी झाँसी का ही नाम सुना था.यहाँ आकर पता चला क़ि हिंदुस्तान की आज़ादी के इस आन्दोलन में महिलाएं भी पीछे नही थी. जिला जींद के खटकड़ गावँ में जन्मी सुदेश का कहना था कि सरजी, हम भी तो आज़ादी क़ी लड़ाई ही लड़ रहीं हैं. अंतर इतना है कि हमारी इन क्रन्तिकारी बहनों ने अंग्रेजी शासन से मुक्ति के लिए जंग लड़ी थी और हम कीटनाशकों से मुक्ति के लिए जदोजहद कर रही हैं. 
"चट्टनी में गोली" वाले क्रन्तिकारी,  क्रांति कुमार का फोटो यहाँ देखकर डा.सुरेन्द्र दलाल ने इन महिलाओं को बताया कि हरियाणा के पानीपत शहर में क्रांति-नगर इसी क्रांति कुमार के नाम पर बसा हुआ. इसी कालोनी में क्रांति कुनार क़ी बेटी उर्वशी व बेटा विनय कुमार रहते हैं. 
संग्रालय के प्रांगन में ही "दाना पानी" नाम से एक निजी कैटरिंग सेवा है. इस भोजनालय पर ही महिलाओं ने आज का लंच ग्रहण किया. दाना-पानी का भोजन साफ- सुथरा एवं स्वाद था व सेवा सराहनीय थी. 
   बाघा बार्डर के लिए रवाना होने के लिए बस में सवार होते ही नन्ही, कमलाप्रकाशी ने एक नया सवाल उठा दिया - अक जी, हमनै फाँसी पर झुलनिये माणस क़ी जीब बाहर लिकड़ी देखी अर् टट्टी भी लिकड़ी देखी पर आज तक खून किसे का लिकड़ा नही देखा. फेर यू मिटटी अर् अख़बार पर भगत सिंह का खून कीत तै लग गया? इसका जवाब इस जत्थे में किसी के पास नही था. यहाँ से बंगा व फगवाडा होते हुए जालंधर पहुंचे. जालंधर से जी.टी.रोड होते हुए अमृतसर पहुचे. सारे रास्ते सड़क पर सरपट दौड़ती मिनी बस की खिडकियों से सड़क के दोनों ओर या तो खरपतवारनासी जहरों से सन्नी हरित क्रांति की हरियाली दिखाई दे रही थी या फिर गावों के रूप में सीमेंट-कंक्रीट के बोझड़े या कस्बों के रूप में सीमेंट-कंक्रीट की बणी या फिर नगरों के रूप में सीमेंट-कंक्रीट के बीड़ ही दिखाई दे रहे थे. अमृतसर पहुँचते ही सबसे पहले गुरु रामदास सराए में रात्रि विश्राम के लिए तीन कमरे बुक करवाए और फिर बिना कुछ खाये-पीये चल दिए बाघा बोर्डर पर परेड देखने के लिए. लेट होने का डर था. हिंदुस्तान व पाकिस्तान के बोर्डर पर परेड देखने का चाव इन महिला किसानों के दिलो-दिमाग पर इस कदर हावी था कि भूख को दिमाग पर हावी नही होने दिया. 