Tuesday, October 5, 2010

महिला खेत पाठशाला का सत्रहवां सत्र

आज निडाना गावँ में चल रही इस महिला खेत पाठशाला का सत्रहवां सत्र है. बाजरे की कटाई व सरसों की बुवाई के चलते इस पाठशाला के प्रशिक्षकों को इस सत्र में कम ही महिलाओं के भाग लेने की उम्मीद है. आयोजकों की इस उम्मीद के विपरीत अंदाजों को झुठलाते हुए एक-एक करके पूरी तेईस महिलाएं पहुँच गई. भिड़ते ही पिछले सत्र की गई कार्यवाही की विस्तार से समीक्षा की. निसंदेह कृषि अधिकारीयों एवं जिला कार्यक्रम अधिकारी के दौरे से महिलाओं के आत्मविश्वास में बढौतरी हुई है.
कृषि अधिकारीयों एवं जिला कार्यक्रम अधिकारी के शिष्टाचार को इस समीक्षा के दौरान विशेष रूप से रेखांकित किया गया. डा.हरभगवान कम्बोज द्वारा लाये गये व दिखाए गये परभक्षियों एवं परजीव्याभों के तीन जिन्दा सैम्पलों की चर्चा करते हुए डा. कम्बोज के  इस सिखाने-सिखने के अंदाज को विशेष कर सरहाया गया. कुलमिलाकर कृषि अधिकारीयों एवं जिला कार्यक्रम अधिकारी का यह दौरा इस पाठशाला की महिलाओं के लिए बहुत लाभदायक रहा. महिलाओं ने अपनी कमजोरियों पर गौर करते हुए फरमाया कि हम निडाना की धरती पर पाए गये लाभदायक कीटों की रिपोर्ट कृषि अधिकारीयों के समुख समय की कमी के कारण विस्तार से नही रख पाई. इसीलिए आज फैसला लिया गया कि पहले इस कसर को ही पूरा कर लिया जाये. राजबाला के खेत में कपास की फसल में पकड़े गये लाभदायक कीटों के बारे में बताने के लिए सुदेश को कहा गया.
 सुदेश ने पूछा कि पहले खून चुसक लाभदायक कीट गिनाऊं या चर्वक किस्म के?  संतरा बोली, "बेबे, एक बर तो ये चुसक किस्म के गिना दे. लेकिन हों वही जो आपां नै इस कपास के खेत में देखे सै". सुदेश नै बताना शुरू किया अक बहनों सबसे पहले तो आपां नै दस्यु बुगडा का शिशु  देखा था. हरे-तेले, सफेद-मक्खी, माईट, मिलीबग व् चुरड़े आदि दुश्मन कीटों का खून पीवै था. अपने इस हरियाणा में धैर्य से सुनने का मादा कम लोगों में है. नन्ही, लाडो व् कमला एकदम बोल उठी कि बेबे, न्यूँ एक-एक कर सारे फायदेमंद कीड़े कितनी देर में गिनवावैगी? किम्मे घरां काम भी करना हो सै. एक किस्म के इकसाथ गिनवा दे. ज्युकर बुगड़े -बुगड़े का क्लेश एकदम काट दे.
सुदेश ने फिर से बताना आरम्भ किया कि इस कपास के खेत में हम अब तक कुलमिलाकर सात प्रकार के तो मांसाहारी बुगड़े ही देख चुके हैं- कातिल बुगडा (अंडे  & प्रौढ़), बिंदुआ बुगडा (अंडे & प्रौढ़), पेंटू बुगडा (अंडे एवं निम्फ ), सिंगू बुगडा (अंडे  एवं प्रौढ़),  छैल बुगडा (प्रौढ़), एवं दीदड़ बुगडा (प्रौढ़).
ये सात किस्म के मांसाहारी बुगड़े फसलों में हानिकारक कीटों को नष्ट करने में किसानों की मदद करते हैं. इनके भोजन में विभिन्न कीटों के अंडे, लार्वा व् प्रौढ़ शामिल होते है. मिलीबग का खून चूसते एक दिद्ड बुगड़े की विडिओ "BLOOD SUCKING" निडाना के किसानों ने गत वर्ष मौके पर ही तैयार की थी. मिलीबग तो ठहरा शाकाहारी पर यू दिद्ड बुग्ड़ा तो मांसाहारी कीड़ों का भी खून पी जाता है बशर्ते कि वे आकार में बराबर के हों या छोटे.
