Wednesday, July 4, 2012

‘पाठशाला’ में पढ़ रही कीड़ों की पढ़ाई


सुबह के आठ बजे थे नजारा था गोहाना रोड पर स्थित ललीतखेड़ा गांव के पास का। कुछ महिलाएं सिर पर पानी का मटका लिए पूरे उत्साह के साथ गीत गुणगुनाती खेतों की तरफ जा रही थी। गीत के बोल थे ‘किड़यां का कट रहया चाला ऐ मैंन तेरी सूं देखया ढंग निराला ऐ मैंन तेरी सूं’ और इन महिलाओं के हाथों में खेती के औजारों की जगह थे कॉपी, पैन व् मेग्निफाईंग ग्लास। यह नजारा वाकई में चौकाने वाला था। ये महिलाएं खेत में खेती के काम के लिए नहीं बल्कि कीटों की पढ़ाई पढ़ने के लिए जा रही थी। इन महिलाओं को कीट ज्ञान देने का जिम्मा उठाया है निडाना गांव की महिला कीट पाठशाला की मास्टर ट्रेनर महिलाओं ने। कीटों की पहचान में माहरत हासिल करने के बाद अब इन महिलाओं ने ललीतखेड़ा गांव की तरफ अपनी टीम का रुख किया है। इन दिनों कीट पाठशाला की ये मास्टरनियां ललीतखेड़ा गांव की महिलाओं को फसल में पाए जाने वाले मासाहारी व शाकाहारी कीटों की पहचान कर कीटनाशकों से मुक्ति के गुर सीखा रही हैं। ललीतखेड़ा की महिला किसान पूनम मलिक के खेत को पाठशाला के लिए चुना गया है। सप्ताह के हर बुधवार को इस खेत पर महिला किसान पाठशाला का आयोजन किया जाता है।

कीटों के साथ-साथ पढ़ाया जाता है अनुशासन का पाठ

महिला किसान पाठशाला की सबसे खास बात यह है कि इस पाठशाला में कीटों के पाठ के साथ-साथ महिलाओं को अनुशासन का पाठ भी पढ़ाया जाता है। ताकि सभी महिलाएं समय पर खेत में पहुंच सकें और उनकी दिनचर्या न डगमगाए। बुधवार को जब ललीतखेड़ा की यशवंती पाठशाला में लेट पहुंची तो मास्टर ट्रेनर अंग्रेजों ने लेट आने पर उसकी खूब खिंचाई करते हुए उससे लेट आने का कारण पूछा। अंग्रेजो के सवाल का जवाब देते हुए यशवंती ने बताया कि जब वह सुबह आठ बजे घर का कामकाज निपटाकर पाठशाला में आने के लिए चली तो घर पर कुछ मेहमान आ गए। मेहमानों की आवभगत में उसे पाठशाला में आने में देर हो गई। 

कीटों की भी होती खाप पंचायत

बराह कलां बारहा प्रधान कुलदीप ढांडा जब महिला किसान पाठशाला में पहुंचे तो पाठशाला की प्रशिक्षु शीला मलिक ने कहा कि ढांडा साहब खाप पंचायत सिर्फ मानस-मानसों की नहीं किड़यां की भी होवै सै। देखो पिछली बार तो दूसरे हथजोड़े ने आपका स्वागत किया था और इस बार कीटों की खाप के प्रतिनिधि दूसरा हथजोड़ा आपके स्वागत के लिए आया है।

पैदल ही तय करती हैं तीन किलोमीटर का सफर 

 निडाना गांव की मास्टर ट्रेनर महिलाओं में कीट ज्ञान की अलख जगाने का बहुत चाव है। इसलिए लिए तो वो निडाना से ललीतखेड़ा तक आने के लिए किसी व्हीकल का भी सहारा नहीं लेती हैं। झुलसा देने वाली इस गर्मी में वो निडाना से ललीतखेड़ा तक के तीन किलोमीटर के सफर को पैदल ही तय कर लेती हैं। इस सफर के बाद उन्हें घर का कामकाज भी निपटाना पड़ता है।

कीटों पर तैयार किए हैं गीत

 पाठशाला में बही-खाते में कीटों की संख्या दर्ज करवाती महिला।

कीटों की ये मास्टरनी केवल अध्यापन का कार्य ही नहीं करती। अध्यापन के साथ-साथ ये महिलाएं लेखक व गीतकार की भूमिका भी निभाती हैं। अन्य लोगों को प्रेरित करने के लिए इन महिलाओं ने कीटों के पूर जीवन चक्र की जानकारी जुटाकर उनपर गीतों की रचना भी की हैं। जिनमें प्रमुख गीत हैं:
 किड़यां का कट रहया चालाए ऐ मैने तेरी सूं देखया ढंग निराला ऐ मैने तेरी सूं।  
म्हारी पाठशाला में आईए हो हो नंनदी के बीरा तैने न्यू तैने न्यू मित्र कीट दिखाऊं हो हो नंनदी के बीरा।

मैं बीटल हूं , मैं कीटल हूँ।। तुम समझो मेरी महता को ।। 

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