28 किलोमीटर के रास्ते में तीन-तीन टोल बैरियर पर ठुकाई के बावजूद शाम को परेड की रस्म अदायगी से पहले ही यह जत्था बाघा बोर्डर पहुँच गया. यहाँ परेड की रस्म देखने के लिए एक खुला थिएटर बनाया हुआ है. इसी की सीढ़ियों पर हमने भी परेड शुरू होने से पहले ही अपनी जगह ले ली. यहाँ दोनों ओर के दर्शकों की ललकार, तालियों की गड़गड़ाहट व नाच-गाना वास्तव में एक रोमांचकारी एवं रोंगटे खड़े कर देने वाला अनुभव था. यहाँ दोनों तरफ के सुरक्षा सैनिकों का परेड के रूप में जमीन पर जोर-जोर से पैर पटकना, गजब की कदमताल व पूरे गुस्से में भर कर गेट खोलना- हमे तो  एक तरह से बेमतलब एक-दुसरे को नीचा दिखाने वाला काम ही लगा. बिना एक दुसरे को छुए केवल भाव-भंगिमाओं व शारीरिक-भाषा के बलबूते भी एक-दूजे का क़त्ल किया जा सकता है- यह यहीं आकर व परेड देखकर मालूम हुआ. रास्ट्रीय झंडा झुकाने तक परेड की पूरी रस्म  देख कर व अंग्रेजो के मोबईली मसले में उलझे-उलझे वापिस अमृतसर पहुंचे. अमृतसर में पूछते-पूछते गुरु रामदास सराए में रात्रि के लिए अपना ठिकाना ढूंढा. कमरों में अपना सामान रखते ही खोखे से मँगा कर एक-एक चाय पी. डा.कमल सैनी के सुझाव पर आज रात्रि-भोज लंगर में ही करने का निर्णय हुआ. सामने ही शहीद बाबा दलीप सिंह जी के गुरूद्वारे में लंगर चल रहा था. गुरूद्वारे के प्रांगण में पहुच कर मिनी बस को पार्किंग में खड़ा किया और इसी बस में डा. दलाल व सैनी को छोडकर सभी के जूते रखवा दिए गये. लंगर में दाल-रोटी खा कर वापिस आये तो दोनों डाक्टरों को  उभाने पाया सराए में आना पड़ा.  अंग्रेजो सम्मेत सभी  महिलाओं को बिना बात एक अच्छा खासा मसला मिल गया. कोई कहने लगी अक ठीक होया - घने सयाने बने हांडे थे. कोए कहने लगी- घनी सयानी दो बर पोया करै. राजवंती अर् सरोज  न्यूँ बोली- डा.जी, मैं बड़ी खुश हुई आपके जूते खूने पर. इब तो आप नै नये खरीदने ही पड़ेंगे. नही तो उन पुराने-फटे होया नै ही पहरे हांडे जांदे.
"घणा मायूस होन की जरुरत नही, डा. जी. बीस जनी सा. सौ-सौ रूपये कट्ठे करके दे दिवांगी. दो हजार के नये जूते खरीद लियो बढ़िया से. ऊपर के ल्योगे तो आपके लगैगे."- बिमला अर् अंग्रेजो नै डा. दलाल को दिलासा दी.
                                     26 नवंबर,10 को सुबह नहा धो कर चाय पी और यहाँ से सीधे जलियांवाला बाग़ पहुचे. बाग में पहुँच कर दीवारों पर उन गोलियों के निशान देखे जो जनरल डायर ने 13 अप्रैल 1919 के दिन  यहाँ इक्कठा हुए निहत्थे लोगों पर बिना कोई चेतावनी दिए शाम को 5:15 बजे चलवाई थी. आठ- दस मिनट की गोलाबारी में 1650 राउण्ड फायर किये गये. इस गोला-बारी में 379 लोग मारे गये और हजारों घायल हुए. गोलियों की मार से बचने के लिए सैकड़ों लोग यहाँ एक कुँए में कूद गये. इस कुँए से 120 लाश निकाली गयी थी.