"इजाजत हो तो बाकि के मै गिनवा दू जी",  राजवन्ती खड़ी होकर कहने लगी.
"हाँ! क्यों नही", कई महिलाएं(प्रोमिला, सरोज, कृष्णा, कविता, राजबाला, संतरा,मीना देवी आदि) एकदम कहने लगी.
राजवन्ती ने याद दिलाना शुरू किया कि अब तक हम आधा दर्जन मांसाहारी मक्खियाँ देख चुके सा|  इस खेत में. इन मक्खियों के लार्वा (जिन नै ये आपने डाक्टर साहब मैगट कहा करै) भी आपने बड़े काम के सै. लोपा-मक्खियों (DRAGON FLY) का तो इबकै जमा तौड़ हो रहा सै. खेत में माणस या पशु के घुसते ही सर पै मंडरान लाग ज्या सै. छैल-मक्खी (DAMSEL FLY), डायन मक्खी(ROBBER FLY), टिकड़ो-मक्खी, सिरफड़ो-मक्खी (SYRPHID FLY) व् लम्ब्ड़ो-मक्खी (LONG LEGGED FLY) आदि मित्र मक्खियाँ भी देख चुके है इस खेत में. मांसाहारी मक्खी तो हमनै और भी बहुत तरियां की देख ली. पर हम नै अर् म्हारे इन डाक्टर साहबा नै इनकी पहचान कोन्या. ये सारी की सारी मक्खियाँ फसलों में नुकशानदायक कीटों को ख़त्म करने में हमारी बहुत मदद करती हैं.
"इब तूं, बतादे ऐ, सरोज. या राजवंती तो लम्बी खिचे सै", लाडो नै फिर लंगोट घुमाया.
सरोज तो आज बोलन तै जमाँ ऐ नाट गयी. या जिम्मेवारी संभाली अब मिनी नै. इस साल निडाना के खेतों में देखी गई लेडी बीटल एक-एक करके गिनवाने लगी. लपरो(प्रौढ़), सपरो(प्रौढ़), चपरो(प्रौढ़), रेपरो(प्रौढ़), हाफ्लो(गर्ब}, ब्रह्मों(प्रौढ़), नेफड़ो(प्रौढ़), सिम्मड़ो(गर्ब) और क्रिप्टो(गर्ब), गिन कर पूरी नौ किस्म की. इनके प्रौढ़ भी मांसाहारी अर् इनके बच्चे(GRUB ) भी मांसाहारी. गजब की किसान मित्र है ये लेडी बीटल.
लेडी बीटल के अलावा भी तो बीटल है जो कीटाहारी हैं- गीता पै कहें बिना रहया नही गया. मैदानी बीटल, घुमंतू बीटल, आफियाना बीटल, कैरी बीटल  व् फौजी बीटल. सभी कीटखोरी सै. इसीलिए किसान के लिए फायदेमंद. मिलीबग को कच्चा चबाते हुए एक लपरों नामक लेडी बीटल की विडियो  एक दिन कंप्यूटर पर आप नै दिखाई भी थी.
"मकड़ियों का नाम क्यों नही लेती? इस खेत में ही कितनी देख ली!", घूँघट में को कमलेश  उल्हाणा दिया.
बात काटन में हरियाणा के लोगों का  कोई मुकाबला नहीं.
अंग्रेजो पै भी रुक्या नही गया, न्यूँ बोली,"बहन, मकड़ी भी सै तो संधिपाद पर इनका शारीर दो भागों में बटा होवे सै अर इनकी चार जोड़ी टांग होवे सै. इसलिए मकड़ियों को कीटों की श्रेणी में नही रखा जाता."
"फेर के फर्क पड़े सै? सै तो मकड़ी भी मांसाहारी. किसान का साथ देन आली होई अक नही? आपां नै तो कीट नियंत्रण से मतलब सै. बता, श्रेणी नै के चुन्घांगे?",  कमलेश ने अपनी कही बात को जायज़ ठहराने की कौशिश की .
