Tuesday, October 12, 2010

महिला खेत पाठशाला का अट्ठारहवां सत्र

निडाना गावँ में महिला खेत पाठशाला को चलते हुए आज अट्ठारहवां सप्ताह है. यह पाठशाला सप्ताह में केवल एक दिन लगती है. सप्ताह का यह दिन मंगलवार है. इस पाठशाला में आये मंगलवार कपास के खेत में कीटों का अवलोकन किया जाता है, उनकी गिनती की जाती है, शाकाहारी मांसाहारी कीटों का हिसाब लगाया जाता है. कपास की फसल के बारे में चौब्ने से लेकर चुगने तक तमाम क्रियाओं एवं प्रक्रियों पर बहस की जाती है तथा सामूहिक रूप में यथा संभव निष्कर्ष एवं समाधान तलाशे जाते हैं.
आज भी इस पाठशाला की तमाम महिलाएं अपनी ग्रुप लीडरों सरोज, मिनी, गीता, राजवंती, सुदेशकमलेश  के नेतृत्व में कीट अवलोकन, सर्वेक्षण, निरिक्षण व गिनती के लिए कपास के इस खेत में घुसी. महिलाओं के प्रत्येक समूह ने दस-दस पौधों के तीन-तीन पत्तों पर कीटों की गिनती की. इस गिनती के साथ अंकगणितीय खिलवाड़ कर प्रति पत्ता कीटों की औसत निकाली गई. महिलाओं के हर ग्रुप ने चार्टों क़ी सहायता से अपनी-अपनी रिपोर्ट सबके सामने प्रस्तुत की. सबकी रिपोर्ट सुनने पर मालूम हुआ कि इस सप्ताह भी राजबाला के इस खेत में कपास की फसल पर तमाम नुक्शानदायक कीट हानि पहुँचाने के आर्थिक स्तर से काफी निचे हैं. हरे तेले की औसत 1.7 प्रति पत्ता, सफ़ेद-मक्खी की 2.2 प्रति पत्ता तथा चुरड़े की 0.01 प्रति पत्ता पाई गई. कपास के इस खेत में अब लाल-मत्कुण भी दिखाई देने लग गये हैं. किसी-किसी पौधे पर अल/चेपा भी दिखाई दिया है.  दूसरी तरफ हर पौधे पर मकड़ियों की तादाद भी अच्छी खासी है. इसके अलावा लेडी-बीटल, हथजोड़े, मैदानी-बीटल, दिखोड़ी, लोपा, छैल, व डायन मक्खियाँ, भीरड़, ततैये व अंजनहारी आदि मांसाहारी कीट भी इस खेत में नजर आये हैं.  थोड़ी-बहुत बहस के बाद सभी महिलाएं इस बात पर सहमत थी कि इस सप्ताह भी कपास के इस खेत में राजबाला को कीट नियंत्रण के लिए किसी कीटनाशक का छिड़काव करने की आवश्यकता नही है. इस खेत में कीट नियंत्रण का काम तो  परभक्षी, परजीव्याभ, परजीवियों के रूप में सहयोगी कीट सफलतापूर्वक कर रहे हैं. कीट रोगाणु भी इस कार्य में किसानों की इमदाद कर रहे हैं.
इतनी बात सुन कर सदा धीर-गंभीर रहने वाले परम-संतोषी प्रशिक्षक मनबीर रेड्हू के सबर का बांध टूट गया, " या तो सही से अक आज इस खेत में शाकाहारी व् मांसाहारी कीटों के बीच गज़ब का संतुलन बना हुआ है जिसके चलते हमें कीट-नियंत्रनी अखाड़े में लंगोट पीड़ने की जरुरत ही नही पड़ी. पर म्हारे उस डा. देवेन्द्र शर्मा का के करां. उसने तो लोगों को समझाने के लिए देर रात तक जाग-जाग कर अपनी आँख सूजा-सूजा कर लाल कर ली. वो न्यूँ समझाव सै अक आज सोच-विचार करते हुए हमें बीस साल पाछै तक अर बीस साल आगै तक नजर जरुर मारनी चाहिए. डा. शर्मा ठहरे बहुत बड़े बुद्धिजीवी अर ऊपर तै खेती व् खाद्य मामलों के विशेषज्ञ.  वे ठहरे राज-काज की भाषा के जानकर और बीस साल आगै-पाछै की सोचने-देखने-समझने में समर्थ. इसके विपरीत आपां ठहरे सदा माट्टी गेल माट्टी रहनीये मोटी मानसिकता के मानस. सदा मोटा खावाँ अर मोटा सोचा. पर दौ सर नाज़ आपां भी खावाँ सां. इसलिए डा.साहिब आले बीस साल ना सही, दस साल आगै-पाछै नज़र मारन का हक तो आपना भी बनै सै. जै डा. साहब वाले चश्मे के साथ कपास की फसल में कीट-अखाड़े के खिलाड़ियाँ पर नजर मारा तो पावां सां अक एक तरफ तो अमेरिकन सुंडी 24 नवम्बर 2001 को The Tribune की सम्पादकीय  डांट खा कर सन 2001 के बाद अचानक यूँ गायब हो गयी ज्यों गधे के सिर से सींग. गुलाबी सुंडी अर चित्तकबरी सुंडी टोहें ही पावै सै. जबकि दूसरी तरफ बी.टी.बीजों के प्रचलन के साथ ही मिलीबग नाम का कीड़ा कपास का भस्मासुर बन कर उभरा. मिरिड बग,  हरे व्  भूरे सड़ांधले बग अर माईट भी नजर आने लगे हैं. सफ़ेद-मक्खी, हरा तेला, चुरडा व् अल/चेपा आदि रस चुसक कीट दोबारा से किसानों को ठोसे दिखाने लगे हैं. लाल अर काले बनिए भी कपास के मुख्य हानिकारक कीटों में गिनती करवाने के लिए प्रयासरत हैं.शहद की देशी मक्खियों ने  बी.टी. कपास के फूलों पर नही बैठने का पंचायती फैसला कर लिया है. इटालियन मक्खियों के नेतृत्व ने भी गणतंत्री सरकारों की तर्ज़ पर अपनी प्रजाति को इन बी.टी.कपास के फूलों से दूर रहने की चेतावनी जारी कर राखी है. पहाड़ी म्हाल की मक्खी जरुर नज़र आई सै. तेलन, चैफर बीटल, भूरी पुष्पक बीटल व् स्लेटी भुंड जैसे शाकाहारी चर्वक कीटों की संख्या लगातार घट रही है. और तो और म्हारी भैंस भी इस बी.टी के बिनौलों को खुश होकर नही खा रही ....... ....."
"बस कर मनबीर, बहस की बजाय भाषण क्यूँ देन लग गया?  इन महिलाओं के जिम्मे घर के भी निरे काम सै.", रनबीर नै मनबीर को बीच में ही रोकने की कौशिश की.
"रनबीर, वास्तव में तो मैं खड़ा हुआ था सवाल पूछन खातिर. पर सवाल के लिए या भूमिका जरुरी थी. आपां सारे जाना सां अक बी.टी. कपास के जरे-जरे में जहर सै. पर यू जहर रस चूसक अर चर्वक किस्म के कीटों के साथ पक्षपात क्यों करता है?", मनबीर ने सवाल के रूप में जवाब दिया. 
यू सवाल  सुनकर तो डा.दलाल व् डा.सैनी एक-दुसरे की तरफ देखने लगे?????

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