आज महिला खेत पाठशाला का सौलहवां सत्र है. याद रहे हरियाणा प्रांत में महिला किसानों के लिए यह पहली खेत पाठशाला है. यह पाठशाला निडाना गांव में जून के महीने में आरम्भ की गई थी। इस खेत पाठशाला में भाग ले रही महिला किसानों द्वारा हासिल कीट ज्ञान के अब तो कृषि विभाग के अधिकारीगण भी कायल होने लग गए है। इस मंगलवार, कृषि विभाग के तीन दर्जन कृषि अधिकारियों की टीम ने निडाना में चल रही महिला खेत पाठशाला का दौरा कर महिला किसानों से कपास की फसल में कीट प्रबंधन पर अपने अनुभव साझा किये। सर्वप्रथम श्रीमती सुदेश मलिक व डॉ कमल सैनी ने निडाना की महिला खेत पाठशाला में पधारने के लिये इन अधिकारियों का स्वागत करते हुए इन्हे बताया कि निडाना के रणबीर मलिक, ईगराह के मनबीर रेढू, कृषि विभाग के डॉ. सुरेन्द्र दलाल व कमल सैनी आदि प्रशिक्षकों के नेतृत्व में महिलाओं ने कपास के फसल प्रबंधन पर चौबने से लेकर चुगने तक की तमाम जानकारी हासिल की हैं। परन्तु ज्यादा जोर शाकाहारी व मांसाहारी कीटों की पहचान, इनके जीवनचक्र, पौधों पर इनकी गिनती, आर्थिक-कगार व पारिस्थितिक विश्लेषण पर ही लगाया गया। इन औरत किसानों में से ज्यादातर ने अपनी अनपढता को दरकिनार करते हुए अपनी लगन व मेहनत के बलबुते मर्द किसानों के मुकाबले तेजी से कीटों की पहचान करते हुए इनके बारे में ज्यादा जानकारी जुटाई है। इन महिला किसानों ने कपास की फसल पर कीटनाशकों का प्रयोग किये बगैर सफलतापुर्वक खेती कर दिखाई। निसन्देह अबकी बार भी कपास की फसल में अब तक हरा-तेला(COTTON JASSID: NYMPHS) & (COTTON JASSID: ADULT), सफेद-मक्खी(WHITE FLY: NYMPH) & (WHITE FLY: ADULT), चुरड़ा(THRIPS), चेपा(APHID), माइट(SPIDER MITES), मिलीबग(MEALYBUG), मसखरा-बग(SQUASH BUG), मिरिड-बग(MIRID BUG), हरा स्टिंक-बग(GREEN STINK BUG), लाल-मत्कुण(RED COTTON BUG), श्यामल-मत्कुण(COTTON DUSKY BUG), स्लेटी-भुंड(GREY WEEVIL), तेलन(BLISTER BEETLE), भूरी पुष्पक-बीटल(BROWN FLOWER BEETLE), तम्बाकु वाली सूंडि(TOBACCO CATERPILLAR), पत्ता लपेट सुंडी(LEAF ROLLER), कुण्डलक(LOOPER) एवं अर्धकुण्डलक(SEMILOOPER) आदि हानिकारक कीट अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुके हैं। इनके अलावा कपास के फलिय भाग खाकर गुजारा करने वाली चित्तीदार सूंडी(ADULT, EGG and LARVA), गुलाबी सूंडी(LARVA) व् अमेरिकन सूंडी(LARVA) भी एकाध दिखाई दी हैं. पर खुशी की बात यह है कि इनमें से कोई भी हानिकारक कीट कपास की फसल में हानि पहुँचाने के स्तर तक नहीं पहुँच पाया। इसीलिये इन महिलाओं को अपनी कपास की फसल में कीटनाशकों के प्रयोग की आवश्यकता नहीं पड़ी। इसके बाद इन महिलाओं ने श्रीमती सरोज, मिनी मलिक, सुदेश, गीता, बिमला, अंग्रेजो व बीरमती के नेतृत्व में फ्लेक्स बोर्डों की सहायता से कृषि अधिकारीयों को निडाना में कपास के पारिस्थितितंत्र को विस्तार से बताया:: (VIDEO: HALF DAY AMONG COTTON WOMEN-Part I)
इसके बाद महिला किसानों एवं कृषि अधिकारियों के मध्य सवाल-जवाब व खुली बहस का सत्र आरम्भ हुआ। भिड़ते ही डा.राज सिंह ढाका ने महिलाओं से सवाल दागा- आप फसल में कीटनाशकों के इस्तेमाल का फैसला कैसे लेंगी?