जलियांवाला बाग देखने के बाद यह जत्था लुधियाना के लिए रवाना हुआ. रास्ते में जालंधर पहुचने से पहले ही जी.टी.रोड पर स्थित एक पंजाबी ढाबे पर दोपहर का भोजन किया. इसी ढाबे के प्रांगन में पौधों पर एक मांसाहारी कीट हथजोड़ा नजर आया तो महिलाओं ने इस कीट की विशेषताओं पर गीत गाना शुरू किया व इसकी एक वीडियो तैयार की. यहाँ से हम सीधे लुधियाना स्थित पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के पार्कर हॉउस पहुचे. इस निवास में तो राजपत्रित अधिकारीयों के लिए ठहरने की व्यवस्था है. अत: इन महिला किसानों को इस पार्कर हॉउस में ठिकाना नही मिला. पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के पार्कर हॉउस में ठहरने का ठिकाना न मिलने पर डा. दलाल के मन में तो साहिर लुधियानवी ये बोल "  ऐ रहबरे मुल्क -ओ-कोम जरा, आँखें तो उठा,  नजरें तो मिला, कुछ हम भी सुने हमको भी बता" बार-बार मरोड़े मार रहे थे|  इसी क्षण मिनी ने पूछ लिया कि सर, पार्कर की तो स्याही अर पैन देखे और सुने थे! यू पार्कर हॉउस आड़े ही सुना? इस अनपेक्षित सवाल पर तो एकदम डा.दलाल भी चौक गया. पर माड़ा-मोटा जवाब तो देना ही था. यूँ कहन लगा कि मिनी, यूँ हॉउस आला-पार्कर तो हो-ना-हो आर.डब्लू.पार्कर हो सकै सै जो 1954 में राक्फेलर फाऊंडेसन का चेयरमैन था. इस फाऊंडेसन ने द्विपक्षीय वैज्ञानिक निगम की साल हिंदुस्तान के दर्जनों कृषि-स्नातकोत्तर छात्रों को अमेरिका में पी.एचडी. करने के लिए छात्रवृति दी थी. पी.एचडी.का शोध-विषय था-भारत के विभिन सिंचित क्षेत्रों में मिट्टी की उर्वरता.और इसी पृष्ठभूमि में अपने यहाँ कृषि की दशा व् दिशा तय करने के लिए भारत और अमेरिका के विज्ञानिकों को मिला कर एक द्विपक्षीय वैज्ञानिक निगम का गठन हुआ. इस निगम की सिफारिशों पर ही हमारे देश के सिंचित क्षेत्रों में नौ कृषि विश्वविद्यालयों की स्थापना भूमि अनुदान पैटर्न पर पी.एल.480 स्कीम की मदद से हुई. इन नौ कृषि विश्वविद्यालयों में सतलुज, ब्यास व् रावी दरियाओं के जल से सिंचित क्षेत्र में लुधियाना स्तिथ पंजाब कृषि विश्वविद्यालय भी था. इन सबके बीच 1965 में अपने देश में गेहूं का उत्पादन बढ़ाने के लिए लर्मा-रोज़ा, सोनारा-64 व् सोनारा-65 नामक उर्वरक-संवेदी उन्नत किस्मों का 18000 टन बीज आयात किया गया. निसंदेह गेहूं का उत्पादन बढ़ा, उर्वरकों की खेती में खपत बढ़ी. लेकिन साथ-साथ सत्तर के दशक में ही गेहूं की फसल में मंडूसी नामक खरपतवार भी किसानों को ठोसे दिखाने लगा था. अब इस पार्कर-हाउस ने दिखा दिए तो कोई खास बात नही! ठहरने की वैकल्पिक व्यवस्था हेतु इसी कैम्पस में स्थित समेटी के दफ्तर पहुंचे. पर इस संस्था के पास किसानों या प्रशिक्षणार्थियों को ठहराने की व्यवस्था नही मिली. इन महिला किसानों का डा.धवन से संवाद  का सपना तो इतने में ही चकनाचूर हो चुका था. पर फिर भी ठहरना तो था ही. इसी के इंतज़ाम वास्ते यह जत्था पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के निदेशक (विस्तार) महोदय, डा, मुख्यतार सिंह गिल से मिला| इन्होने अगर-मगर के बाद महिला किसानों के इस जत्थे को कैरों किसान सदन के इंचार्ज से मिलने को कहा| निराशा से बोजिल दिल में एक आशा की छोटी सी किरण लिए, अब सारे जने कैरों किसान आवास पहुंचे व् इसके इंचार्ज महोदय से मुलाकात की| इंचार्ज महोदय ने महिलाओं को इस सराय में ठहराने में असमर्थता दिखाई| जब इनसे डा, मुख्यतार सिंह गिल से बात करने के लिए कहा गया तो साहब का जवाब था- आप लोगों की मुलाकात के समय, मैं वहीं था| डा.