ठीक साढ़े आठ बजे डेफोडिल पब्लिक स्कूल, निडाना के 35 छात्र एवं छात्रा भी अपनी अध्यापिकाओं श्रीमती कांता व् सीमा मलिक के नेतृत्व में कपास के इस खेत में पीपल के नीचे पहुँच जाते हैं. ठीक इनके पीछे-पीछे इसी स्कूल के सह-संचालक श्री विजेंद्र मलिक व् प्राचार्य श्री ज्ञानी राम भी यहाँ पहुँच जाते हैं.
श्री रणबीर सिंह मलिक ने इस कीट पाठशाला के आयोजन व् उद्देश्यों के बारे में बच्चों को विस्तार से बताया. मीणा मलिक ने पाठशाला के लिए बच्चों का पंजीकरण किया. पांच-पांच बच्चों के सात समूह बनाये गये जो निम्नांकित थे.
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बच्चों के सात ग्रुप और इतने ही मास्टर ट्रेनर व् तीन स्कुल के अध्यापक. सभी ने कपास के खेत में ग्रुपों में जाकर ध्यानपूर्वक पौधों एवं कीटों का अवलोकन व् निरिक्षण किया. सभी सात के सात ग्रुपों ने दस-दस पौधों के तीन-तीन पत्तों पर क्रमवार सफ़ेद-मक्खी, तेला व् चुरड़े के केवल निम्फों की गिनती की व् अपनी-अपनी कापी में नोट किया. इसके साथ-साथ प्रत्येक पौधे पर दुसरे सभी कीटों की गिनती की व् इसे भी कापी में नोट किया. "ये क्या? देखो मैम", रेनू अचानक चिल्लाई.
'कुछ नही, ग्रास होपर है." विज्ञानं अध्यापिका विवेक ने तपाक से जबाब दिया.
इतना सुनते ही बिमला मुस्करा कर बोली, "ना मैडम ना, यू तो हथजोड़ा सै- गीदड़ की सुंडी आला. हमने तो इस पर एक गीत घड़ राख्या सै. मांसाहारी कीड़ा सै. अपनी कपास की फसल में बहुत सारे कीड़ों को खा-पीकर ख़त्म करेगा. अंग्रेजी में इस नै के कहा करै- वो डाक्टर जी तै पूछ लो. मनै तो स्कूल की पछीत भी नही देख राखी."
राहुल वाले ग्रुप के उत्प्रेरक रनबीर मलिक के काना में जब ये बात पड़ी तो कहन लगा कि अंग्रेजी में तो इसनै प्रेयिंग मेंटिस कहा करै. मेरी दादी इस कीड़े की अंडेदानी को चीथड़े में बाँध कर ताक में रखती थी. वो इस अंडेदानी का के करा करै थी- इसका मनै भी नही बेरया. किसानों द्वारा धीरे से कीड़ों के ज्ञान को बच्चों की तरफ सरकाने के इस लाजवाब तरीके पर डॉ.दलाल भी हैरान था.
इसके बाद सभी ग्रुपों ने खेत के एक कोने में खड़े पीपल की छाँव में बैठकर अपनी इस कारवाई को चार्टों पर उतारा व् बारी-बारी से ग्रुप लीडरों ने चार्टों की मदद से सबके सामने पेश किया.
सात के सात ग्रुपों द्वारा रिपोर्ट किये गये कीड़ो की संख्या को जोड़ा गया व् प्रति पत्ता औसत निकाली गयी. हरे तेले की 1.3, सफ़ेद माखी की 1.9 व् चुरड़े की 2.7 पाई गयी. यह औसत सत्तर पौधों के तीन-तीन पत्तों पर आधारित थी. सैम्पल साईज के कारण इस पर भरोसा ना करने का भी कोंई कारण नही था. कीड़ों की यह औसत संख्या उनके हानि पहूचाने के स्तर से काफी नीचे थी.आज बच्चों ने इस खेत में भान्त-भान्त की वो मकड़ियाँ भी देखी जो घरों में दिखाई नही देती. एक छोटी सी मकड़ी को तेले का चूरमा बनाते हुए भी बच्चों ने देखा. भावना ने चुटकी ली," सर, मकड़ी के शारीर के तो दो ही भाग है. फिर इसे कीड़ों की श्रेणी में कैसे रखेंगे?"
इतनी सुनकर कमलेश ने आगे बात बढ़ाई अक इसकी चार जोड़ी टांग से जबकि कीड़ों की तीन जोड़ी. इन मकड़ियां नै आपां जनौर कह कर गुज़ारा कर लेवां, इसमें ही सब कुछ आ जा सै. हाँ, इतना जरुर याद रख ले अक ये सारी मकड़ी अपने खेतों में कीटों को खा-पीकर जिन्दा रहती है. दस तरह की तो मैने ही अपने खेत में देख ली. अचूक किस्म की पेस्टीसाईड(कीड़ेमार) सै - ये मकड़ियां.
" दो ही घंटे के लिए हैं, हमारे छात्र आपके पास", ज्ञानी राम ने वायदा याद दिलाया. बस सब कुछ बीच में छोड़कर, फटाफट बिमला द्वारा लाया गया बाकुलियों के रूप में कीट-प्रसादा सभी को बांटा गया. बिमला द्वारा तैयार इस कीट-प्रसादे में कंडेसर का नमक अर तीखी मिर्च भुलाये नही भूलेंगी, हम्में.
Now the young kids are in " Mahila Pathshala" - true but looks strange. Running commentatory tells whole things what happened with these innocent guys just the same way as elaborated in Haryanvi competition for nasty Ragnis in between two interlinked stanzas. Really admirable effort of its own kind but what dithering me is the consistency of the whole exercise.
ReplyDeleteबेहतरीन....
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