इस सवाल का जवाब देने के लिए श्रीमती सुदेश खड़ी हुई और कहने लगी- हम पहले कपास के खेत में दस पौधों पर कीटों की गिनती करेंगी. प्रत्येक पौधे पर तीन पत्तों पर हानिकारक कीटों को गिनेगी. यदि हरे-तेले की २, सफ़ेद-मक्खी की ६ तथा चुरड़े की १० प्रति पत्ता औसत आये तो हम कहेगी की ये कीड़े आर्थिक कगार पर पहुँच चुके हैं. अब हम मांसाहारी कीटों का हिसाब लगायेंगी. अगर इनकी गिनती ठीक-ठाक हो तो घबराने वाली कोई बात नहीं.
बीच में ही डा. ढाका ने फिर नया सवाल दागा- क्या दुश्मन कीटों की बीज़मारी होनी चाहिए? हमें नही मालूम डा. ढाका ने क्या सोच कर महिलाओं को अपना यह सवाल यूँ समझाया- कि बीजमारी तो में पाकिस्तान की भी चाहूँ सूं!
यह सुनते ही मिनी मलिक तुरंत बोली कि सर, बीज़मारी तो क्यां-एं की भी आच्छी नही होती. अगर हानिकारक कीटों की बीजमारी हो गयी तो मांसाहारी कीट क्या खायेंगे?
अब डा.रघबीर राणा ने पूछा कि क्या निडाना की महिलाओं ने कोई देशी कीटनाशक भी बनाया और इस्तेमाल किया है?
इसका जबाब दिया राजवंती ने अक डॉ जी सौ लिटर पानी में आधी किलो जिंक, ढाई किलो यूरिया व ढाई किलो डी.ऐ.पी. का घोल बनाकर कपास की फसल पर छिडकाव करने से तेले, चुरड़े, मक्खी, माईट व चेपे जैसे छोटे-छोटे जन्नौर हमने मरते देखे सै. इस पर अपने सामने आधे से भी ज्यादा अनपढ़ महिला बैठी होने के बावजूद डा. राणा ने इस फोलियर स्प्रे के फायदे बताने शरू कर दिए. हाँ! डा. दलबीर ने जरुर महिलाओं की इस बात का बवाना के एक किसान का उद्धरण देकर समर्थन किया. अब डा. राजेश लाठर ने महिलाओं से जानना चाहा कि स्कूल ख़त्म होने के बाद इब आप अपने घरवालों कै कीटनाशकों का स्प्रे करने की खोद तो नही लाया करोगी?
या सुनकर अंग्रेजो खड़ी हुई और न्यूँ कहन लगी," मतलब नही डा.जी, पहल्यां दुश्मन कीड़े गिनागी, फेर मकड़ी पावेंगी, कराईसोपा पावैगा, हथजोड़ा पावैगा....."
अंग्रेजो अपनी बात पूरी करती, इससे पहले ही डा. ढाका बीच में कूद पड़ा अर् अंग्रेजो नै न्यूँ समझावन लागा अक आप डा. साहिब का सवाल नही समझी. डा.साहिब न्यूँ पूछना चाहवै सै अक कराईसोपा भी नही पावै, ड्रैगन फ्लाई भी नही पावै?