गिल ने मेरे को लिख कर आदेश तो दिए नहीं| ऐसे में, इन महिलाओं की सुरक्षा की जिम्मेवारी कौन ले| आप मर्दों को जितने चाहो ले आओ, हम यहाँ ठहरने की व्यवस्था कर देंगें| पौने पांच बजने को हैं, अब तो आप जल्दी करके होम साईंस की डीन से मिल लें| वो जरुर किसी होस्टल के कामन-रूम में आप लोगों के लिए रात काटने का जुगाड़ कर देंगी| 
" पूत के पाँ पालने में ही देख लिए| इब आड़े क्यों धक्के खाओ", कमला अर नन्ही नै दखल दिया| महिला किसान क्लबों के गठन में प्रयासरत इस बेस्ट अवार्डी कृषि विश्वविद्यालय में महिला किसानों के ठहरने की व्यवस्था न होने पर हैरान इन महिला किसानों ने गैरटेम होने के बावजूद कुरुक्षेत्र के लिए रवाना होने में ही अपनी भलाई सोची| मनबीर ने कुरुक्षेत्र स्तिथ जैराम आश्रम के व्यवस्थापक से टेलीफोन पर बात की और आज की रात काटने के लिए इस आश्रम में कमरे बुक करवाए| कृषि विश्वविद्यालय से निकलकर यह जत्था ऊनी वस्त्रों की सस्ती खरीदारी के चक्कर में चौड़ा बाज़ार पहुँच गया और यहीं शाम के सात बजा दिए. अब ये जथा रात के अंधेरों को चीरता हुआ लुधियाना से कुरुक्षेत्र के लिए रवाना हुआ. रास्ते में  इस राष्ट्रिय राजमार्ग-१ पर ही कहीं स्तिथ हवेली नामक एक आधुनिक ढाबे पर सांझ का खाना खाया. असली महिला किसानों को अपने यहाँ पहली बार देखकर हवेली का प्रबंधक बड़ा खुश हुआ और उसने हवेली के चाकरों को बड़े प्यार से खाना परोसने की हिदायते दी. वेटरों ने निसंदेह लज़ीज़ खाने की थालियाँ बड़े अदब से अपने इन ठेठ देहाती मेहमानों को परोसी. पर बिमला पंडित को इस लज़ीज़ खाने में रोटी और गँठे के अलावा कुछ भी लज़ीज़ नजर नही आया. इसीलिए शायद हवेली के ताम-झाम से बेफ़िकर बिमला इस थाली से केवल गँठे और रोटी उठाकर ही बड़े मज्जे से खाने लगी. इस नजारे को देखकर प्रतीक्षा में खड़ा चाकर उपेक्षित भाव से बिमला की तरफ देखकर कुटिल मुस्कान बिखेरने लगा.  धरती पर मूत कर सोने वाले इन ग्राहकों से अनभ्यस्त इस वेटर के इस अजीब व्यवहार को किसी ने देखा और किसी ने नही. इस होटल से रवानगी के समय प्रबंधक महोदय द्वारा जत्थे को सड़क तक छोड़ने आते वक़्त प्रति-पुष्टि प्राप्त करने की कौशिश पर जरुर डा,दलाल ने इस गैरमामूली सी घटना का होले से जिक्र किया. 
   यहाँ से रवाना होने के बाद तो मिनीबस राजपुरा होते हुए रात के सवा बारह बजे अम्बाला में सामान्य बस स्टैंड के पास एक चाय की दुकान पर रुक्की. सब ने चाय पी और कुरुक्षेत्र के लिए रवाना हुए. कुरुक्षेत्र पहुँच कर श्री जयराम विद्यापीठ आश्रम में रात्रि विश्राम के लिए कमरे खुलवाए. सभी कान बोचकर सो गये.

Tuesday, October 5, 2010

महिला खेत पाठशाला का सत्रहवां सत्र

आज निडाना गावँ में चल रही इस महिला खेत पाठशाला का सत्रहवां सत्र है. बाजरे की कटाई व सरसों की बुवाई के चलते इस पाठशाला के प्रशिक्षकों को इस सत्र में कम ही महिलाओं के भाग लेने की उम्मीद है. आयोजकों की इस उम्मीद के विपरीत अंदाजों को झुठलाते हुए एक-एक करके पूरी तेईस महिलाएं पहुँच गई. भिड़ते ही पिछले सत्र की गई कार्यवाही की विस्तार से समीक्षा की. निसंदेह कृषि अधिकारीयों एवं जिला कार्यक्रम अधिकारी के दौरे से महिलाओं के आत्मविश्वास में बढौतरी हुई है.