 अंग्रेजो ने फिर टेक ठाई, " कराईसोपा का नाम क्यूँ नहीं लेती. देख बुढ़ापे मै संन्यास ले लेता. इसके गर्ब भूखड़  मांसाहारी होवै सै. चुरड़े खा जा,..चेपे खा जा,...... तेले खा जा, ... सफ़ेद माखी खा जा,... माईट खा जा अर् मिलीबग नै खा जा... अक नही,... यू एंटेना पर अंडे देव.."
"थारी जमा क्यूँ शर्म जा रही सै!  गादड़ की सूंडी आला यू  हथजोड़ा कोई सी कै याद नही आया.",  कमला नै भी आज यू धोबी पाट मारया.  "इस कपास के खेत में आपां नै कई  ढाल के तो हथजोड़े देख लिए (1IIIIIIV.,V., VI.& VII.) अर् दो (I.& II.) ढाल की इनकी अंडेदानी" 
कमला नै बोलती देख इब लाड्डो पै चुप क्यूकर रह्या जा, "भीरड़, ततैये, जईये, इंजन्हारी, भंभीरी आदि भी तो मांसाहारी कीड़े सै."
"सही सै , माणस नै स्यान किसे का नही भूलना चाहिए ! फेर इन भीरड़, ततैये, जईये, इंजन्हारी, भंभीरी  नै क्यूँ भुलाँ ? ", रणबीर ने लाड्डो का हौंसला बढाते हुए इन महिला किसानों को कपास के इस खेत में पाए गये परजीव्याभ भी याद कर लेने को कहा| 
यह सुनते ही अनीता  बोली ," यू परजीव्याभ याद रखना बहुत मुश्किल सै! इस ग्रुप के कीड़े तो जमाँ ऐ छोटे-छोटे अर् यू शब्द इतना बड़ा| जै आपां इस ग्रुप नै परजीवू  कहन लाग जावाँ तो के फर्क पड़ेगा| फेर तो मेरे बरगी भी अंगिरा, फंगिराजंगिरा नै न्यूँ आंगलियाँ पर गिनवा देगी! पिछले तीन साल तै देखती आंऊ सूँ इन कीटों को बी.टी.आले मिलीबग का नाश करते हुए| आपां नै तीन साल हो लिए कपास की फसल में कीड़े मारन का  स्प्रे करें! आपनी फसल में तो ये मांसाहारी कीट ही काम चला दे सै| इस साल आने वाले करवा-चौथ के त्यौहार पर मैं तो तेरी बजाय इन मांसाहारी कीटों की पूजा करुँगी| इस बहाने आपने बालकां नै भी इन मांसाहारी कीटों का थोड़ा-बहुत  ज्ञान हो ज्यागा | 
इतनी देर में तो बिमला के पेट-पाप हो लिया अक अनीता तो बाकि के परजीवू भूलगी अर बालकां में  जा बड़ी| इस लिए अनीता को याद दिलाने लगी अक बेबे, अल/चेपे के शारीर में अपने अंडे देने वाली सम्भीरका अफिडीयस तथा विभिन्न सुंडियों के शारीर में अपने अंडे देने वाली कोटेशिया भी परजीवू सै|  ट्राईकोग्रामा अर टेलेनोम्स भी परजीवू सै| फर्क इतना ऐ सै अक यें अपने अंडे अन्य कीटों के अण्डों में देवै सै| इसलिए इन महीन कीटों को अंड-परजीवू कह सै| 
"इसका मतलब कपास के इस खेत में आपां नै सात ढाल के तो परजीवू देख लिए" कमलेश नै भी काण तोड़ी|
कमलेश की सुनकै या केलो न्यूँ कहन लगी," हम गीत गाया करां - उड़े पावैंगे काले-लाल बणिया हो, लागी उनकै खाज दिखाऊं हो! इब वा खाज भी तो याद करनी चाहिए| पूरे तीन ढाल की देख ली| सफ़ेद-खाज, काली-खाज अर्  गुलाबी-खाज|"  
आज तो डॉ. सुरेन्द्र दलाल कै मुहं तै बरबस निकल पड़ा,"केलो,  तनै जमाँ रोप दिया चाला! बस न्यूँ और याद राख ले अक ये तीनों ढाल की खाज फफुन्दीय रोगाणु सै जो मिलीबग नै मारै सै| 







1 comment:

  1. मेहनत रंग लायेगी एक दिन ...

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