"पावैंगे घेल्यां", बिना क्षण गंवाएं, अंग्रेजो ने डा. ढाका की बात काटी. पूर्ण विवरण के लिए यह वीडियो देखिये: .(VIDEO: HALF DAY AMONG COTTON WOMEN-PartII)
जी भरकर दोनों टीम्मों ने एक दूसरे से सवाल-जवाब किये। एक बार तो यहाँ हिन्दुस्तान-पाकिस्तान के मध्य कबड्डी मैच वाला दृश्य ही उत्पन हो गया था। ठीक इस गरमागर्म बहस के बीच ही समेकित बाल विकास योजना विभाग की जिला कार्यक्रम अधिकारी, श्रीमति राजबाला कटारिया भी मौके पर पहुँच हई। निडाना गावं के सरपंच श्री सुरेश मलिक, हमेटि के मास्टर ट्रेनर डॉ. सुभाष व अंग्रेजों ने महिला खेत पाठशाला में पहुँचने पर श्रीमति राजबाला कटारिया का स्वागत किया। श्रीमति राजबाला कटारिया ने अपने संबोधन में महिलाओं की मौजूदा परिस्थियों पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि विषम परिस्थियों के बावजूद निडाना की महिलाओं की यह पहलकदमी वाक्य ही सराहनीय एवं स्वागत योग्य है जिसकी प्रशंसा करने में किसी को भी कंजुसी नही करनी चाहिए। उन्होनें महिलाओं को चेताया कि कीटनाशकों के खिलाफ आरम्भ की गई इस जंग में इन्हें अपने अदृश्य शत्रु के ब्योंत एवं हैसियत का अंदाजा लगाकर ही तैयारी करने की आवश्यकता है।
इसके बाद तो कृषि अधिकारियों ने इस कीट भेद की बहस को लिंग भेद की बहस बना डाला। अधिकारियों द्वारा उठाये गये चुटिले एवं चुटकिले सवालों के जबाब श्रीमति राजबाला ने सहजभाव से चुटिले एवं चुटकिले अंदाज में ही दिये जाने पर श्रोताओं विशेषकर महिलाओं के चेहरों पर विजयी मुस्कान देखते ही बनती थी।
इस दौरान मौका पा कर एक पाली डा.सुभाष से कानों-कान अपनी कपास की फसल में आई बीमारी का निदान चाहने लगा. डा.सुभाष इस समस्या का इलाज महिलाओं से पूछता इससे पहले ही इसकी भैंसे लाडो के खेत में घुस गई. फिर क्या था लाडो तौ जुट गई ताबड़तौड़ गलियां देने में - धुले को भी अर डा. साहिब को भी. आँख्यां आगै नुकशान किस पै उटे था. लाडो को बड़ी मुश्किल से चुप करवाया गया.
अब नारी-शक्ति के मौके पर प्रमाणिकरण की चर्चा करते हुए डा. साहिब ने फ़रमाया कि उस किसान के खेत में बौन्कियाँ गिर रही है. उस किसान को आप क्या समाधान बतायेंगी.
इतना सुनते ही प्रकासी बोली कि इस में घबरान की बात कोन्या. हर पौधा अपने ब्यौंत अनुसार ही फल डाटेगा.आधे-परधे फुल-बौंकी तौ कुदरती तौर पर ही झड़ जाया करै.
संस्काराधिन एवं स्वभावगत श्रीमति राजबाला कटारिया जींद से गरमागर्म जलेबी लेकर आई, हमेटि से कृषि अधिकारियों की टीम बर्फी लेकर आई तथा महिलाओं ने भी केलों व जलपान का जुगाड़ कर रखा था। सभी ने मिलजुल कर इस साझले जलपान का आनंद उठाया।
कार्यक्रम के अंत में डॉ. सुरेन्द्र दलाल ने इस कार्यक्रम के सफल आयोजन के लिये सभी प्रतिभागियों का शुक्रिया अदा करते हुए कृषि अधिकारियों से रानी मलिक के खेत में कपास की फसल का मौके पर अवलोकन, निरिक्षण करने का आग्रह किया। रानी ने भी अभी तक अपनी कपास की फसल में कीटनाशकों का छिड़काव नहीं किया है तथा उसका खेत जींद के रासअते में ही पड़ता है। अधिकारियों की यह टीम रणबीर मलिक व पाल के साथ रानी मलिक के खेत में कपास की फसल का मौके पर अवलोकन, निरिक्षण करने के लिए निकल पड़ी। कपास की फसल का मौके पर अवलोकन, निरिक्षण करने के बाद ये कृषि अधिकारी किसानों खासकर महिलाओं के कीट ज्ञान की तहदिल से भूरी-भूरी प्रसंशा करने के लिये अपने आप को रोक नही पाये।
Dr Dalal you doing a very bsic and historical work indeed
ReplyDeleteACTUALLY, AN INDIVIDUAL IS ALWAYS SHAPED BY THE CUMMILATIVE EFFECTS OF ENVIRONMENTAL VARIABLES. YOURS CONTRIBUTION IN REPARING THIS NONSOCIAL CREATURE CAN'T BE DENIED, DR.DAHIYA.
ReplyDeletecongratulation Dalal sahab and Agriture deptt .You are doing excellent job
ReplyDeletetyping error---It is Agriculture Deptt
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