कृषि अधिकारीयों एवं जिला कार्यक्रम अधिकारी के शिष्टाचार को इस समीक्षा के दौरान विशेष रूप से रेखांकित किया गया. डा.हरभगवान कम्बोज द्वारा लाये गये व दिखाए गये परभक्षियों एवं परजीव्याभों के तीन जिन्दा सैम्पलों की चर्चा करते हुए डा. कम्बोज के  इस सिखाने-सिखने के अंदाज को विशेष कर सरहाया गया. कुलमिलाकर कृषि अधिकारीयों एवं जिला कार्यक्रम अधिकारी का यह दौरा इस पाठशाला की महिलाओं के लिए बहुत लाभदायक रहा. महिलाओं ने अपनी कमजोरियों पर गौर करते हुए फरमाया कि हम निडाना की धरती पर पाए गये लाभदायक कीटों की रिपोर्ट कृषि अधिकारीयों के समुख समय की कमी के कारण विस्तार से नही रख पाई. इसीलिए आज फैसला लिया गया कि पहले इस कसर को ही पूरा कर लिया जाये. राजबाला के खेत में कपास की फसल में पकड़े गये लाभदायक कीटों के बारे में बताने के लिए सुदेश को कहा गया.
 सुदेश ने पूछा कि पहले खून चुसक लाभदायक कीट गिनाऊं या चर्वक किस्म के?  संतरा बोली, "बेबे, एक बर तो ये चुसक किस्म के गिना दे. लेकिन हों वही जो आपां नै इस कपास के खेत में देखे सै". सुदेश नै बताना शुरू किया अक बहनों सबसे पहले तो आपां नै दस्यु बुगडा का शिशु  देखा था. हरे-तेले, सफेद-मक्खी, माईट, मिलीबग व् चुरड़े आदि दुश्मन कीटों का खून पीवै था. अपने इस हरियाणा में धैर्य से सुनने का मादा कम लोगों में है. नन्ही, लाडो व् कमला एकदम बोल उठी कि बेबे, न्यूँ एक-एक कर सारे फायदेमंद कीड़े कितनी देर में गिनवावैगी? किम्मे घरां काम भी करना हो सै. एक किस्म के इकसाथ गिनवा दे. ज्युकर बुगड़े -बुगड़े का क्लेश एकदम काट दे.
सुदेश ने फिर से बताना आरम्भ किया कि इस कपास के खेत में हम अब तक कुलमिलाकर सात प्रकार के तो मांसाहारी बुगड़े ही देख चुके हैं- कातिल बुगडा (अंडे  & प्रौढ़), बिंदुआ बुगडा (अंडे & प्रौढ़), पेंटू बुगडा (अंडे एवं निम्फ ), सिंगू बुगडा (अंडे  एवं प्रौढ़),  छैल बुगडा (प्रौढ़), एवं दीदड़ बुगडा (प्रौढ़).
ये सात किस्म के मांसाहारी बुगड़े फसलों में हानिकारक कीटों को नष्ट करने में किसानों की मदद करते हैं. इनके भोजन में विभिन्न कीटों के अंडे, लार्वा व् प्रौढ़ शामिल होते है. मिलीबग का खून चूसते एक दिद्ड बुगड़े की विडिओ "BLOOD SUCKING" निडाना के किसानों ने गत वर्ष मौके पर ही तैयार की थी. मिलीबग तो ठहरा शाकाहारी पर यू दिद्ड बुग्ड़ा तो मांसाहारी कीड़ों का भी खून पी जाता है बशर्ते कि वे आकार में बराबर के हों या छोटे.
"इजाजत हो तो बाकि के मै गिनवा दू जी",  राजवन्ती खड़ी होकर कहने लगी.
