Tuesday, July 13, 2010

महिला खेत पाठशाला का पाँचवां सत्र।

गीता, अनिता, बिमला, बीरमति व केला
सरकारी स्कूलों का ग्रीष्मकालिन अवकाश खत्म हो चुका है। 1 जुलाई से बच्चों ने स्कूल जाना शुरु कर दिया है। महिलाओं को सुबह-सुबह अपने इन बच्चों को तैयार करने व खाना पकाने के अलावा गोबर-पानी का काम भी करना होता है। कई महिलाओं को तो खेत पाठशाला में आने से पहले अपने पशुओं के लिये खेत से चारा भी लाना होता है। फिर आप बताईये- महिलाएँ ठीक आठ बजे कैसे इस खेत पाठशाला में पहुँच जायें। इस मैदानी सच से रुबरु होते ही पाठशाला के आयोजकों ने महिलाओं की सलाह से इस खेत पाठशाला का समय आगे से प्रातः साढे आठ बजे का कर दिया।
चितकबरी सूंडी का प्रौढ़
सफेद मक्खी का शिशु
बिमला और अनिता ही अब तक इस पाठशाला में पीने के पानी का जुगाड़ करती आई हैं। आज भी वे दोनों ही सिर पर पानी के मटके उठाये इस पाठशाला में पहुँची हैं। सत्र की शुरुवात डा. कमल के नेतृत्व में पिछले कार्य की समीक्षा से हुई। सुन्दर, नन्ही, बीरमति, कमलेशरानी  ने बताया कि उन्हें हरा-तेला, सफेद-मक्खी, चुरड़ा मिलीबग जैसे रस चूसक हानिकारक कीटों की पहचान अच्छी तरह से हो गई है। इन्होने आगे बताया कि  हमारी कपास की फसल में इन कीटों में से कोई भी हानि पहुँचाने की स्तिथि में नही है। इसीलिये हमें अपनी फसल में कीटनाशकों का छिड़काव करने की जरुरत नही पड़ी। राजवंति, मीनी, गीता, सरोज कमलेश के नेतृत्व में पाँच टिम्में बनी। हर ग्रुप में पाँच या छः महिलाएँ थी। औजारों के नाम पर हर ग्रुप के पास देखने के लिये मैगनीफाईंग ग्लास व लिखने के लिये कापी-पैन थे। इन औजारों व अपने उत्प्रेरकों सर्वश्री मनबीर रेढू, रनबीर मलिक, डा. कमल सैनी व डा. सुरेन्द्र दलाल के साथ महिलाओं ने  कपास के खेत में अवलोकन, सर्वेक्षण व निरिक्षण किया। महिलाओं के प्रत्येक समूह द्वारा आज  दस-दस पौधों पर  कीटों की गिनती की गई।  दस पौधों के तीन-तीन पत्तों पर पाये गए कीटों का जोड़-घटा, गुणा-भाग करके औसत निकाली गई जिसके आधार पर महिलाओं के इन ग्रुपों ने चार्टों पर अपनी-अपनी रिपोर्ट तैयार की। रिपोर्ट प्रस्तुतिकरण में पाया गया  कि कपास के इस खेत में सभी रस चूसक हानिकारक कीट आर्थिक स्तर से काफी निचे हैं अतः कीट नियन्त्रण के लिये डिम्पल की सास को फिक्र करने की कोई जरुरत नही।
दस्यु बुगड़ा का निम्फ



कराईसोपा का अंडा
कराईसोपा का गर्ब
महिलाओं ने आज कीट अवलोकन व निरिक्षण के दौरान चितकबरी सूंडी का प्रौढ तथा सफेद-मक्खी के निम्फ (शिशु) भी देखे।     

छैल बुगड़ा
मकड़ी
सत्र के अन्त में डा. सुरेन्द्र दलाल ने बताया कि एक तरफ तो कपास के इस खेत में हानिकारक कीटों की संख्या कम है तथा दुसरी तरफ इन नुक्शान पहुँचाने वाले कीटों को खा कर खत्म करने वाले कीटनाशी कीट भी इस खेत में नजर आने लगे हैं। भावी कीटनाशियों के रुप में आज मकड़ीकराईसोपा के अंडे तकरीबन पर पौधे पर दिखाई दिये हैं। कराईसोपा के गर्ब (शिशु) भी तीसरे-चौथे पौधे पर नजर आये हैं। इनके अलावा लेडि बीटल, घुमन्तु-बीटल (दिखोड़ी), लोपा-मक्खी (ड्रैगन फ्लाई), डाकू-बुगड़ा व छैल-बुगड़ा आदि मांसाहारी कीट भी डिम्पल के इस खेत में आप सभी ने देखे हैं। आज के दिन तो इस खेत में हानिकारक कीटों व लाभदायक कीटों के रुप में गजब का प्राकृतिक संतुलन है। डा. दलाल ने महिलाओं को फिर से याद दिलाया कि फसल में मित्र कीट भी दुश्मन कीटों को अपना भोजन बनाकर कीटनाशकों वाला ही काम करते हैं। इस लिए फसल पर कीटनाशक का छिड़काव करने का फैसला लेने से पहले आपनी फसल का निरीक्षण करना, हानिकारक कीटों व मित्र कीटों की संख्या नोट करना व सही विशलेषण करना अति जरूरी है।
 

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