

नजारा है ललीतखेड़ा गांव की महिला किसान पाठशाला का। पाठशाला की शुरूआत के
साथ ही किसान कविता ने महिलाओं को एक नई किस्म का कीट
दिखाया, जिसका पेट भिरड़ जैसा था व् पंख ड्रैगन फ़्लाई जैसे। इस कीट को निडाना व ललीतखेड़ा की महिलाओं
ने खेतों में पहली बार देखा था। कीट को देखते ही नारो पूछ बैठती है आएं यू
डांगरां की माच्छरदानी आला कीड़ा आड़ै खेतां में के कैरा सै। इसे-इसे
कीड़े तो डांगरां की माच्छरदानी में घैने पाया करें सैं। कविता ने नारो की
बात को बीच में ही काटते हुए महिलाओं को नए कीट के बारे में जानकारी देते
हुए बताया कि यह नए किस्म की लोपा मक्खी है जो खान-पान के आधार पर मासाहारी
होती है। इस मक्खी की तीन जोड़ी पैर व दो जोड़ी पंख होते हैं। अकसर किसान
इसे हैलीकॉपटर के नाम से पुकारते हैं। कविता ने बताया कि यह धान में लगने
वाले तना छेदक, पत्ता लपेट के पतंगों का उडते हुए शिकार कर लेती है। कविता
ने कहा कि जब पतंगे नहीं रहेंगे तो अंडे कहां से आएंगे और अंडे ही नहीं
होंगे तो सुंडी नहीं आएंगी। सविता ने बताया कि लोपा मक्खी अपने अंडे धान के
खेत में खड़े पानी में देती है। पानी में पैदा होने वाले इसके बच्चे भी
मासाहारी होते हैं। शीला ने बताया कि इसे जिंदा रहने के लिए खाने में अपने
वजन से ज्यादा मास चाहिए। शीला की बात सुनकर नारों की आंखें खुली की खुली
रह गई। नारो ने पूछा आएं फेर यू खेतां का कीड़ा है तो माच्छरदानी में कै
करया कैरै सै। कृष्णा ने नारो के सवाल का जवाब देते हुए बताया यू कीड़ा
उड़ै माच्छरां नै खाया करै सै। इस बात पर बहस करने के बाद महिलाओं ने कीट
बही खाता तैयार करने के लिए कपास के पौधों का सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण के
दौरान महिलाओं ने पाया कि कपास की फसल में पाने वाले शाकाहारी कीट सफेद
मक्खी, हरा तेला, चूरड़ा, मिलीबग कोई भी फसल में हानि पहुंचाने की स्थिति
में नहीं था। रही बात मासाहारी कीटों की, कपास की फसल में कोई भी पौधा ऐसा
नहीं था, जिस पर फलेरी बुगड़े के बच्चे (निम्प) मौजूद न हों। शीला ने बताया
कि फलेरी बुगड़े के बच्चे शाकाहारी कीटों का खून पीकर गुजारा करते हैं।
कीट सर्वेक्षण के आधार पर तैयार किए गए बही खाते से महिलाओं को कपास की फसल
में किसी भी प्रकार के कीटनाशक के प्रयोग की जरुरत महसूस नहीं हुई। खाप
पंचायत के संयोजक कुलदीप ढांडा ने कहा कि पृथ्वी पर साढ़े तीन करोड़ साल
पहले पौधे विकसित हुए थे और पौधों पर गुजारा करने के लिए कीट
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फसल में पाए गए लालड़ी कीट का फोटो |
आए थे। जबकि किसानों ने तो खेती की शुरूआत के साथ ही पौधों पर कब्जा करना
शुरू किया है। कीटों व किसानों की इस अनावश्यक जंग में निश्चित तौर पर
कीटों का पलड़ा भारी है। क्योंकि कीटों में इंसान की अपेक्षा प्रजजन करने
की क्षमता अधिक व खुराक की जरुरत कम होती है। पंखों की वजह से कीटों के बच
निकलने की संभावना भी ज्यादा रहती है।
किसान हरे नहीं पीले हाथ करने की चिंता करें
किसान पाठशाला की मास्टर ट्रेनर शीला ने कहा कि धान की फसल में लोपा मक्खी
आने के बाद किसानों को धान में फूट के नाम पर डाली जाने वाली कीड़े मारने
वाली हरी दवाई से हरे हाथ करने की जरुरत नहीं है। इसकी चिंता तो किसान लोपा
मक्खी पर छोड़ अपने विवाह योग्य पुत्र-पुत्रियों के हाथ पीले करने की
चिंता करें।
अन्य फसलों के कीटों ने भी महिलाओं से बनाई दोस्ती
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किसान पाठशाला में खाप प्रतिनिधि के साथ विचार-विमर्श करती महिलाएं। |
कीटों के प्रति महिला किसानों के सकारात्मक रवैये को देखकर दूसरी फसलों के
कीटों ने भी महिलाओं से दोस्ती बना ली है। बुधवार को ललीतखेड़ा में आयोजित
महिला किसान पाठशाला में कीट सर्वेक्षण के दौरान लालड़ी व अखटिया बग भी
महिलाओं के बीच आ गए। कविता ने बताया कि लालड़ी कीट अकसर घीया, तोरी, कचरी
की बेलों पर पाया जाता है। यह कीट बेल के पत्ते खाकर अपना गुजारा करता है।
अखटिया बग औषधीय आख के पौधे पर पाया जाता है। यह कीट भी रस चूसकर अपना जीवन
चक्र चलाता है।