"हाँ! क्यों नही", कई महिलाएं(प्रोमिला, सरोज, कृष्णा, कविता, राजबाला, संतरा,मीना देवी आदि) एकदम कहने लगी.
राजवन्ती ने याद दिलाना शुरू किया कि अब तक हम आधा दर्जन मांसाहारी मक्खियाँ देख चुके सा|  इस खेत में. इन मक्खियों के लार्वा (जिन नै ये आपने डाक्टर साहब मैगट कहा करै) भी आपने बड़े काम के सै. लोपा-मक्खियों (DRAGON FLY) का तो इबकै जमा तौड़ हो रहा सै. खेत में माणस या पशु के घुसते ही सर पै मंडरान लाग ज्या सै. छैल-मक्खी (DAMSEL FLY), डायन मक्खी(ROBBER FLY), टिकड़ो-मक्खी, सिरफड़ो-मक्खी (SYRPHID FLY) व् लम्ब्ड़ो-मक्खी (LONG LEGGED FLY) आदि मित्र मक्खियाँ भी देख चुके है इस खेत में. मांसाहारी मक्खी तो हमनै और भी बहुत तरियां की देख ली. पर हम नै अर् म्हारे इन डाक्टर साहबा नै इनकी पहचान कोन्या. ये सारी की सारी मक्खियाँ फसलों में नुकशानदायक कीटों को ख़त्म करने में हमारी बहुत मदद करती हैं.
"इब तूं, बतादे ऐ, सरोज. या राजवंती तो लम्बी खिचे सै", लाडो नै फिर लंगोट घुमाया.
सरोज तो आज बोलन तै जमाँ ऐ नाट गयी. या जिम्मेवारी संभाली अब मिनी नै. इस साल निडाना के खेतों में देखी गई लेडी बीटल एक-एक करके गिनवाने लगी. लपरो(प्रौढ़), सपरो(प्रौढ़), चपरो(प्रौढ़), रेपरो(प्रौढ़), हाफ्लो(गर्ब}, ब्रह्मों(प्रौढ़), नेफड़ो(प्रौढ़), सिम्मड़ो(गर्ब) और क्रिप्टो(गर्ब), गिन कर पूरी नौ किस्म की. इनके प्रौढ़ भी मांसाहारी अर् इनके बच्चे(GRUB ) भी मांसाहारी. गजब की किसान मित्र है ये लेडी बीटल.
लेडी बीटल के अलावा भी तो बीटल है जो कीटाहारी हैं- गीता पै कहें बिना रहया नही गया. मैदानी बीटल, घुमंतू बीटल, आफियाना बीटल, कैरी बीटल  व् फौजी बीटल. सभी कीटखोरी सै. इसीलिए किसान के लिए फायदेमंद. मिलीबग को कच्चा चबाते हुए एक लपरों नामक लेडी बीटल की विडियो  एक दिन कंप्यूटर पर आप नै दिखाई भी थी.
"मकड़ियों का नाम क्यों नही लेती? इस खेत में ही कितनी देख ली!", घूँघट में को कमलेश  उल्हाणा दिया.
बात काटन में हरियाणा के लोगों का  कोई मुकाबला नहीं.
अंग्रेजो पै भी रुक्या नही गया, न्यूँ बोली,"बहन, मकड़ी भी सै तो संधिपाद पर इनका शारीर दो भागों में बटा होवे सै अर इनकी चार जोड़ी टांग होवे सै. इसलिए मकड़ियों को कीटों की श्रेणी में नही रखा जाता."
"फेर के फर्क पड़े सै? सै तो मकड़ी भी मांसाहारी. किसान का साथ देन आली होई अक नही? आपां नै तो कीट नियंत्रण से मतलब सै. बता, श्रेणी नै के चुन्घांगे?",  कमलेश ने अपनी कही बात को जायज़ ठहराने की कौशिश की .
