Tuesday, September 21, 2010

महिला खेत पाठशाला का पंद्रहवां सत्र

महिला खेत पाठशाला का पंद्रहवां सत्र  आते आते इन महिला किसानों की हिचक टूट चुकी है. अब उन्हें ग्रुप बनाने के लिए भी नही कहना पड़ता. मीणा, सुदेश, सरोज, राजवंती, कमलेश गीता आपने-आपने समूह की महिलाओं को लेकर कपास के खेत में कीट निरिक्षण व अवलोकन के लिए आपने आप निकल पड़ती हैं| स्कूली छात्रों की तरह कंधे पर थैला, हाथ में कापी व पैन लिए दस पौधों पर करती हैं कीटों की गिनती| रस चूस कर हानि पहुचाने वाले कीट तो हर पौधे के केवल तीन पत्तों पर ही गिनती हैं| गिनेगी पहले सफ़ेद मक्खी, फिर हर तेला और अंत में चुरडा| इसके बाद पूरे पौधे पर सुंडियां गिनेंगी, बग गिनेंगी| इसके बाद पूरे पौधे पर मांसाहारी कीट गिनेंगी व इनको कापी में नोट करती रहेंगी| इसके बाद नीम के पेड़ की छावं में बैठकर कीटों की इस सारी जानकारी को  चार्टों पर उतारेंगी| आज भी इन महिलाओं ने सारा कुछ यही किया |

सबकी रिपोर्ट सुनने पर मालूम हुआ कि इस सप्ताह भी राजबाला के इस खेत में कपास की फसल पर तमाम नुक्शानदायक कीट हानि पहुँचाने के आर्थिक स्तर से काफी निचे हैं तथा हर पौधे पर मकड़ियों की तादाद भी अच्छी खासी है. इसके अलावा लेडी-बीटल, हथजोड़े, मैदानी-बीटल, दिखोड़ी, लोपा, छैल, व डायन मक्खियाँ, भीरड़, ततैये व अंजनहारी आदि मांसाहारी कीट भी इस खेत में नजर आये हैं.  थोड़ी-बहुत नानुकर के बाद सभी महिलाएं इस बात पर सहमत थी कि इस सप्ताह भी कपास के इस खेत में राजबाला को कीट नियंत्रण के लिए किसी कीटनाशक का छिड़काव करने की आवश्यकता नही है. यहाँ गौर करने लायक बात यह है कि रानी, बिमला, सुंदर, नन्ही, राजवंती, संतरा व बीरमती आदि को अपने खेत में कपास की बुवाई से लेकर अब तक कीट नियंत्रण के लिए कीटनाशकों के इस्तेमाल की आवश्यकता नहीं पड़ी. इनके खेत में कीट नियंत्रण का यह काम तो किसान मित्र मांसाहारी कीटों, मकड़ियों, परजीवियों तथा रोगाणुओं ने ही कर दिखाया.  सत्र के अंत में डा.सुरेन्द्र दलाल ने मौसम के मिजाज को मध्यनज़र रखते हुए इस समय कपास की फसल को विभिन्न बिमारियों से बचाने के लिए किसानों को 600 ग्राम कापर-आक्सी-क्लोराइड व 6 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन का 150-200 लिटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करने की सलाह दी.

           "ये कीड़े भी तो बीमारी सै, फेर यु स्प्रा कौनसी बीमारी खातिर बताओ सो, डा.जी ?", कमला नै आश्चर्य प्रकट किया!
या सुनकर डा.दलाल ने तो पीने के लिए पानी मांग लिया. पानी की घूंट घटक कर न्यूँ कहन लगा अक कमला अपने इस हरियाणा में तो लोग अपनी ब्याहता नै भी बीमारी कह दे सै. आप नै तो शुक्र है कि कीड़ों को ही बीमारी बताया सै.
कमला, वास्तव में तो बीमारी जीव के शरीर को प्रभावित करने वाली एक असामान्य स्थिति है जिसके  विशिष्ट लक्षण और चिन्ह होते हैं. पौधों का रोग इनकी महत्वपूर्ण शारीरिक प्रक्रियाओं के साथ दखल की व् खास लक्षण और चिन्ह वाली वो असामान्य स्थिति है, जो रोगजनक सूक्ष्मजीवों, परजीवी, प्रतिकूल पर्यावरणीय, आनुवंशिक, या पोषण कारक, आदि के कारण होता है.
     अपने इलाके में कपास की फसल में होने वाली कुछ बीमारियाँ ये हैं कमला. 
  • .पत्ती मरोड़ बीमारी: सबसे पहले ऊपर की कोमल कोपलों पर इसका असर दिखाई देता है. पत्ता जरूरत से ज्यादा ह्ऱा दिखाई देता है, छोटी नसे मोटी हो जाती हैं, पत्तियां उपर की तरफ मुद कर कप जैसी आकृति की हो जाती हैं. और खिन -खिन पर पत्तियों की निचली नसों पर पत्तिया बढवार भी दिखाई देती है. प्रकोपित पौधे छोटे रह जाते हैं, इन पर फ़ूल, कली व् टिंडे ना के बराबर लगते हैं, इनकी बढवार एकदम रुक जाती है और इसका उपज पर बहुत विपरीत असर पड़ता है. यह रोग एक विषाणु के कारण होता है. सफ़ेद-मक्खी इस विषाणु को एक पौधे से दुसरे तक फैलाने में सहायक है. याद रहे बीज, जमीन या छुआछात द्वारा यह रोग नही होता.
  • जिवाणुज अंगमारी(कुणिया धब्बों के रोग): यह कपास के मुख्य रोगों में से एक है. इस रोग के लक्ष्ण पत्तों पर कोणदार जलसिक्त धब्बों के रूप में नजर आते हैं.टहनियों व् टिंडों पर भी धब्बे पाए जाते हैं. ये धब्बे गहरे-भूरे होकर किनारों से लाल या जमुनी रंग के हो जाते हैं.

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