 अंग्रेजो ने फिर टेक ठाई, " कराईसोपा का नाम क्यूँ नहीं लेती. देख बुढ़ापे मै संन्यास ले लेता. इसके गर्ब भूखड़  मांसाहारी होवै सै. चुरड़े खा जा,..चेपे खा जा,...... तेले खा जा, ... सफ़ेद माखी खा जा,... माईट खा जा अर् मिलीबग नै खा जा... अक नही,... यू एंटेना पर अंडे देव.."
"थारी जमा क्यूँ शर्म जा रही सै!  गादड़ की सूंडी आला यू  हथजोड़ा कोई सी कै याद नही आया.",  कमला नै भी आज यू धोबी पाट मारया.  "इस कपास के खेत में आपां नै कई  ढाल के तो हथजोड़े देख लिए (1IIIIIIV.,V., VI.& VII.) अर् दो (I.& II.) ढाल की इनकी अंडेदानी" 
कमला नै बोलती देख इब लाड्डो पै चुप क्यूकर रह्या जा, "भीरड़, ततैये, जईये, इंजन्हारी, भंभीरी आदि भी तो मांसाहारी कीड़े सै."
"सही सै , माणस नै स्यान किसे का नही भूलना चाहिए ! फेर इन भीरड़, ततैये, जईये, इंजन्हारी, भंभीरी  नै क्यूँ भुलाँ ? ", रणबीर ने लाड्डो का हौंसला बढाते हुए इन महिला किसानों को कपास के इस खेत में पाए गये परजीव्याभ भी याद कर लेने को कहा| 
यह सुनते ही अनीता  बोली ," यू परजीव्याभ याद रखना बहुत मुश्किल सै! इस ग्रुप के कीड़े तो जमाँ ऐ छोटे-छोटे अर् यू शब्द इतना बड़ा| जै आपां इस ग्रुप नै परजीवू  कहन लाग जावाँ तो के फर्क पड़ेगा| फेर तो मेरे बरगी भी अंगिरा, फंगिराजंगिरा नै न्यूँ आंगलियाँ पर गिनवा देगी! पिछले तीन साल तै देखती आंऊ सूँ इन कीटों को बी.टी.आले मिलीबग का नाश करते हुए| आपां नै तीन साल हो लिए कपास की फसल में कीड़े मारन का  स्प्रे करें! आपनी फसल में तो ये मांसाहारी कीट ही काम चला दे सै| इस साल आने वाले करवा-चौथ के त्यौहार पर मैं तो तेरी बजाय इन मांसाहारी कीटों की पूजा करुँगी| इस बहाने आपने बालकां नै भी इन मांसाहारी कीटों का थोड़ा-बहुत  ज्ञान हो ज्यागा | 
इतनी देर में तो बिमला के पेट-पाप हो लिया अक अनीता तो बाकि के परजीवू भूलगी अर बालकां में  जा बड़ी| इस लिए अनीता को याद दिलाने लगी अक बेबे, अल/चेपे के शारीर में अपने अंडे देने वाली सम्भीरका अफिडीयस तथा विभिन्न सुंडियों के शारीर में अपने अंडे देने वाली कोटेशिया भी परजीवू सै|  ट्राईकोग्रामा अर टेलेनोम्स भी परजीवू सै| फर्क इतना ऐ सै अक यें अपने अंडे अन्य कीटों के अण्डों में देवै सै| इसलिए इन महीन कीटों को अंड-परजीवू कह सै| 
"इसका मतलब कपास के इस खेत में आपां नै सात ढाल के तो परजीवू देख लिए" कमलेश नै भी काण तोड़ी|
कमलेश की सुनकै या केलो न्यूँ कहन लगी," हम गीत गाया करां - उड़े पावैंगे काले-लाल बणिया हो, लागी उनकै खाज दिखाऊं हो! इब वा खाज भी तो याद करनी चाहिए| पूरे तीन ढाल की देख ली| सफ़ेद-खाज, काली-खाज अर्  गुलाबी-खाज|"  
आज तो डॉ. सुरेन्द्र दलाल कै मुहं तै बरबस निकल पड़ा,"केलो,  तनै जमाँ रोप दिया चाला! बस न्यूँ और याद राख ले अक ये तीनों ढाल की खाज फफुन्दीय रोगाणु सै जो मिलीबग नै मारै सै|